अरहर, मूंग, उड़द एवं सोयाबीन जैसी फसलों को जलभराव से हो सकता नुकसान, कृषि विभाग ने जारी की सलाह रायपुर दुर्ग । असल बात न्यूज़ बारिश से...
अरहर, मूंग, उड़द एवं सोयाबीन जैसी फसलों को जलभराव से हो सकता नुकसान, कृषि विभाग ने जारी की सलाह
बारिश से नदी नाले उफान पर है, वही खेतों में जलभराव की स्थिति निर्मित है। कृषि प्रधान बेमेतरा जिले मे दलहनी-तिलहनी जैसे अरहर, मूंग, उड़द एवं सोयाबीन जैसी फसलों को खेतों में जलभराव होने पर कीडे, बिमारी का सामना करना पड़ सकता है। फसल को बचाने के संबंध में कृषि विभाग द्वारा उपाय जारी किये गए है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनांतर्गत जलप्लावन व जलभराव से होने वाली क्षति से राहत-जिले में धान एवं सोयाबीन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनांतर्गत अधिसूचित है। जलप्लावन से क्षति होने पर धान फसल को छोड़ कर सोयाबीन में क्षतिपूर्ति दिये जाने का प्रावधान है।
जलप्लावन व जलभराव होने पर किसान यहां कर सकते है आवेदन- सोयाबीन फसल में जलप्लावन व जलभराव से क्षति होने पर बीमित कृषक अधिसूचित फसल सोयाबीन हेतु जिले में अधिसूचित बीमा कम्पनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंश कम्पनी के टोल फ्री नम्बर 1800-209-5959 से सीधे संपर्क कर सकते है अथवा ग्राम के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, पटवारी, संबंधित बैंक, विकासखण्ड के कृषि अथवा राजस्व अधिकारी को बीमित फसल के ब्यौरे, क्षति की मात्रा, क्षति के कारण लिखित रूप में 72 घण्टे के भीतर सूचित कर सकते है।
खरीफ फसलों की बोनी के साथ ही किसानों के लिए अनावश्यक रूप से खेतों में उगने वाले खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है। अच्छे गुणवत्ता के बीज एवं आदान सामग्रियों के उपयोग करने के बाद भी खरपतवारों से निपटना बहुत कठिन होता है। खरपतवार फसल के बीज उगने से लेकर फसल कटाई तक हर अवस्था में फसलों को प्रभावित करते है तथा नमी, पोषक तत्व व स्थान आदि के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करके फसलों की वृद्धि एवं गुणवत्ता में कमी करते है। इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों को प्रभावित करने वाले कीट एवं रोग व्याधियों के जीवाणु को भी शरण देते है, जिससे कृषकों को विपरीत परिस्थितियों भारी आर्थिक नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। खरपतवार फसलों की उपज में 10 से लेकर 85 प्रतिशत तक की कम कर सकते है।
खरपतवार विभिन्न प्रकार के होते है, परन्तु सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुतायत में खरीफ में उगते है। जैसे धान के खेतों में जंगली सांवा, सवई घास, जंगली कोदो, दूब घास आदि घास वर्गीय प्रमुख खरपतवार है तथा कनकौवा, कांटेदार चौलाई, पत्थरचट्टा, भंगरैया, महकुआ आदि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार है। साथ ही खरीफ के दलहनी एवं तिलहनी फसलों में महकुंआ, हजारदाना,दूधी, सांवा, कनकौवा, सफेद मुर्ग तथा मोथा विशेष रूप से फसलों को प्रभावित करते है। फसलों के विभिन्न क्रांतिक अवस्थाओं में कृषकों को समझदारी के साथ खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्रयास करने चाहिए। धान की सीधी बुवाई वाले खेतों में 15 व 45 दिन बाद रोपा धान में 20 व 40 दिन बाद तथा खरीफ दलहनी फसलों में 15 व 20 दिन तथा तिलही फसलों में बुआई के 30 व 45 दिन में फसलों की महत्वपूर्ण क्रांतिक अवस्था में खेतों को खरपतवार रहित रखना चाहिए। इन खरपतवारों की रोकथाम के लिये बुआई के पूर्व ही यांत्रिक विधियों से नियंत्रण कार्य किया जाना चाहिए, परन्तु खरपतवारों की अधिकता होने पर रासायनिक खरपतवार नाशी का उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किया जा सकता है।
