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वर्मी कम्पोस्ट ने महिलाओं की आर्थिक स्थिति को किया सुदृढ़ खेती किसानी की लागत में आई कमी

        रायपुर । असल बात न्यूज़।   छत्तीसगढ़ में गोधन-न्याय योजना से गोठानों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने वाली स्व सहायता समूह की महिलाओं की...

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     रायपुर । असल बात न्यूज़।

 छत्तीसगढ़ में गोधन-न्याय योजना से गोठानों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने वाली स्व सहायता समूह की महिलाओं की आमदनी में इजाफा हो रहा है वहीं अब किसानों को जैविक खाद अपने ही गांव में मिलने लगा है। वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से खेती किसानी की लागत भी कम हो गयी है। बस्तर अंचल में उपजाई जाने वाली फसलों के स्वाद और खुशबू की मिसाल सभी देते हैं, मगर पिछले कुछ सालों से इस अंचल में भी अधिक उपज की भावना से किसानों ने धड़ल्ले से रासायनिक खाद का उपयोग प्रारंभ कर दिया था।

    रासायनिक खाद से की जाने वाली खेती से पहले तो किसानों की उपज बढ़ती हुई महसूस हो रही थी, मगर समय के साथ बंजर होती जमीन ने अधिक खाद की मांग शुरु कर दी। परिणाम यह हुआ कि किसानों की लागत लगातार बढ़ती चली गई और फसल की स्वाद और खुशबू भी गायब हो गई और तो और रासायनिक खाद से उत्पन्न फसल के कारण शरीर में पड़ने वाले दुष्प्रभाव भी दिखाई देने लगे हैं। 

     मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा खेतों को आवारा मवेशियों से बचाने के लिए गौठानों को पुनर्जीवित करने के साथ ही रासायनिक खाद से मानव शरीर, भूमि और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए इन्हीं गौठानों में गोबर से बनने वाले खाद के निर्माण को प्रोत्साहन देने का कार्य प्रारंभ किया गया, जिसके कारण बस्तर सहित पूरे प्रदेश मेंएक बार फिर से जैविक खेती का प्रचलन बढ़ने लगा है।

    शासन की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना अंतर्गत गोठान ग्रामों की महिला समितियों के अथक प्रयास से वर्मी कम्पोस्ट निर्माण कर विक्रय किया जा रहा है। कृषक एक बार फिर से जैविक एवं टिकाऊ खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। गोधन न्याय योजना अंतर्गत आज पर्यन्त तक बस्तर जिले में कुल 11,860 क्विं. वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन 6,158 क्विं वर्मी कम्पोस्ट का वितरण किया जा चुका है, साथ ही कृषि, उद्यानिकी, वन एवं अन्य विभागों द्वारा विभागीय योजना अंतर्गत वर्मी कम्पोस्ट खरीदकर कृषकों को वितरित किया जा रहा है। जिले में अब तक लगभग 61 लाख 85 हजार रूपए का वर्मी कम्पोस्ट गोठान समितियों द्वारा विक्रय किया गया है, जिसके कारण गोठानों में कार्यरत स्व सहायता महिलाओं के समूहों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो रही है। स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के साथ-साथ विभिन्न आजीविका संबंधी गतिविधियाँ-जैसे, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन एवं अन्य उत्पादों का निर्माण एवं विक्रय कर अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त की जा रही है।