दुर्ग । असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और रखने के मामले में एक वन परिक्षेत्र अधिक...
दुर्ग ।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और रखने के मामले में एक वन परिक्षेत्र अधिकारी को 5 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने इस अधिकारी के विभिन्न ठिकानों पर छापा मारा था तो उसके यहां अनुपातहीन संपत्ति पाई गई। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम आदित्य जोशी के न्यायालय ने दोष सिद्ध पाए जाने पर यह सजा सुनाई है। अभियुक्त को ₹10 हजार रुपए अर्थदंड भी जमा करना होगा, अन्यथा 3 महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
न्यायालय के द्वारा आरोपी को दोष सिद्ध पाए जाने पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (13) 1, ई (13) 2 के तहत यह सजा सुनाई गई है। अभियोजन के अनुसार मामले के तथ्य इस प्रकार है कि आरोपी धमधा जिला दुर्ग में वनरक्षक वन परीक्षेत्र अधिकारी के रूप में लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते हुए आलोच्य अवधि 11 नवंबर 1973 से 15 नवंबर 2016 के दौरान अपने तथा अपने परिवार के ज्ञात स्रोतों से उपार्जित आय से अधिक 45 लाख 63 हजार328 रुपए मूल्य के अनुपातहीन संपत्ति अर्जित कर आपराधिक अवचार कारित किया। मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर को गोपनीय सूचना प्राप्त हुई थी जिसके आधार पर उसकी जांच की गई।
न्यायालय ने विचारण एवम सुनवाई के दौरान आरोपी के नाम पर धारित प्लाट ग्राम ठेलकाडीह, गोविंदपुर जिला कांकेर की 11 डिसमिल जमीन को 4 दिसंबर 2009 को बेचे जाने से प्राप्त आय को आरोपी की आय मान्य किया। विवेचना के दौरान आरोपी के सेविंग खाते में 49 हजार 748 रुपए प्राप्त हुआ। आरोपी के नाम पर देना बैंक शाखा कांकेर में लगभग ₹281000, उसकी पत्नी के नाम पर एसबीआई कांकेर ब्रांच में ₹298000, आरोपी के नाम पर ₹270000 एसबीआई मुख्य शाखा कांकेर में पाया गया। न्यायालय ने उसकी लगभग ₹6 लाख रुपए की अचल संपत्ति को मान्य किया। न्यायालय ने पाया कि आरोपी को वेतन के रूप में पदस्थापना से अभी तक लगभग 27लाख 83000 रुपए अर्जित हुए जिसमें से उसने 50% राशि सामान्य जीवन यापन में खर्च की। आरोपी की पत्नी के नाम पर चल रहे वाहन से प्राप्त आय को भी मान्य किया गया।
प्रकरण में न्यायालय के समक्ष बचाव पक्ष की ओर से आरोपी की पत्नी के ब्यूटी पार्लर से प्राप्त आय का सर्टिफिकेट लगाया गया था जिसे न्यायालय ने प्रमाणित नहीं माना।