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गाड़ी रुकवा कर गांव के बुजुर्ग का हालचाल पूछा, तो वहीं अधिकारियों को टोका और कहा मैं जानता हूं कि ये महिलाएं बहुत मेहनती हैं

  0 अशोक त्रिपाठी असल बात न्यूज़ 0 विशेष रिपोर्ट अपने से जब अपनो की मुलाकात होती है तो सारे बंधन टूटते नजर आते हैं। एक अपनापन, स्नेह, दुलार ...

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 0 अशोक त्रिपाठी

असल बात न्यूज़

0 विशेष रिपोर्ट


अपने से जब अपनो की मुलाकात होती है तो सारे बंधन टूटते नजर आते हैं। एक अपनापन, स्नेह, दुलार का सागर उमड़ पड़ता है। और जब वह अपना मुख्यमंत्री हो तो अपनेपन , स्नेह और दुलार के साथ मन में एक रोमांच, सनसनी भी दौड़ती महसूस होने लगती है। पाटन विधानसभा क्षेत्र में आज लगभग ऐसा ही माहौल था। यहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आगमन  होने वाला था। यह उनका गृह विधानसभा क्षेत्र है। अभी कई महीनों से कोरॉना महामारी के संक्रमण के फैलाव के चलते कई सारी गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। धीरे धीरे, कुछ कुछ छूट मिल रही है। एक सीमा तय कर दी गई है कि क्या काम करना है और क्या नहीं करना है। सबसे बड़ी बात कि इस दौरान  दूरी बना कर रखना भी अनिवार्य हो गया था। ऐसे में कई सारे कार्यक्रम लगातार स्थगित होते जा रहे थे। लोगों से मुलाकात सिमट कर रह गई थी। ऐसी परिस्थिति के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न गांवो में लंबे दिनों के बाद पहुंचे तो लोगों का उत्साह और दोगुना नजर आ रहा था। लोगों में उनकी बात सुनने, उनको देखने,उनसे मिलने लेकर तो उत्साह था ही, उनमें  इसबात को लेकर और भी खुशी दिख रही थी कि उन्हें अवसर मिला था कि वेअपनी समस्याएं मुख्यमंत्री को बता सकेंगे। शिकायतें कर सकेंगे। और गांव की जो मांगे हैं उससे मुख्यमंत्री को अवगत करा सकेंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी संभवत  इन स्थितियों का आभास था। उन्होंने लोगों से खुलकर मुलाकात की। गाड़ी रुकवाकर वृद्ध का हालचाल पूछा। महिलाओं की भी समस्याएं सुनी और उन्हें कई सारे सुझाव भी दिए।

नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी अभी राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना है। असल में शहरी इलाकों के लोगों को इस कार्यक्रम के महत्व तथा फायदे बहुत अधिक समझ में नहीं आते हैं , लेकिन ग्रामीण इलाकों के धरातल पर जाकर देखा जाए तब समझ में आता है कि ऐसे कार्यक्रमों का क्या फायदा है और यह किस तरफ से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रहा है तथा गांव गांव की तस्वीर इससे कैसे बदल रही है, और यह योजनाएं कैसे पशु पालकों, किसानों, मजदूरों की आर्थिक स्थिति को संपन्न बना रही हैं। वर्षों, वर्षों से खेती की जो जमीन, बंजर होती जा रही थी वह कैसे हरी-भरी होने, हरियाली की ओर बढ़ रही है। उस बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति कैसे बढ़ रही है?या साहब बहुत कुछ इन्हीं योजनाओं के सहारे हो रहा है। भारत देश की 70% से अधिक आबादी अभी भी गांव में बसती है। यहां के लोगों का अभी भी मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है। खेती किसानी के भरोसे इनकी और उनके परिवार की जिंदगी चलती है। ढेर सारे प्रयासों के बावजूद छत्तीसगढ़  राज्य के ज्यादातर इलाकों में अभी जैसी स्थिति है उसमें कृषि कार्य घाटे, नुकसान का काम माना जाता है। कभी-कभी तो जो फसल लगाई जाती है साल भर की मेहनत के बावजूद उसकी लागत भी वसूल नहीं होती। छत्तीसगढ़ राज्य को भी पिछले 3,4 वर्षों से लगातार सूखे, अल्प वर्षा से जूझना पड़ा है।ऐसे में किसानों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सरकार ने कृषि बीमा के माध्यम से इन किसानों के नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की। लेकिन इन्  माध्यमों से हितग्राहियों को कितनी राशि मिलती है ?, उनके नुकसान की कितनी भरपाई हो पाती हैं ?यह सबको मालूम है। नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी की योजना शुरू होने से किसानों में स्वाभाविक तौर पर नई उम्मीदें जगी है। नई आस बनी है। यह विश्वास जगा है कि रासायनिक खादों के नुकसान से कृषि भूमि को जो नुकसान हुआ है, भूमि की उर्वरा शक्ति को जो क्षति हुई  है, हॉस हुआ है। उसकी भरपाई हो सकेगी। वह नुकसान रुकेगा। पाटन विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न गांव के हजारों किसानों ने पिछले तीन-चार वर्षो के दौरान अल्प वर्षा से पैदा हुई दिक्कतों से जूझा है। इन किसानों ने तमाम तकलीफों को भोगा है और कई महीनों के बाद लंबी लाइन लगाकर उन्हें जो मुआवजा मिला वह ऊंट के मुंह में जीरा के जैसा ही था। ऐसे में यहां, नरवा की कितनी आवश्यकता है और नरवा के होने के साथ उस को जागृत  रखने, रिचार्ज करने की कितनी अधिक जरूरत है यह यहां के किसानों को मालूम है। कुछ इलाकों को छोड़कर पाटन क्षेत्र के ज्यादातर कृषि क्षेत्र अभी भी असिंचित ही हैं। यहां कृषि मानसून की बारिश पर ही निर्भर है। बारिश इतनी तो हो जाती है कि धान की फसल ली जा सके। लेकिन समय -असमय की बारिश, कृषि-फसल को नुकसान पहुंचाती  है। पानी रोकने, संग्रहण का समुचित उपाय नहीं किए जाने से  व्यर्थ बह कर चला जाता है। यहां से नरवा का महत्व समझ में आता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि राज सरकार की महत्वाकांक्षी ‘नरवा विकास योजना’ से भू-जल संरक्षण की नई शुरुआत होगी और तमाम  बंजर-ऊसर भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार होगा। राज्य में अभी इस योजना पर काम करना अत्यंत आवश्यक हो गया महसूस होता है। समय पर पानी नहीं मिलने से खेतों में फसलें लगभग हर साल सूख जाती हैं।उत्पादन ना के बराबर रह जाता है।सब्जी, भाजी को गाने वाले किसान भी जानते हैं कि समय पर पानी नहीं मिलने से कितना नुकसान हो रहा है। उत्पादन कितना पिछड़ जाता  है। नरवा विकास योजना से ये समस्याये सुधरती दिख रही है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बार-बार गौठान को राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना बताया है। वे पाटन विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे तो उनके कार्यक्रम में गौठानो  का निरीक्षण, स्व सहायता समूह की स्वावलंबी महिलाओं से मुलाकात का कार्यक्रम भी शामिल था।सेलूद  में जनसंपर्क कार्यक्रम में उन्होंने गांव के लोगों की समस्याओं, शिकायतों और मांगों को बड़ी गंभीरता और ध्यान देकर सुना तथा जिस तरह से उनका निराकरण किया जा सकता है वैसे कार्रवाई करने का आश्वासन भी दिया। पाटन क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने की घोषणा से पूरे  क्षेत्र के लोग उत्साहित नजर आए। गांव के लोग, ग्राम पंचायतों के लिए विकास कार्यों का इंतजार कर ही रहे थे, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यहां 9 करोड़ 88 लाख रुपए की लागत से ग्राम पंचायतों में निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर उनकी उम्मीदों को पूरी करने की कोशिश की है।

