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राजनीति का अभी माहौल नहीं बन रहा है जिससे कुछ भी समझना मुश्किल

राजनीतिक  माहौल  अभी अलसाया सा, जिससे कुछ समझना मुश्किल 00   छत्तीसगढ़ में पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन यहां का पूरा र...

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राजनीतिक माहौल अभी अलसाया सा, जिससे कुछ समझना मुश्किल


00 छत्तीसगढ़ में पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन यहां का पूरा राजनीतिक माहौल अभी भी अलसाया सा नजर आ रहा है। राजनीतिक दलों की मतदाताओं की नब्ज पकड़ने में सांस फूलती दिख रही है। दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी दो वर्ग में बंटे नजर आ रहे हैं एक वह जिन्हें राजनीतिक तौर पर कतिपय फायदा मिला है और दूसरा वह वर्ग जिसके लोग कोई भी फायदा पाने से वंचित रह गए हैं। इसमें से पहला वर्ग संतुष्ट है तो दूसरे वर्ग के लोगों में असंतोष भी नजर आ रहा है। 

00  पचास % से अधिक लोगों को फर्क नहीं पड़ता कि किसी भी पार्टी की सरकार आए। राजनीतिक दलों को इसी वर्ग के लोगों को रिझाने अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

00  छत्तीसगढ़ में विभिन्न एजेंसियों के बार-बार छापे से भी राजनीतिक माहौल ठीक से नहीं बन रहा है।

 छत्तीसगढ़ ।

असल बात न्यूज़।।  

         00 राजनीतिक गलियारा   

       00  अशोक त्रिपाठी     

अब वह दिन तो रह नहीं गए कि समर्पित कार्यकर्ता,अपनी पार्टी, अपने पसंदीदा उम्मीदवार का काम करने के लिए, तपती दोपहरी में साइकिल से, और साइकिल नहीं मिली तो पसीना बहाते  पैदल ही काम करने के लिए निकल पड़ते थे। राजनीति अब धनबल से लबलबा गई है। कार्यकर्ताओं के पास भी भरपूर पैसा आ गया है। साइकिल, मोटरसाइकिल की बात तो दूर अब कार्यकर्ता एसी वाली महंगी कारों में दौड़ लगाते हैं। वही किसी के प्रति कोई बहुत अधिक प्रतिबद्धता, समर्पण भावना भी नजर नहीं आती।किसी नेता को अपनी ऐसी कोई विशाल छवि बनाने के लिए वर्षों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी कि उसके एक बुलावे पर भारी भीड़ उमड़ पड़े। इस हालात में छत्तीसगढ़ में जहां सिर्फ 5 महीने बाद प्रदेश का सबसे बड़ा चुनाव होने जा रहा है वहां राजनीति अभी अलसाई सी नजर आ रही है।इस बड़े चुनाव को लेकर यहां कोई माहौल नहीं दिख रहा है। कोई मुद्दा तैयार नहीं दिखता है। कोई लहर नहीं चल रही है। और ना ही किसी कोने में कोई राजनीतिक सुगबुगाहट नजर आ रही है। लग रहा है कि यह चुनाव प्रत्येक विधानसभा सीट पर वन टू वन होने वाला है। प्रत्येक विधानसभा सीट पर अपने अलग मुद्दे होंगे और उसी आधार पर मतदाता, मतदान करेंगे। राजनीतिक पार्टियों की जो छवि होती है,जनमानस पर जो उसका व्यापक प्रभाव होता है वह कम होता नजर आ रहा है। आम कार्यकर्ताओं में भी राजनीतिक माहौल को लेकर बहुत अधिक उत्सुकता नहीं दिखती और वैसे यह एक तरह की परिपाटी बन गई है कि बड़ी संख्या में कार्यकर्ता, टिकट वितरण के बाद ही सक्रिय होने के मूड में नजर आते हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य को भौगोलिक तौर पर दो बड़े हिस्सों में बांटा जा सकता है पहला मैदानी इलाका और दूसरा पहाड़ी इलाका, वनवासी क्षेत्र। और यहां इन इलाकों में राजनीतिक हालात भी अलग-अलग तरह से प्रभावित होती नजर आती रही है। यहां के सरगुजा संभाग के वनवासी क्षेत्रों में अलग स्थिति नजर आती है तो वही बस्तर संभाग के पहाड़ी इलाकों में, वनवासी क्षेत्रों में अलग राजनीतिक हालात नजर आते हैं। दोनों इलाकों में राजनीति अलग अलग कारकों से प्रभावित होती रही है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि अब इन वनवासी क्षेत्रों में किसी भी मतदाताओं को बरगलाया नहीं जा सकता। राजनीतिक दलों को ऐसे काम करने होंगे जिससे वह मतदाता उनके पक्ष में प्रभावित हो सके, तभी वे उनके लिए मतदान करेंगे। 

