दुर्ग। असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता बच्ची के साथ अनाचार का दोषी पाए जाने पर अभियुक्त को आज आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।चतुर्थ ...
दुर्ग।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
बच्ची के साथ अनाचार का दोषी पाए जाने पर अभियुक्त को आज आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।चतुर्थ एफटीएससी विशेष न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश दुर्ग श्रीमती संगीता नवीन तिवारी के न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के मामले में यह सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अभियुक्त को ₹50 हजार रुपए का अर्थदंड भी अदा करना होगा। अर्थदंड अदा नहीं करने पर उसे अलग से एक साल की सजा भुगताई जाएगी। न्यायालय के द्वारा अर्थदंड की संपूर्ण राशि अभियोक्तरी को बतौर क्षतिपूर्ति प्रदान करने का निर्देश दिया गया है। बच्ची के साथ अनाचार के मामले में न्यायालय का फैसला सिर्फ एक साल 4 महीने के भीतर आ गया है।
सुपेला भिलाई थाना क्षेत्र के अंतर्गत का यह मामला 25 जुलाई 2021 का है और न्यायालय के द्वारा इस प्रकरण में तेजी से सुनवाई की गई और इसमें लगभग एक वर्ष और 4 महीने तक सुनवाई और विचारण के बाद इसमें फैसला आ गया है। मामले के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार इसमें आरोपी वी चिरंजीवी उम्र 32 वर्ष सेक्टर 7 भिलाई का निवासी है ।अभियोक्त्री जो कि नाबालिग उम्र लगभग 6 वर्ष है थाना सुपेला क्षेत्र भिलाई की निवासी है। आरोपी अभियोक्तरी के घर के पास गार्ड का काम करता था तथा अभियोक्तरी आरोपी को बचपन से जानती थी। अभियोक्त्री ने अपनी माता को जानकारी दी थी कि आरोपी ने उसके साथ गंदा काम किया है जिसके बाद उसके पिता ने दोस्तों के साथ थाने में जाकर मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पीड़िता घर के आंगन में गुमसुम उदास बैठी थी तब उसकी माता ने उसकी परेशानी के बारे में पूछा था। उसके पिता जब घर पर लौटे तो उसकी पत्नी ने लड़की की परेशानी के बारे में जानकारी दी और उसने किसी अनहोनी के होने की आशंका जाहिर की।
न्यायालय ने मामले में विचारण में पाया कि अभियुक्त के द्वारा लगभग 6 वर्ष की अवयस्क बालिका का व्यपहरण कर बहला-फुसलाकर चिपस दिलाने का लालच देकर और फिर धमकी देकर उसके साथ गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला जैसा अपराध किया गया है। अभियोक्त्री को उक्त अपराध के समय से ही मानसिक और शारीरिक पीड़ा को भुगतना पड़ा है जिसकी कल्पना करना भी असहनीय है। न्यायालय के द्वारा अभियुक्त वाई चिरंजीवी को भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत 3 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹100 अर्थदंड तथा अर्थदंड नहीं पटाने पर 1 माह की अतिरिक्त सजा और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के मामले में आजीवन सश्रम कारावास तथा ₹50000 का अर्थदंड व अर्थदंड नहीं पटाने पर एक साल की सजा सुनाई गई है। यह दोनों सजाएं एक साथ चलेगी।
अभियुक्त के अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि अभियुक्त 32 वर्षीय युवक है और उसका यह पहला अपराध है अतः उसे न्यूनतम दंड दिया जाए।
न्यायालय के द्वारा इस मामले में आरोपी के गंभीर कृकृत्य के मद्देनजर यह माना गया कि अपराध की प्रवृत्ति को दृष्टिगत रखते हुए दंड के प्रति नरम रुख अपनाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। अभियुक्त के द्वारा 12 वर्ष से कम उम्र की अवयस्क बालिका अभियोक्त्री के साथ लैंगिक संभोग कर बलातसंग एवम गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला का अपराध कारित किया गया है। बालकों के प्रति दैनिक अपराधों की बढ़ती घटनाएं, गंभीर निंदनीय होने के साथ समाज के व्यवस्था के प्रति अपराध की श्रेणी में आने वाला गंभीरतम अपराध है। ऐसे अपराध से बालक की सुरक्षा और प्रतिष्ठा धूमिल होने के साथ ही ऐसा जघन्य अपराध उसके जीवन एवं भविष्य को भी कुंठित एवं प्रभावित करने वाला है। समाज का यह नैतिक कर्तव्य है कि बालकों के हितों का संरक्षण करें अभियुक्त का कृत्य न केवल राज्य के प्रति अपराध है बल्कि समाज के प्रति अपराध है।
अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक संतोष कसार ने पक्ष रखा।