रायपुर. आज विश्व जनसंख्या दिवस है। भारत के जनांकिकी आंकड़ों के मुताबिक भारत की औसत आयु 28 वर्ष है और इस नाते युवा शक्ति इस देश को आगे ले ज...
रायपुर.
आज विश्व जनसंख्या दिवस है। भारत के जनांकिकी आंकड़ों के मुताबिक भारत की
औसत आयु 28 वर्ष है और इस नाते युवा शक्ति इस देश को आगे ले जाने में अपना
बड़ा योगदान दे सकती है। दुनिया भर में जनांकिकी को आर्थिक शक्ति के रूप
में देखा जा रहा है। इस लिहाज से भारत में आर्थिक शक्ति की बड़ी संभावना है।
जनांकिकी की तरक्की इस बात पर निर्भर करती है कि आधी आबादी की हिस्सेदारी
कार्यक्षेत्र में कितनी है। इस दृष्टि में भारत में अभी महिलाओं की केवल 17
फीसदी आबादी कार्यक्षेत्र में है जबकि चीन की 40 प्रतिशत महिला आबादी
कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो मुख्यमंत्री श्री भूपेश
बघेल की ग्रामीण विकास योजनाओं से सीधे महिलाओं की बड़ी आबादी आर्थिक
गतिविधियों में संलग्न हो गई है।
इसका सबसे सुंदर उदाहरण गौठान और रीपा के माध्यम से आर्थिक गतिविधियां हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद स्व-सहायता समूहों की
संख्या तेजी से बढ़ गई। दिसंबर 2018 के बाद से अब तक 13 लाख से अधिक महिलाएं
इन समूहों से जुड़ चुकी हैं। इस तरह से कार्यशील आबादी की संख्या में तेजी
से विस्तार आया है। इस बड़ी आबादी के कार्यशील गतिविधियों में लगे होने का अर्थव्यवस्था को लाभ
तो होता लेकिन जब तक इनके लिए व्यवस्थित बाजार मुहैया नहीं कराया जाता तब
तक यह लाभ प्रभावी नहीं हो पाते। छत्तीसगढ़ सरकार ने इनके लिए बाजार प्रदान
किया। हर जिले में सी-मार्ट आरंभ किये गये। इन सी-मार्ट के माध्यम से हर
क्षेत्र के खास उत्पादों को जगह मिली। उदाहरण के लिए बस्तर के दंतेवाड़ा में
यदि भूमगादी समूह से जुड़ी कोई महिला जैविक चावल का विक्रय कर रही है तो
उसके लिए बाजार केवल अपने आसपास के क्षेत्र तक नहीं है अपितु पूरा छत्तीसगढ़
और इसके बाहर भी बाजार उपलब्ध है। इसके साथ ही प्रशिक्षण का पक्ष भी
महत्वपूर्ण है। जब महिलाएं एसएचजी से जुड़ती हैं तो बैंकिंग गतिविधियों से
भी जुड़ती हैं एकाउंटेंसी से भी परिचित होती हैं और मार्केट को भी समझ पाती
हैं। इस तरह पूरी तरह से आर्थिक कार्यकलापों के लिए दक्ष बनाने अपने को
तैयार कर पाती हैं।
जब महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं तो अपनी बेटियों को भी इस दिशा
में तैयार कर रही हैं। छत्तीसगढ़ में स्कूल के अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और
महिलाओं में बढ़ी जागरूकता का प्रभाव स्कूलों में दर्ज संख्या से पता चलती
है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 में 10 से अधिक साल तक पढ़ाई करने वाली
लड़कियों की संख्या में 36.9 प्रतिशत वृद्धि हुई है। महिलाओं के आगे आने से आर्थिक रूप से सबल होने से उनकी सामाजिक स्थिति भी
सशक्त हो रही है। मुख्यमंत्री से भेंट मुलाकात के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों
में जितनी संख्या में पुरुष हितग्राही अनुभव साझा करते हैं उतनी ही संख्या
में महिला हितग्राही भी अपना अनुभव साझा करते हैं। इन सभाओं को देखकर महसूस
होता है कि छत्तीसगढ़ का समाज सचमुच समतामूलक समाज है जहां महिलाओं और
पुरुषों की कार्यक्षेत्र में बराबरी की भागीदारी हैं और दोनों ही मिलकर
अपने प्रदेश के विकास की गाथा को गढ़ रहे हैं। महिलाएं परिवार की धुरी होती हैं और आर्थिक रूप से सक्षम होने की वजह से
उनके पास भी परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की शक्ति आ गई है। चाहे
बच्चों की पढ़ाई का मामला हों, उनके लिए ज्वैलरी खरीदी हो। वे निर्णय ले
रही हैं। अपने सपनों को पूरा करने की जो शक्ति उनके भीतर आई है उससे उनके
जीवन में खुशियां भी बढ़ी हैं। गौठानों में आजीविकामूलक गतिविधियों का ट्रेंड देखें तो यह साफ होता है कि
महिलाएं लगातार अपनी आर्थिक गतिविधियों का विस्तार कर रही हैं। जिन समूहों
की महिलाएं वर्मी कंपोस्ट तैयार करती थीं। उन्होंने मशरूम का उत्पादन आरंभ
कर दिया। तेल पिराई का काम करने लगीं। इस तरह अपने आसपास की बाजार की
जरूरतों को भांपते हुए अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाया। छत्तीसगढ़ में उद्यमशील
समाज के निर्माण में अब इन महिलाओं की अहम भूमिका हो गई है।