बांध जैसी अधोसंरचनाओं में काफी व्यय आता है और भूमि भी लगती है नरवा योजना में स्थानीय संसाधनों से काफी कम लागत से जलसंरक्षण की दक्ष अधोसंर...
बांध जैसी अधोसंरचनाओं में काफी व्यय आता है और भूमि भी लगती है
नरवा योजना में स्थानीय संसाधनों से काफी कम लागत से जलसंरक्षण की दक्ष अधोसंरचनाएं हो रही तैयार
रायपुर,
संस्कृत में सूरज के बहुत से पर्यायवाची नामों में से एक है अंबु तस्कर। पानी चुरा लेने वाला, क्योंकि तालाब और अन्य जलाशयों का अधिकतर पानी सूरज की गर्मी की वजह से सूख जाता है। इसलिए तालाबों का ढलान इस तरह से रखा जाता है ताकि अधिकतम पानी सुरक्षित रह सके। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने नरवा योजना के माध्यम से भूमिगत जल को रिचार्ज करने का कार्य किया है ताकि पानी की हर एक बूंद को सुरक्षित रखा जा सके। इससे नाले भी अमूमन बारहमासी रहते हैं और भूमिगत जल का स्तर भी बढ़ जाता है जिसकी वजह से किसान रबी फसल भी बेहतर तरीके से ले पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में नरवा योजना के अंतर्गत लगभग 28 हजार नालों को चयनित किया गया है और इसमें 12 हजार से अधिक नाले उपचारित कर लिये गये हैं। इसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर में 10 से 22 सेमी तक वृद्धि हुई है। जहां बांध जैसी अधोसंरचनाएं काफी जगह घेरती हैं और सीधे एक्सपोजर होने की वजह से इनमें पानी का भी नुकसान होता है ग्राउंड वाटर रिचार्ज की नरवा योजना में पानी और भूमि दोनों का ही नुकसान नहीं होता।
पहाड़ से इतना पानी आता था कि सब्जी फसल बह जाती थी, अब रबी फसल भी
संभव- मोहला मानपुर अंबागढ़ जिले में कोहका गांव है। यह गांव पहाड़ के ठीक
नीचे है। बारिश जब होती थी तो पूरा पानी बह जाता और नीचे सब्जी की फसल भी
तबाह हो जाती थी। चूंकि पहाड़ी से पानी तेजी से उतरता था इसलिए ग्राउंड वाटर
रिचार्ज भी नहीं हो पाता। नरवा योजना के अंतर्गत यहां चेकडेम बना। अब पानी
की एक एक बूंद सहेज लेते हैं। सब्जी फसल का नुकसान भी नहीं होता और रबी की
फसल के लिए भी पर्याप्त पानी की गुंजाइश बन गई है।
नरवा से बढ़ा पानी तो हाथियों की गतिशीलता भी थमी- रायगढ़ वनमंडल का
उदाहरण लें। यहां वनक्षेत्रों में भूमिगत जल को रिचार्ज करने नरवा योजना
अंतर्गत कार्य किया गया। नालों के उपचार के बाद अब इन नालों में अप्रैल और
मई महीनों तक पानी रहने लगा है। इससे आसपास के किसानों के लिए खेती भी आसान
हुई है। हाथी प्रभावित क्षेत्र जुनवानी, बंगुरसिया, अमलीडीह आदि में पानी
की पर्याप्त उपलब्धता के चलते हाथियों की गतिशीलता थम रही है।
नाले में इतना गाद था कि धारा ही बदल गई थी, अब पांच फीट गहरे नाले
से हो रही सिंचाई- दुर्ग जिले के धमधा ब्लाक में लुमती नाला बहता है। नाले
में इतनी गाद जम गई थी कि नाला पूरी तरह अप्रभावी रह गया था। नरवा योजना
अंतर्गत इसका जीर्णाेद्धार आरंभ हुआ। पांच फीट गाद साफ की गई। इसके साथ ही
नरवा के स्ट्रक्चर भी तैयार किये गये। अब लुमती नाले को संजीवनी मिल गई है।
आसपास के छह गांवों में बोरवेल भी गर्मी के दिनों में भी जीवंत हो गये
हैं।
खोखनिया नाला का नरवा योजना अंतर्गत विकास हुआ, तो रोज आने लगे पर्यटक
भी - सूरजपुर जिले के पिलखा पहाड़ के अंतर्गत खोखनिया नाला का विकास नरवा
योजना के अंतर्गत किया गया। यह खोखनिया नाला पिलखा पहाड़ के ठीक नीचे हैं।
पहाड़ के ठीक नीचे बने एक सुन्दर सरोवर के वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर से
इतना सुन्दर नजारा तैयार हुआ कि इसे देखने हर दिन लगभग 150 से 200 पर्यटक
आते हैं। लगभग 500 परिवारों के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध हुई है तथा आसपास
के सात गांवों में भूमिगत जल 30 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है।
इसके लिए संसाधन स्थानीय ही- नरवा योजना प्रकृति के लिए, प्रकृति के माध्यम से ही चलाई जा रही है। इसके स्ट्रक्चर देखें। ब्रशवुड चेक को लें, दिसंबर जनवरी के बाद जब छोटे नालों में पानी कम हो जाता है तब बेशरम की लकड़ियों जैसी झाड़ियों से ब्रशवुड चेक बनाते हैं और आसपास के खेतों के लिए रबी फसल हेतु पानी मिल जाता है। धमतरी वनमंडल का उदाहरण लें। यहां पर कंटूर ट्रेन्चिंग किये गए हैं। इसके माध्यम से नालों का जलस्तर तेजी से बढ़ा है। लूज बोल्डर चेक और गैबियन जैसे स्ट्रक्चर के माध्यम से नाले के पानी का वेग कम हो जाता है। गति धीमी पड़ जाने से वाटर रिचार्ज तेज हो जाता है।