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निजी बैंकों को सरकारी बिजनेस देने पर से रोक हटा लेने के कई दुष्परिणाम भी आ सकते हैं सामने

  0 नई दिल्ली, छत्तीसगढ़ 0 असल बात न्यूज़ 0 चिंतन 0 अशोक त्रिपाठी देश में बैंक और बैंकिंग व्यवस्था इस समय कई दिक्कतों से जूझ रहीं हैं। एक सम...

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0 नई दिल्ली, छत्तीसगढ़
0 असल बात न्यूज़
0 चिंतन
0 अशोक त्रिपाठी
देश में बैंक और बैंकिंग व्यवस्था इस समय कई दिक्कतों से जूझ रहीं हैं। एक समय था बैंकों के कार्यालय काफी चमक-दमक, सुविधाओं और अधिकारियों कर्मचारियों के साथ भीड़ से भरे रहने वाले होते थे।आज बड़े-बड़े प्रतिष्ठित माने जाने वाले वाले बैंकों के ज्यादातर काउंटर खाली नजर आते हैं।राष्ट्रीय कृत बैंकों की भी बहुत कुछ हालात ऐसे ही हो गई है। कोई अधिकारी- कर्मचारी इन काउंटर पर नहीं बैठता।ऐसा इसलिए क्योंकि, बैंकों के पास उन काउंटर पर बैठाने के लिए अधिकारी- कर्मचारी है ही नहीं। अधिकारी कर्मचारियों की  कमी है।बैंकों को अधिकारियों- कर्मचारियों की कमी की समस्या से लंबे समय से जूझना पड़ रहा है।बैंकों में नई भर्तियां लंबे समय से नहीं हुई है और अभी भर्तियों के होने की कोई संभावना  नजर भी नहीं आती। ऐसे में बैंकों के आम ग्राहकों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है इसे आसानी से समझा जा सकता है।बहुत सारे ग्राहक आते हैं और बैंक के काउंटर पर अधिकारी- कर्मचारी को उपस्थित नहीं देखकर झुंझलाकर  किसी तरह से अपना काम निपटा कर वापस लौटते हैं। लगभग सभी बैंक में प्रबंधकों को स्टाफ की कमी की समस्या का रोना रोते हुए देखा जा सकता है। दूसरी तरफ प्रभावशाली लोगों को बैंकों के द्वारा अनाप-शनाप लोन देने, लोन की वसूली नहीं होने,लोन की वसूली करने में जानबूझकर लापरवाही करने जैसी घटनाओं से बैंकों की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कुछ बैंकों की छवि तो ऐसी बन गई है कि वह बैंक सिर्फ ऐसे ही लोगों को लोन, देने के लिए लालायित रहते हैं जोकि ऋण, वापस नहीं करने वाले हैं।ऐसे बैंकों को संचालित करने वाले लोगों की क्या मानसिकता होगी ? इसे  समझा जा सकता है। आम ग्राहकों,लोगों का तमाम बैंकों से विश्वास उठता जा रहा है। हालांकि यह बैंक आम लोगों की जरूरत की आवश्यक अंग बन गए हैं। आम आदमी को बैंकों की सुविधा के बिना कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। अब हम विकास के प्रगति के ऐसे कोरे रास्ते पर बढ़ चुके हैं कि बैंकों के बिना  आर्थिक कामकाज पर काफी प्रतिकूल असर पड़ेगा। लोगों के आर्थिक लेन-देन प्रभावित होंगे। बैंकों की जो कमियां है उसे दूर करने के लिए सरकार के पास कभी कोई उपाय नजर नहीं आते। निजी बैंकों ने आम ग्राहकों को काफी चूना लगाया है। बैंकिंग का काम करने वाले कई निजी बैंक आम आदमी की जमा पूंजी के करोड़ों रुपए लेकर फरार हो गए हैं। इन पैसों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। आम ग्राहक अपने माथे का पसीना पूछते हुए ऐसे बैंकों से अपना कीमती पैसा वापस लौटने का इंतजार कर रहा है।ऐसे में आम ग्राहकों के द्वारा निजी बैंकों को हतोत्साहित करने की मांग हमेशा उठाई जाती रही है। ग्रामीण इलाकों में सहकारी क्षेत्र के कई बैंक अच्छा काम कर रहे हैं। पैसों को वापस लौतने तथा ब्याज देने के मामले में भी इनका प्रदर्शन अच्छा रहा है। सहकारी क्षेत्र के इन बैंकों को सरकार से अधिक मदद दिए जाने की आवाज उठाई जाती रही है। केंद्र सरकार ने अभी सरकार से संबंधित तमाम banking लेन देन का काम निजी क्षेत्र के बैंकों को देने पर लगाई गई रोक को हटा ली है। सरकार के इस निर्णय से बहुत अधिक फायदा मिलने की उम्मीद नहीं की जा रही है लेकिन इससे यह बात जरूर हो गई है कि निजी बैंकों को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे में कुछ दिनों तक अपने कामकाज, सुविधाओं के आकर्षण से ग्राहकों का विश्वास जीतकर, बाद में उनकी जमा पूंजी को लेकर चंपत हो जाने वाले निजी बैंकों को भी बढ़ावा मिलेगा।ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सरकार के पास कभी कोई उपाय नजर नहीं आया है।ऐसे में सरकार के ऐसे निर्णय पर तीखी प्रतिक्रिया ये होना स्वाभाविक है।

