- ब्लॉक के 9 नालों में हो रहा नरवा योजना अंतर्गत जीर्णोद्धार कार्य दुर्ग । असल बात न्यूज़ राज्य शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घु...
- ब्लॉक के 9 नालों में हो रहा नरवा योजना अंतर्गत जीर्णोद्धार कार्य
दुर्ग । असल बात न्यूज़
राज्य शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के अंतर्गत दुर्ग जिले में नरवा योजना के अंतर्गत पाटन ब्लाक में नौ नालों को जीर्णोद्धार के लिए चिन्हांकित किया गया है। इन नालों में हो रहे कार्यों का निरीक्षण करने कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे आज पाटन ब्लॉक पहुंचे।
कलेक्टर dr भूरे ने उन जगहों का निरीक्षण किया जहां पर जीर्णोद्धार कार्य हो रहा है तथा ऐसे स्थलों का निरीक्षण भी किया, जहां यह कार्य पूरा किया जा चुका है तथा जिसके होने से आसपास के इलाके का जलस्तर बढ़ा है जिसका लाभ दूसरी फसल के रूप में किसान ले पा रहे हैं। कलेक्टर डॉ. भूरे सबसे पहले ग्राम पतोरा पहुंचे, वहां उन्होंने नाला डिसिल्टिंग कार्य का निरीक्षण किया यहां पर उन्होंने ग्रामीण जनों से भी चर्चा की इसके पश्चात कलेक्टर पंढर तथा रूही, उफरा भी पहुंचे यहां पर उन्होंने डिसिल्टिंग के साथ ही पुरानी संरचनाओं के जीर्णोद्धार के निर्देश भी दिए। इस दौरान कलेक्टर ने ग्रामीणों से चर्चा में कहा कि नरवा योजना का मूल उद्देश्य भूमिगत जल की बढ़ोतरी है यह तभी हो पाएगा जब हमारे जल स्रोतों का जीर्णोद्धार हो उन्हें संजीवनी मिल सके। उन्होंने कहा कि भूमिगत जल में सुधार आने का बढ़िया परिणाम आपको दूसरी फसल के रूप में मिल सकेगा। जहां कहीं भी नाला जीर्णोद्धार का कार्य बेहतर तरीके से हुआ है वहां पर भूमिगत जल का स्तर बढ़ा है जिससे किसान दूसरी फसल ले पा रहे हैं नरवा योजना किसानों के लिए संजीवनी की तरह है। नरवा प्रोजेक्ट का काम जहां पर चल रहा हो वहां पर किसान भी अपने आवश्यक फीडबैक प्रदान करें ताकि इस योजना को और बेहतर अमलीजामा दिया जा सके। उल्लेखनीय है कि पाटन ब्लाक में चिन्हांकित 9 नालों में डिसिल्टिंग के साथ ही नालों के सीमांकन का कार्य भी किया गया है।
इन सब कार्यों की वजह से नाले अपने मूल रूप में वापस आ रहे हैं और धीरे-धीरे से भूमिगत जल में वृद्धि होने की संभावना बढ़ी है। इसका लाभ आने वाले वर्षों में किसानों को मिलेगा। इस अवसर पर जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि नालों का सही रखरखाव होने से, छोटी छोटी उपयोगी संरचनाओं के माध्यम से भूमिगत जल को काफी हद तक रिचार्ज किया जा सकता है। इन कार्यों का असर जल्द ही किसानों की आय में भी नजर आने लगेगा।