इस प्रकार करें खरपतवारनाशी दवाओं का उपयोग-
धान के फसलों में खरपतवारों के नियंत्रण तथा बुआई या रोपाई के बाद खरपतवारों की समस्या होने पर बिसपायरी बैक सोडियम 250 मिली प्रति हेक्टेयर ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा मेटसल्फु यत्ररान 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मिलाकर धान की फसल पर कट नोजल से छिड़काव करें। ध्यान हरे कि सोयाबीन में वर्षा के मौसम की फसल होने के कारण कई बार लगातार वर्षा से खरपतवार का यांत्रिक नियंत्रण संभव ही नहीं हो पाता है। ऐसी परिस्थितियों में खरपतवार नाशकों का प्रयोग उपयुक्त होगा। अपने खेत में पाये गये खरपतवारों का प्रकार एवं उनकी सघनता के आकंलन के आधार पर उपयुक्त रसायन का चयन करें। पूरे खेत में समान रूप से छिड़काव करना आवश्यक है। अत: अनुसंशित खरपतवार नाशक मात्रा का घोल तैयार कर छिड़काव यंत्र में जेट नोजल लगाकर नमी युक्त भूमि पर ही छिड़काव करना चाहिए। यह भी सलाह दी जाती है कि एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग बार-बार न करें।
खरपतवारों के 30 से 70 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। खरपतवारों की वृद्धि को नष्ट करने के लिये बुआई के 30 और 45 दिन बाद गुड़ाई करें। अरहर, मूंग, उड़द फसलों में बुआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवारों की समस्या बढऩे पर इमेजाथाइपर-इमेजा माक्स 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर 450 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से या इमेजाथाइपर 750 मिली 450 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। सोयाबीन के खेत के मेड़ो में पाये जाने वाले सभी प्रकार के खरपतवारों को नष्ट करें। ग्लाफोसेट का भी छिड़काव मेंड़ों के खरपतवार को नष्ट करने के लिये कर सकते है। खरपतवार कीट पतंगों को आश्रय देने का कार्य करता है। जिन किसानों के खेत में सोयाबीन में पुष्पन की क्रिया हो गई है, वे किसान फल अधिकता एवं पुष्पन की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु क्लोरमेट क्लोराइड का 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए अन्य उपाय-
धान के खेतों में रोपाई के 20 दिन बाद तथा 40 दिन बाद हाथ या खुरपी की सहायता से खरपतवारों को निकाल देने से काफी नियंत्रण होता है। साथ ही शक्ति चलित या हस्त चलित कृषि यंत्रों जैसे-पैडी विडर या कोनो विडर का उपयोग कर भी खरपतवार नियंत्रित किए जा सकते है।
खरपतवार नाशी का उपयोग करते समय सावधानियां -
खरपतवार नाशी छिड़काव हेतु नैकशैक स्प्रेयर के साथ फ्लैटफेन नोजल का प्रयोग करें, किसी भी फसल में खरपतवार नाशी प्रयोग करते समय खेत में नमी होना चाहिए तथा खरपतवारनाशियों का छिड़काव शाम के समय या हवा अधिक तेज न होने की स्थिति में ही करें। उप संचालक कृषि श्री जीएस धुर्वे द्वारा समस्त अमलों को निर्देशित किया गया है कि जिले में फसल स्थिति का निरंतर निरीक्षण करते रहे एवं किसानों को खरपतवार प्रबंधन संबंधी जानकारी किसानों को देते रहे, अधिक जानकारी के लिये अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारियों से सम्पर्क करें।