सरकार से संबंधित बैंकिंग लेनदेन जैसे कि करों और अन्य राजस्व भुगतान सेवाएंपेंशन भुगतानछोटी बचत योजनाओं आदि सेवाओं को देने के लिए निजी क्षेत्र के बैंकों (अभी तक केवल कुछ निजी बैंकों को अनुमति मिली थी पर लगी रोक हटा ली गई है। माना जा रहा है कि इस फैसले से ग्राहकों के लिए सरकार की सेवाएं लेना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। यह सब चीजें बहुत कुछ सही भी हो सकता है।लेकिन यहां यह भी देखने की जरूरत है कि निजी क्षेत्र के बैंकिंग कामकाज का चरित्र क्या रहा है।अभी तक सैकड़ों ही नहीं हजारों निजी क्षेत्र के बैंक, आम ग्राहक- साधारण ग्राहक को धोखा देने वाले ही साबित हुए हैं। इनमें लोगों की जमा पूंजी डूब गई है। हमें बीएसएनल को नहीं भूलना चाहिए। बी एस एन एल का क्या हाल है। एक समय बीएसएनएल का टेलीफोन कनेक्शन लेने के लिए कई किलोमीटर लंबी लाइन लगी रहती थी। इसके बिलों का भुगतान करने के लिए भी ऐसी ही लाइन लगती थी। इसके बाद निजी क्षेत्रों की कंपनियों को प्रवेश मिला और आज बीएसएनएल के कार्यालयों को किराए पर दिया जा रहा है। यह हालत हो गई है। बीएसएनल में अधिकारी कर्मचारी ना के बराबर रह गए हैं।यहां के अधिकारियों कर्मचारियों को जबस्ती सेवानिवृत्ति दी गई है।बीएसएनल कितनी जो खस्ता हालत हुई है उसके पीछे यहां के अधिकारी कर्मचारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। कहा तो यह भी जाता है कि बीएसएन एल के ही टावर और उपकरणों संसाधनों से निजी कंपनियां टेलीफोन कनेक्शन देती रही और लगातार बढ़ते हुए आर्थिक तौर पर भी सम्मिलित होते हुए जमीन से आसमान पर पहुंच गई। और बीएसएनएल जिसके प्रति आम लोगों का पूरा विश्वास था भरोसा था उसके कार्यों को किराए पर देने की हालत आ गई है।जहां बिल जमा करने के लिए लंबी लाइन लगी दिखती थी  वहां अब परिंदा भी पर मारता नजर नहीं आता।सरकारी अधिकारी कर्मचारियों और निजी कंपनियों के घालमेल से ऐसा ही होता है। या व्यवहारिक वास्तविकता है। इसे समझने की जरूरत है कि साजनी क्षेत्र के उपक्रम क्यों डूबते जा रहे हैं। बैंकिंग क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही हैं। निजी क्षेत्र के उपक्रम इस प्रतिस्पर्धा के दौर में बैंकिंग कामकाज हासिल करने, झपट ने, छीन ने हर तरह के प्रयास और उपाय कर रहे हैं।राष्ट्रीय कृत बैंकों के जिम्मेदार लोगों को बहला-फुसलाकर भी उनसे उनके बैंक का बैंकिंग काम छीनने की साजिश की जा रही है। सार्वजनिक उपक्रम के लोगों को तोड़ा जा रहा है। उन्हें कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं।कहा तो यह भी जाता है कि इसी कड़ी में उनकी सुविधाओं को कम किया जा रहा है। सुविधाओं को ऐसे अनाकर्षक बनाया जा रहा है कि आम ग्राहक वहां जाने से कतराने लगे।यह सब क्यों हो रहा है यह समझ से परे है लेकिन ऐसा हो रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, बहुत सारे निर्णय, अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी  मारने वाले के जैसे ही निर्णय ले रहे हैं।

