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ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के बाद कम से कम 278 लोगों की जान चली गई है

  नई दिल्‍ली: ओडिशा के बालासोर रेल हादसे को हुए 80 घंटों से ज़्यादा का वक्त निकल चुका है. 278 यात्रियों की जान इस हादसे में गई है. कई पार्...

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नई दिल्‍ली: ओडिशा के बालासोर रेल हादसे को हुए 80 घंटों से ज़्यादा का वक्त निकल चुका है. 278 यात्रियों की जान इस हादसे में गई है. कई पार्थिव शरीर की पहचान एक बड़ी समस्या है. रेलवे ने मृतकों के परिजनों से अपील की है कि 139 नंबर पर कॉल करके वो अपने जानने वालों की पहचान करें. दिल्ली से एम्स सहित कई और केंद्रीय अस्पतालों के एनाटोमी और फॉरेंसिक मेडिसिन के डॉक्टर रवाना हुए हैं. एंबामिंग के ज़रिए कोशिश की जा रही है कि पार्थिव शरीर को अधिक से अधिक देर तक प्रिजर्व किया जा सके. लेकिन बॉडी अगर डैमेज है, तब ये तकनीक भी ज़्यादा देर तक के लिए कारगर नहीं. क्या है एंबामिंग (Embalming) और क्या ये इस हादसे में जान गंवाए यात्रियों के शरीर को अधिक वक्त तक डीकंपोज होने से बचा सकती है? इस मुद्दे पर NDTV ने एम्स के एनाटोमी विभाग के प्रमुख डॉक्टर ए. शरीफ़ से बातचीत की...! 

बॉडी डीकंपोज कितनी देर में शुरू हो जाती है?
जवाब- आमतौर पर डीकंपोज परिवेश के तापमान और कई बातों पर निर्भर करता है. 7 से 8 घंटे तक तो बॉडी ठीक ही रहती है और करीब 12 घंटे तक बशर्ते तापमान बहुत अधिक न हो, इसलिए ठंडा होने पर डीकंपोज में देरी होती है. यही वजह है कि बर्फ या ठंडी जगह में बॉडी को प्रिजर्व किया जाता है. आमतौर पर 12 घंटे के भीतर एंबालिंग कर देते हैं, नहीं तो इससे ज्यादा देर होने से डीकंपोजिशन शुरू हो जाता है.

एंबामिंग जो करते हैं उसके बाद बॉडी कितने दिनों तक रह सकती है?
जवाब- एंबामिंग अगर ठीक से हो गया है, तो बहुत समय तक रख सकते हैं. हम सालों तक रख सकते हैं, लेकिन एंबामिंग अगर ठीक हो गया है. एंबामिंग अगर सही नहीं हुआ है, तो उसमें भी डीकंपोजिशन शुरू हो जाता है.

एम्स से भी टीम गई है. बाकी दूसरे सेंट्रल गवर्नमेंट के हॉस्पिटल से भी एनाटोमी की टीम गई है,  तो ऐसे में ये मानकर चलना चाहिए कि जब तक आइडेंटीफिकेशन न हो जाए, तब एंबामिंग अच्छे से कर दें ताकि उनके परिजन उनको पहचान सकें? 
जवाब- हां-हां, अगर बॉडी डैमेज हो गई है, तो थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन जितना हो सके उतना मैक्सिमम लोकल इंजेक्शन देकर एंबामिंग फ्लूड को इन्फिल्ट्रेट करने की कोशिश करते हैं. जितना ज़्यादा फ्लूड इंजेक्ट करते हैं, जितना महंगाा करते हैं, तो एंबामिंग ठीक होता है. अगर बॉडी इंटैक्ट है, तो एंबामिंग बहुत अच्छा होता है, क्योंकि वो ब्लड वेसल के आर्टिररी के ज़रिए एंबामिंग करते हैं. ऐसे में पूरे शरीर में पहुंच जाता है फ्लूड. जहां-जहां फ्लूड पहुंच गया, वहां-वहां सड़न को रोकता है. अगर नहीं पहुंचा तो शव का बिगड़ना रुकता नहीं. 

मान लीजिए, रेल हादसे के बाद जिस तरह से आइडेंटीफिकेशन में दिक्कत हो रही है, तो बॉडी को नुकसान भी पहुंचा होगा? ऐसे में एंबामिंग वाली हमारी तकनीक क्या पूरी तरह से कारगर हो पाएगी, जो सालों की बात आप कह रहे हैं. अगर शरीर का कोई हिस्सा डैमेज हुआ होगा इस एक्सीडेंट में, तो क्या बहुत लंबे समय तक प्रिजर्व रखा जा सकता है? 
जवाब- बॉडी डैमेज है, तो उसको लोकल इंजेक्शन के जरिए एंबामिंग करना पड़ता है. आमतौर पर वो उतना अच्छा से नहीं होता, जो इनटैक्ट बॉडी में होता है. इसलिए ज्यादा देर रखने की सलाह नहीं दी जाती है. अगर बॉडी डैमेज है, तो थोड़ी बहुत कोशिश कर सकते हैं, जितना हो सके उतना एंबामिंग फ्लूइड इंजेक्ट करने की, फिर भी हम ये नहीं कह सकते कि सही तरीके से एंबामिंग होता है. क्‍योंकि ऐसी स्थिति में वो बहुत मुश्किल होता है. इसलिए ये सलाह दी जाती है कि बॉडी को ज्‍यादा समय तक नहीं रखना है. 


बता दें कि कोरोमंडल एक्सप्रेस शुक्रवार शाम करीब सात बजे ‘लूप लाइन' पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे इसके (कोरोमंडल एक्सप्रेस के) अधिकतर डिब्बे पटरी से उतर गए. उसी समय वहां से गुजर रही तेज रफ्तार बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा कर पटरी से उतर गए। इस हादसे में कम से कम 278 लोगों की जान चली गई. अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि अभी भी 101 शवों की पहचान की जानी बाकी है.