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आलोच्य आदेश अपास्त, अभियोजन को साक्ष्य प्रस्तुत करने का पुनः अवसर देने की अपेक्षा

  दुर्ग। असल बात न्यूज़।।    यहां विचारण न्यायालय के द्वारा पूर्व में दिए गए एक आलोच्य आदेश को अपास्त कर दिया गया है। अष्टम अपर सत्र न्यायाध...

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 दुर्ग।

असल बात न्यूज़।।   

यहां विचारण न्यायालय के द्वारा पूर्व में दिए गए एक आलोच्य आदेश को अपास्त कर दिया गया है। अष्टम अपर सत्र न्यायाधीश के द्वारा प्रकरण में पुनरीक्षण करते हुए उक्त निर्णय सुनाया गया है और अभियोजन को साक्ष्य प्रस्तुत करने का पुनः अवसर देने की अपेक्षा की गई है। न्यायालय ने मामले में विचार करते हुए विचारण न्यायालय के द्वारा पारित आदेश को  अनुचित मानते हुए  अपास्त किए जाने योग्य माना।

भारतीय दंड संहिता की धारा 279, 337, 338 का मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट दुर्ग के समक्ष प्रस्तुत हुआ था। प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार है कि उत्तर वादी आरोपी के विरुद्ध थाना छावनी में उक्त धाराओं के तहत आरोप पंजीबद्ध हुआ था जिसमें प्रार्थी 6 मई 2019 को सुबह 11:00 बजे sector-1 बीएसपी अस्पताल से दवा लेकर वापस पैदल घर लौट रही थी। न्यू बसंत टॉकीज के सामने हाईवे रोड क्रॉस कर रोड किनारे डिवाइडर के पास पहुंची थी कि रायपुर की ओर से दुर्ग जा रहे अज्ञात मोटरसाइकिल चालक जिसमें 2 लोग सवार थे ने तेज एवं लापरवाही पूर्वक चलाते हुए ठोकर मार दी जिसमें प्रार्थी की मां को शरीर के विभिन्न हिस्सों में गंभीर चोट आई थी। छत्तीसगढ़ शासन जिला दंडाधिकारी  दुर्ग विरुद्ध आकाश डेनियल गाउरलिब के इस मामले में माननीय न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 258 के अंतर्गत प्रकरण की कार्रवाई को रोकते हुए आरोपी को उन्मोचित कर प्रकरण की कार्रवाई समाप्त करने का आलोच्य आदेश पारित किया गया। अभियोजन पक्ष के द्वारा सत्र न्यायालय के समक्ष प्रकरण की पुनरीक्षण की अपील की गई थी। 

सक्षम न्यायालय के द्वारा प्रकरण में इस पर विचार किया गया कि विचारण न्यायालय के द्वारा पारित आदेश क्या अशुद्ध अवैध अथवा अनुचित होने का अपास्त किए जाने योग्य है। अपर लोक अभियोजक ने प्रकरण में पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि मात्र 5 माह के अंतराल में अभियोजन साक्ष्य का अवसर समाप्त कर दिया गया। प्रार्थिया का सही पता प्रस्तुत कर उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की गई। लोक अदालत में रखे जाने योग्य प्रकरण नहीं होने के बावजूद भी प्रकरण वहां नियत किया गया। नेशनल लोक अदालत में केवल उन्हीं प्रकरणों को रखा जाना चाहिए जिसमें दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर प्रकरणों का निराकरण किया जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 279, 337 का उक्त अपराध शमनीय प्रवृत्ति का नहीं है। 

 मामले में अभियोजन की ओर से अपर लोक अभियोजक पुनरीक्षणकर्ता  प्रदीप नेमा के द्वारा पक्ष रखा गया।