वर्ष 2000 के बाद से जो भी चुनाव हो रहा है,उसके नतीजों से राजनीतिक विश्लेषकों को यह बात समझ में आ गई है कि अब विकास कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। सिर्फ 'विकास' के दावे और वादे कर मतदाताओं को प्रभावित नहीं किया जा सकता। लग रहा है कि आम मतदाताओं को भी समझ में आ गया है कि जो भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में आएगी वह विकास के काम तो करेगी ही जनता के हित के काम तो करेगी ही। हम विकास करते हैं, हम विकास करेंगे के जैसे नारों से अब मतदाताओं को प्रभावित कर पाना मुश्किल दिखने लगा है। उदाहरण के तौर पर हम छत्तीसगढ़ के बारे में ही बात करें, तो इस राज्य की पूरी तस्वीर आज काफी कुछ बदल गई है। छत्तीसगढ़ पिछले 20 वर्षों में विकास के पथ पर काफी तेजी से आगे बढ़ा है। भारतीय जनता पार्टी, पिछले विधानसभा चुनाव में यहां विकास के बड़े-बड़े दावों और वादों के साथ जनता के बीच गई, लेकिन चुनाव के जैसे परिणाम आए वह स्वयं को जरूर ठगी हुई महसूस कर रही होगी। वास्तविकता है कि वह विकास के दावों और वादों से आम जनता का विश्वास नहीं जीत सकी। चुनाव के और कई सारे फैक्टर थे वह उसमें कमजोर साबित हुई, जिसका उसे नुकसान उठाना पड़ा। 

छत्तीसगढ़ राज्य का बजट पिछले 5 वर्षों में और अधिक बढ़ गया है। यहां गांव गांव, शहर शहर में विकास के काम होते नजर आ जायेंगे। जगह जगह लोगों की समस्याएं दूर हो रही हैं। सस्ता चावल पहले भी मिल रहा था और अभी भी मिल रहा है। हां,इसके हितग्राहियों की संख्या जरूर बढ़ गई है। लेकिन, यह विकास आम लोगों को कहीं प्रभावित कर रहा होगा, इसका चुनाव पर कोई असर दिख सकता है यह दावे के साथ कहीं नहीं कहा जा सकता। लोगों ने विकास के साथ अब कमीशन को भी जोड़ लिया है। आम लोगों ने देखा है कि स्कूटर,साइकिल में घूमने वाले उनके नेता विकास करते-करते करोड़ों की मंहगी कारों में घूमने लगते हैं,और यह साधन विकास के रास्ते से ही चलकर उनके पास जुटे हैं। लोगों को यह समझ में आ गया है ऐसा 'विकास' कहीं ना कहीं 'कमीशन' भी पैदा करता है और इससे जुड़े हुए लोग हैं उनके पास वोट मांगने पहुंचते हैं। विकास के बारे में ऐसी नई धारणा को बदल पाना किसी के लिए सहज ही आसान नहीं है। 

छत्तीसगढ़ में फिलहाल पड़ रही तेज गर्मी कोई राजनीतिक माहौल नहीं बनने दे रही है। सुबह 10:00 बजे के बाद से शाम 5:00 बजे तक घर से बाहर निकलने वालों की संख्या काफी कम है। ऐसे समय में सड़कें भी  लगभग पूरी सूनी नजर आती है और किसी के लिए कोई बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम कर पाना आसान नहीं है। और यह शादी ब्याह का भी सीजन है। ज्यादातर परिवार इन सामाजिक परिवारिक इन कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। मतदाताओं में भी चुनाव को लेकर कोई जल्दी नहीं है। यह सब कारण है जो मिलकर, यहां के राजनीतिक वातावरण को अलसाया सा बना दे रहे हैं। सिर पर चढ़े चले आ रहे विधानसभा चुनाव को लेकर सवाल जरूर पूछते हैं कि क्या चुनावी माहौल है?लेकिन लोगों को खुद ही समझ में आ जाता है कि अभी कोई माहौल नहीं बना है और कैसा और क्या राजनीतिक माहौल है इसका जवाब देने वाला अनुत्तरित ही रह जाता है। अब मानसून सक्रिय हो रहा है और जल्दी ही बारिश शुरू हो जाने की संभावना है। इसके बाद लोग किसी कार्य में जुड़ जाएंगे। इस सबके बीच राजनीतिक सरगर्मी बढ़ेगी ? यह कहना अभी मुश्किल है।

एक बात यह भी है कि छत्तीसगढ़ राज्य में ई डी सहित विभिन्न एजेंसियों का बार-बार छापा पड़ रहा है और ये छापे आम लोगों की जुबान पर अभी अधिक चर्चाओ में हैं। यह छापे भी राजनीतिक माहौल को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं। 

फिलहाल यह तो जरूर कहा जा सकता है कि जो स्थिर एजेंडे हैं जैसे धर्म, जातिवाद, क्षेत्रवाद, व्यक्तिगत व्यवहार, सरकार के द्वारा किए गए जन कल्याणकारी कार्य, शासन-प्रशासन की सजगता, मतदाताओं के मतदान में रुचि जैसे मुद्दे चुनाव को 75% तो सीधे-सीधे प्रभावित करेंगे। शेष 25% में खेल होगा। और यह खेल राजनीतिक दलों की सक्रियता, उम्मीदवारों का व्यवहार और उनकी तेजी पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि वह मतदाताओं को कितना प्रभावित करने में सफल रहते हैं।