रायपुर दुर्ग। असल बात न्यूज़। 0 चिंतन/ विश्लेषण/ जिंदगी बचाने के लिए 0 अशोक त्रिपाठी वो दिन, उन सबके लिए दु स्वप्न के जैसा था। जिसकी कभ...
रायपुर दुर्ग। असल बात न्यूज़।
0 चिंतन/ विश्लेषण/ जिंदगी बचाने के लिए
0 अशोक त्रिपाठी
वो दिन, उन सबके लिए दु स्वप्न के जैसा था। जिसकी कभी कल्पना नहीं की गई, जिसके बारे में कभी सोचा नहीं जा सकता था, जो बातें कभी उनके दिमाग में नहीं आई, वैसा उनके परिवार के साथ हो गया।उन लोगों ने इस दौरान उन लोगों, अपने प्रियजनों को खो दिया, घर के मुखिया को खो दिया, जो कि हमेशा मुस्कुराते हुए घर के लिए, उनके लिए, परिवार के सभी सदस्यों के लिए सारी खुशियां लेकर आते थे। एक दिन नहीं, हर दिन। चाहे बच्चे हो, माता पिता हो या पत्नी सभी की इच्छाओं, जरूरतों की पूर्ति वे करते थे। वे सिर्फ किसी के घर परिवार के सहारा मात्र ही नहीं थे, बल्कि घर के चिराग होते थे। घर की रोशनी थे जिनसे घर में खुशियां बिखरती थी। बच्चों की आंखों की चमक होते थे वे। घर परिवार में सारी खुशियां उनसे ही होती थी।वे घर में लौटते तो बच्चों उनसे लिपट जाते, उन्हें मालूम रहता है कि वे उन सबके लिए जरूर कुछ ना कुछ लेकर आए होंगे। अब बे लौट कर नहीं आएंगे। वे घर परिवार से इतनी दूर चले गए हैं कि कभी वापस नहीं लौट सकते। प्रकृति ने उन्हें छीन लिया है। ईश्वर ने उन्हें अपने पास कभी वापस ना जाने देने के लिए बुला लिया है। कोई भी कितना भी रो ले, चीख ले, चिल्ला ले, माथा पीट ले, वे वापस लौट कर नहीं आएंगे। कोरोना महामारी ने क्रूर मजाक किया है।
सब कुछ पल भर में, कुछ दिनों भीतर हो गया है। कोई कुछ समझ पाता इसके पहले कोरोना महामारी ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया। एक आंधी आई, एक लहर आई, जिसने दुखों का पहाड़ खड़ा कर दिया है उसे तोड़ पाना मुश्किल है। ऐसे जख्म दिए हैं जिसकी कभी भी भरपाई कर पाना मुश्किल है। इन जख्मों के बाद कई परिवारों के सामने रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो गई है। उन परिवारों के लिए 2 जून के भोजन की व्यवस्था करने वाला कोई नहीं रह गया है। बच्चों की आगे की पढ़ाई कैसे होगी ? चिकित्सा की सुविधा मिल सकेगी कि नहीं? के साथ दैनिक जरूरत की जो चीजें हैं, उनकी आपूर्ति व्यवस्था कैसे हो पाएगी ? ये सारे सवाल पीड़ित परिवार के सामने यक्ष प्रश्न बन कर खड़े हो गए हैं। इन सवालों का जवाब किसी के लिए भी देना आसान नहीं है। जिन लोगों ने कोरोना महामारी के संकट की गंभीरता को नहीं समझा है, इसे दूर से भी महसूस नहीं किया है उनके लिए ऐसे सवाल व्यर्थ और समय बर्बाद करने वाले लगते हैं। एक बड़ा वर्ग है जिसको ऐसे समय में भी नशे का सामान चाहिए, मौज मस्ती चाहिए, उसे कोरोना महामारी के नियंत्रण के लिए लगाया गया lockdown भी व्यर्थ, मूर्खतापूर्ण और समय की बर्बादी करने वाला लगता है। इस वर्ग से समाज के लिए कभी भी भले की उम्मीद करना व्यर्थ है। सिर्फ अपने लिए जीने वाले इस वर्ग के लोगों के लिए दूसरे लोगों को जरूरत की सुविधाएं उपलब्ध कराना भी व्यर्थ लग सकता है। ऐसे कठिन संकट के समय में राज्य सरकार, सच्ची मददगार बन कर सामने आई है। छत्तीसगढ़ में सरकार ने घर के मुखिया को खोजने वाले परिवारों के बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाने की योजना बनाई है और इस पर तुरंत काम शुरू कर दिया है।