 देश में सरकार ने यह मान लिया है कि बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंक हमेशा से नवीनतम तकनीक और नवाचर को लागू करने में आगे रहे हैं।इस फैसले के बाद अब भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और सरकार के सामाजिक क्षेत्र की पहल को आगे बढ़ाने में निजी बैंक बराबर के भागीदार होंगे। इसकी कोशिश नहीं की गई कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, राष्ट्रीय कृत बैंक नवीनतम तकनीक को अपनाने अपनी सुविधाओं को आकर्षक बनाने के लिए काम करें। इस दिशा में आगे पढ़ें। बल्कि इसके उलट इन राष्ट्रीय कृत बैंकों की सुविधाओं में कटौती की जा रहे हैं, वहां स्टाफ कम किया जा रहा है। निजी क्षेत्रों के बैंकों को  सरकार से संबंधित बैंकिंग लेनदेन जैसे कि करों और अन्य राजस्व भुगतान सेवाएंपेंशन भुगतानछोटी बचत योजनाओं आदि सेवाओं को देने का काम मिल जाने के बाद अब उनके लिए आम ग्राहकों का भरोसा जीतना और आसान हो जाएगा और निजी क्षेत्र बैंक इसके लिए लंबे समय से कोशिश कर रहे थे। कमजोर वर्ग, कम पढ़े लिखे लोगों को जब जानकारी मिलेगी की निजी क्षेत्र के बैंकों में सरकारी लंदन के भी  भुगतान  की सुविधा हो गई है तो उन्हें यह भी लग सकता है कि अब इनकी विश्वसनीयता बढ़ गई है, क्योंकि ये सरकारी काम काज से भी जुड़ गए हैं।।सरकार भी इन पर भरोसा कर रही है इसलिए उन्हें ऐसा काम दिया गया है। जो बैंक, आम लोगों के मेहनत की गाढ़ी कमाई, वर्षों की जमा पूंजी का  पैसा लेकर भाग जाते हैं सरकार के पास उन बैंकों से ग्राहकों को पैसा वापस लाने के लिए कोई स्पष्ट , ठोस नीति  नजर नहीं आती। ढेर सारे लोगों को, लाखों लोगों को अपना पैसा, अपनी जमा पूंजी का पैसा, वापस लेने के लिए, निजी क्षेत्र के बैंक का चक्कर लगाते आज भी देखा जा सकता है।

केंद्र सरकार ने ऐसे निर्णय लेकर, बैंकिंग कामकाज में निजी क्षेत्र के बैंकों को बढ़ावा, महत्त्व देने की नीति बनाकर लग रहा है कि विपक्ष को विरोध करने के लिए जबरदस्ती  एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। देश में कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल इस समय निजीकरण को बढ़ावा देने का जोरदार तरीके से विरोध कर रहे हैं और ऐसे विरोध से भाजपा को सत्ता से बाहर करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

रोक हटाए जाने के बाद अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआईको निजी क्षेत्र के बैंकों (सार्वजनिक बैंकों के साथ ) को सरकार और सरकार की एजेंसी के बिजनेस देने में कोई रोक नहीं रहेगी। इस फैसले की जानकारीआरबीआई को दे दी गई है। इस तरह से बैंकिंग क्षेत्र में निजी क्षेत्र के महत्व को बढ़ाने की कोशिश कर केंद्र सरकार ने अपनी दृष्टि में तो अच्छा ही किया होगा लेकिन इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आने से इनकार नहीं किया जा  सकता।देश की आम जनता तो निजी क्षेत्र पर तो कभी बहुत अधिक भरोसा करने वाली नहीं है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से सहकारी क्षेत्र मैं काम कर रहे कमजोर बैंकों के सामने प्रतिस्पर्धा में भी बढ़ेगी। उनकी हालत और बदहाल हो सकती है।

ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि कहीं ऐसे निर्णयो से आत्मनिर्भर भारत , निजी क्षेत्रों पर निर्भर भारत की ओर तो नहीं बढ़ने लगेगा ?



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