इस दौरान जो जन सैलाब उमड़ा था, लोगों की भीड़ थी सिर्फ काम ही नहीं चाहती थी। अपने मुख्यमंत्री, अपने गांव के मुख्यमंत्री से मुलाकात करने, बात करने की भी लोगों में इच्छाएं  थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी संभवत इसे समझते हुए प्रोटोकॉल से हटकर भी लोगों से मुलाकात की। सुरक्षा ड्यूटी में तैनात बल के कर्मी भले ही उपस्थित भीड़ को खिंझियाते, धकियाते रहे लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गांव के लोगों को बुला- बुला कर बातचीत की। उनका हालचाल पूछा। पतोरा गांव में उनकी गाड़ी रवाना हो चुकी थी अचानक सामने एक परिचित वृद्ध दिखा तो उन्होंने तुरंत गाड़ी रुकवाई। उस वृद्ध से खुलकर हालचाल पूछा। उसके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली। आम लोगों को ऐसे ही स्नेह, अपनेपन की उम्मीदें हैं। तो ऐसे में क्यों किसी का दिल गदगद नहीं हो जाएगा। कई बार ए सी रूम, मोटे काले कांच वाले वाहनों के पीछे बैठे रहने, दूसरों को देखकर मुंह घुमा लेने वालों की जमीनी हकीकत से दूरियां बढ़ती जाती हैं। जमीन पर नहीं चलने वाले अक्सर गिर पड़ते हैं और राजनीति में अक्सर ऐसा ही होता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ऐसे राजनेताओ  में से माने जाते हैं जिन्होंने अपने बीच के लोगों, आम लोगों से हमेशा सीधा संबंध बनाए रखने कोशिश की है। स्व सहायता समूह की महिलाओं से मुलाकात के दौरान अधिकारियों ने बीच में कुछ टोंकने की कोशिश की तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सीधे बोल पड़े, वे जानते हैं, ये महिलाएं बहुत मेहनती हैं। इन्हें, ऐसे काम मिलने चाहिए जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। वे महिलाओं को फिनाइल, मशरूम, दीया, मुर्गी दाना बनाने के बारे में सलाह दे रहे थे तभी किसी अधिकारी ने बीच में हस्तक्षेप किया तब उन्होंने ये बातें कहीं। ऐसे बातें दिल को छू जाती हैं। उक्त बातों से उन महिलाओं का मनोबल कितना ऊंचा हुआ होगा, आत्म बल, आत्मविश्वास एकाएक कितना बढ़ गया होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लोगों को ऐसे ही जनप्रतिनिधियों की जरूरत होती है जो कि उनकी भावनाओं को समझें। उनकी आवश्यकता के अनुरूप काम करें। मुख्यमंत्री ने यहां  स्व सहायता समूह की स्वावलंबी महिलाओं से ढेर सारी बातें की। उनसे पूछा कि वर्मी कंपोस्ट बनाने से उन्हें कुछ फायदा हो रहा है कि नहीं। इसकी बिक्री हो रही है कि नहीं। उनकी आमदनी कितनी बढ़ गई है। और अधिक महिलाओं को इन योजनाओं से किस तरह से जोड़ा जा सकता है। उन्हें और अधिक कमाई हो सके, उनकी आमदनी अधिक  बढ़ सके इसके लिए सरकार क्या करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह सब जानकारियां तो ली ही, कई सारे सलाह भी सभी के सामने खुल कर दिए। उन्होंने यह भी सलाह दिया कि समूह के द्वारा जो चीजें बनाई जा रही हैं उसका पर्याप्त स्टाक रखना चाहिए। लेकिन इतना अधिक स्टॉक भी ना रहे की कीमत ही गिरने लगे। उन्होंने महिलाओं को बाजार का अध्ययन करने, जानकारी लेने के लिए भी कहा तथा अपने उत्पादों को अधिक दाम पर बेचने का प्रयास करने को कहा। उन्होंने कहा कि वर्मी कंपोस्ट तो सरकार खरीद लेगी। उन्होंने अधिक से अधिक महिलाओं को सिलाई कढ़ाई बुनाई इत्यादि के काम से जोड़ने को कहा। गांव की इन उत्साही महिलाओं को किसी मुख्यमंत्री से इस तरह की सलाह पहले तो कभी नहीं मिली थी। किसी ने उनके आमदनी की भी चिंता नहीं की थी। कोई मुख्यमंत्री, सीधे यह बताने नहीं आया था कि ऐसा काम करने से वे आत्मनिर्भर बन सकती हैं और सरकार, इस काम में मदद कर रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गांव से सीधे जुड़े हुए हैं। उन्होंने इस जुड़ाव  को संभवत कभी भी कम  होने नहीं दिया है। ऊंचे पदों पर आसीन हो जाने के बाद एक बड़ा वर्ग तैयार हो जाता है जो सारे संपर्कों को सिर्फ अपने तक सीमित कर देना चाहता है। मुख्यमंत्री ने यहां बुजुर्गों, बच्चों के साथ भी फोटो खिंचवाई। संभवत उन्होंने संदेश दिया है कि वे आम लोगों के हैं और तमाम काम निपटाते हुए भी आम जनता से उनकी दूरी नहीं बनेगी। लगातार व्यस्तता, काम, महत्वपूर्ण बैठक  के बीच उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता, ग्रामीणों से मुलाकात करने उनके बीच पहुंचने का समय निकाला । इस तरह से संभवत उन्होंने यह भी संकेत देने की कोशिश की है कि कोई यह ना समझ ले कि उनकी अपने लोगों, अपने क्षेत्र से कोई दूरी बन सकती है।संवेदनशीलता और अपने लोगों के हितों की चिंता है शायद इसीलिए वह इस दौरान उस गांव के गौठान के चरवाहे से बात किए बिना रुके नहीं। उन्होंने चरवाहे से हाल-चाल लेकर यह भी पूछा कि वह कितना गोबर बेचता है। इस गौठान में कितना गोबर निकल रहा है और गोबर का पैसा उसे मिल रहा है कि नहीं। जब चरवाहे ने बताया कि गोबर का पैसा उसे नहीं मिलता तो इस बात को उन्होंने गंभीरता से लिया और अधिकारियों से तत्काल पूछा कि गौठान के पूरे गोबर पर पूरा हक तो चरवाहे का है तो उसे उसका पैसा क्यों नहीं मिलता। इस सबसे, इतना तो हुआ है कि अब शायद चरवाहे को उसका पूरा हक मिलने लगे। लालफीताशाही की जो कमियां हैं उसको दुरुस्त करने के लिए कदम उठाए जाये। उस के साथ दूसरे चरवाहों की स्थिति भी सुधर जाए। कहा जाता है कि  हर कदम पर आम जनता से जीवंत संपर्क, राजनीति में सफलता के लिए अनिवार्य माना गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, संभवत इसी रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश में लगे हुए हैं।