यह योजना वास्तव में हजारों परिवारों को खुशियां दे सकती है। माता पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद जो कमी पैदा हुई है, जो रिक्तता आई है, उसकी भरपाई तो कभी नहीं की जा सकती।यह भरपाई कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। यह सच्चाई है। लेकिन ऐसे संकट के समय में भी लोगों की कुछ अनिवार्य जरूरते हैं जिन की पूर्ति होना अवश्य जरूरी है। इसके बिना समाज चल नहीं सकता। आगे बढ़ नहीं सकता। समाज में एक जड़ता, विषमता, विसंगति, असंतुलन की स्थिति निर्मित हो जाएगी। असल बात न्यूज ने भी घर के मुखिया की मृत्यु के बाद घर परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष जिस तरह की समस्याएं पैदा हो गई है, कल्पना नहीं की जा सकने वाली परेशानियां पैदा हो गई है,उस और सरकार और जागरूक लोगों का ध्यान बार-बार आकर्षित करने की कोशिश की है। अब छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार ने कोविड 19 महामारी से मृत व्यक्तियों के बेसहारा, अनाथ बच्चों को निःशुल्क स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराने महतारी दुलार योजना लागू की है।
राज्य शासन द्वारा यह योजना शैक्षणिक सत्र 2021-22 से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में लागू होगा तथा इसका क्रियान्वयन स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा किया जाएगा।इसमें प्रतिभावान छात्रों को व्यवसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु प्रशिक्षण अथवा कोचिंग सुविधा उपलब्ध कराने तथा कक्षा पहली से 8 वी तक 500 रुपये तथा 9 वी से 12 कक्षा तक एक हजार रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति देने की भी योजना है। पीड़ित बच्चों को पूरी शिक्षा निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।उन बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता की कोरोना से मृत्यु हो गई है ,जो अत्यधिक वेदना दुखों से जूझ रहे हैं, ऐसे परिवारों के लिए निश्चित रूप से राज्य सरकार की यह योजना बड़ा सहारा बनने में सहायक साबित होगी। ऐसे पीड़ित परिवार नियति के चलते अकस्मात अंत्योदय से भी नीचे महा अंत्योदय की श्रेणी में आ गए हैं। नियति ने उनके साथ ऐसा क्रूर मजाक किया है जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। उन्हें इसे भुगतना है। इस पीड़ा कष्टों से उबरना है। छोटी सी भी मदद उनके लिए बड़ी सहायता के जैसी है। इसमें ऐसी बातों का ध्यान रखना पड़ेगा कि इस जरूरतमंदों की सेवा करने योजना का दूसरे सरकारी योजना के जैसा हाल नहीं होना चाहिए। प्रत्येक जरूरतमंदों को सही तरीके से चयनित किया जाना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि उसके फायदे से कोई पात्र जरूरतमंद वंचित ना रह जाए। उद्देश्य अनुरूप योजना का लाभ सभी को मिलना चाहिए। इसमें कहीं भेदभाव नहीं होना चाहिए। जात पात, या किसी अन्य वर्ग के आधार पर इसमें कोई विभाजन नहीं होना चाहिए। जो योजना का लाभ चाहते हैं, जरूरतमंद है, पीड़ित है, पात्रता रखते हैं, सभी को इसका लाभ मिलना चाहिए।