रायपुर. छत्तीसगढ़ में राजकीय चिह्न, भाषा, पक्षी, फल व फूल हमने तय हो चुके हैं जिस पर हमें गर्व भी है। पर कहीं न कहीं राजकीय खेल तय न हो पा...
रायपुर. छत्तीसगढ़ में राजकीय चिह्न, भाषा, पक्षी, फल व फूल हमने तय हो चुके हैं जिस पर हमें गर्व भी है। पर कहीं न कहीं राजकीय खेल तय न हो पाने की टीस हम छत्तीसगढ़ियों के मन में बाकी रह गई है। तीन सरकार और राज्य गठन के 22 साल बाद भी हम छत्तीसगढ़ के लोग अब भी अपने राजकीय खेल के तय होने के इंतजार में है।
हम भारतीय मैदान से ज्यादा इसके बाहर खेल खेलते हैं। हाकी-क्रिकेट हो या अन्य कोई परंपरागत खेल हर घर, गली-नुक्कड़ में इसके अघोषित विशेषज्ञ हमें मिल ही जाएंगे, क्योंकि इससे जुड़ी भावनाएं ही हैं, जो हमें ऐसा करने पर मजबूर करती है। हम छत्तीसगढ़िया भी खेल के लिए इस दीवानगी से अछूते नहीं है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में परंपरागत गिल्ली-डंडा, फुगड़ी से लेकर क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन सरीखे प्रोफेशनल खेलों के दीवानों की कमी नहीं है। इन सबके बावजूद हम छत्तीसगढ़ियों को लिए, कहने को अपना कोई ऐसा खेल नहीं है जिसे हम गौरव के साथ प्रशासनिक तौर पर अपना कह सकें। दरअसल बात यह है कि छत्तीसगढ़ ने कभी भी अपना कोई राजकीय खेल घोषित ही नहीं किया है।
राज्यों के अपने राजकीय खेल
भारत के 29 में से तकरीबन हर राज्य के अपने राजकीय खेल घोषित हैं। छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के भी अपने-अपने राजकीय खेल हैं।
आखिरकार क्यों चाहिए हमें अपना खेल
यदि आप भी यह सवाल कर रहे हैं कि ऐसा जरूरी क्यों है तो इसका जवाब देश की ओर से खेलों में छत्तीसगढ़ के योगदान के आंकड़ों से पता चल जाएगा। हाल ही में हुए बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स कि बात की जाए तो भारतीय खिलाड़ियों ने 61 मेडल अपने नाम किए। इसमें छत्तीसगढ़ का गौरव सिर्फ आकर्षि कश्यप ही रही। बात यही नहीं रुकती 1900 में ओलंपिक खेलों की शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक छत्तीसगढ़ के कुछ ही खिलाड़ी रहे जिन्होंने यहां तक का सफर तय किया है।
लेजली क्लाडियस, आर.बेस्टियन, विसेंट लकड़ा, राजेन्द्र प्रसाद, हनुमान सिंह से लेकर रियो ओलंपिक 2016 की हाकी प्लेयर रेणुका सिंह समेत गिनती के ही नाम हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोफेशनल्ज्मि और ब्रांड बिल्डिंग के बगैर आज के दौर में कोई भी खेल अब आसान नहीं है। छत्तीसगढ़ को भी खेल जगत में आगे बढ़ना है तो खेल से पहले लोगों में खेल भावना लाना प्राथमिकता होनी चाहिए।
मंत्रालय स्तर का मामला
राजकीय खेल के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह मंत्रालय स्तर का मामला है। खेल विभाग ने अब तक इस संबंध में कोई प्रस्ताव तैयार नहीं भेजा है।
-श्वेता श्रीवास्तव सिंहा, संचालक, खेल एवं युवा कल्याण विभाग
मुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे प्रस्ताव
छत्तीसगढ़ में अब तक राजकीय खेल घोषित करने संबंधी कभी कोई पहल नहीं हुई है। ओलंपिक संघ की ओर से राजकीय खेल तय करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने रखेंगे।
-गुरुचरण सिंह होरा, महासचिव
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ
मैं चाहूंगी बैडमिंटन बने प्रदेश का खेल
मैं बैडमिंटन खिलाड़ी हूं, इसलिए चाहूंगी कि बैडमिंटन को राजकीय खेल बनाया जाए। यह ऐसा खेल है जो गली-मोहल्लों से लेकर ओलम्पिक स्तर तक खेला जाता है।
-आकर्षी कश्यप
इंटरनेशनल बैंडमिंटन खिलाड़ी
इंटरनेशनल लेवल का गेम बने राजकीय खेल
किसी ऐसे खेल को राजकीय खेल बनाना चाहिए, जो कि इंटरनेशनल लेवल पर खेला जाता हो और इसे प्रोत्साहित करने ग्राउंड लेवल पर प्रयास भी हो। इससे मेडल तालिका में भी प्रदेश का योगदान बढ़ने की संभावना होगी।
-रुस्तम सारंग, इंटरनेशनल वेटलिफ्टर
क्षेत्रीय खेल हमारी संस्कृति का हिस्सा
किसी क्षेत्रीय खेल को राजकीय खेल बनाना चाहिए, जिससे प्रदेश के लोग इससे जुड़ाव महसूस कर सकें। क्षेत्रीय स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने हमारी संस्था प्रयासरत है। उधवपूक, फुगड़ी, टूवे लंगड़ी, संकली, पिट्टुल ऐसे खेल हैं, जो सदियों से यहां खेले जाते हैं।
-चंद्रशेखर चकोर
-अध्यक्ष, छग प्रदेश लोक खेल एसोसिएशन
अन्य राज्यों के राजकीय खेल
राजस्थान-बास्केटबाल
हरियाणा-कुश्ती
मध्य प्रदेश-मलखंभ
तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब-कबड्डी,
उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा-हाकी
उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल-फुटबाल
सिक्किम-तीरंदाजी
नागालैंड-नागा रेसलिंग, मणिपुर-पोलो,
केरल- फुटबाल, वालीबाल
कर्नाटक- क्रिकेट