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मणिपुर और राजस्थान की आड़ में राजनीति

  चंद मिनट की बारिश शहर के नाली-नालों को उफना देती हैं। पूरा कचरा सड़कों पर आ जाता है।  महिलाओं पर होने वाले अत्याचार किसी भी स्तर पर अक्षम्...

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चंद मिनट की बारिश शहर के नाली-नालों को उफना देती हैं। पूरा कचरा सड़कों पर आ जाता है।

 महिलाओं पर होने वाले अत्याचार किसी भी स्तर पर अक्षम्य हैं। उनपर सख्ती के साथ रोक लगने की आवश्यकता है। इसके साथ ही ऐसी घटनाओं की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंकने का उपक्रम और भी घातक है। कुछ दिनों पहले मणिपुर में महिलाओं के साथ अमानवीय बर्ताव हुआ। घटना के बाद देश भर में कांग्रेसी और केंद्र सरकार विरोधी संगठन देश भर में सड़कों पर उतरने लगे। इसी बीच मणिपुर के जैसी ही एक अन्य घटना राजस्थान में हो गई। इस घटना के बाद भाजपा के हाथ में मौका आ गया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी राजस्थान सहित देश के विभिन्न हिस्से में उस घटना के विरोध में प्रदर्शन शुरु कर दिए। राजस्थान में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव भी हैं, इसलिए जहां कांग्रेस बैकफुट पर है, वहीं भाजपा वहां की सरकार को जमकर घेर रही है। कुल मिलाकर राजनीति साफ कपड़ों की नहीं बल्कि ‘तेरे कपड़े मेरे से ज्यादा गंदे’ की हो गई है।

राशन दुकानों की जांच में गड़बड़ी

जिले की राशन दुकानों की इन दिनों जांच चल रही हैं। जिस भी दुकान की जांच होती है, वहां बड़ी गड़बड़ी सामने आ जाती है। यह जांच स्वस्फूर्त नहीं हो रही बल्कि जनशिकायतों और वरिष्ठ अधिकारियों की फटकार के बाद जांच की जा रही हैं। इन जांचों में भी खाद्य विभाग के आला अफसर कालाबाजारी करने वाले राशन दुकान संचालकों को यथासंभ बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हाल के दिनों में तीन-चार दुकानों की जांच हुई। करीब अस्सी लाख रुपये के सरकारी खाद्यान्न की गड़बड़ी पकड़ में भी आई, लेकिन विभाग के अफसरों ने संबंधित दुकान संचालकों को राशि जमा करने का पत्र जारी कर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली। जिस राशि को जमा कराने के लिए कहा गया, वो तो सरकारी खाद्यान्न की ही रही। ऐसे में दुकानदार को दंड क्या मिला? ऐसे मामलों में एफआइआर भी होना चाहिए, लेकिन एक मामले में भी एफआइआर नहीं कराई जा सकी है।

होती-थमती वर्षा ने दिया है मौका

चंद मिनट की बरसात शहर के नाली-नालों को उफना देती हैं। पूरा कचरा सड़कों पर आ जाता है। अनेक बस्तियां ऐसी हैं, जिनकी पहचान कुछ ही देर की वर्षा में पानी-पानी होने की बन चुकी हैं। कुछ बस्तियां निचले इलाके की जरूर हैं, लेकिन वहां भी वर्षा-जल की निकासी का पुख्ता इंतजाम नहीं होने की वजह से लोगोें को परेशान होना पड़ता है। इस वर्ष के बरसाती मौसम में पानी थम-थम कर गिर रहा है। तीन-तीन दिनों तक पानी की बूंद नहीं पड़ रही। इसके बाद किसी दिन आधे-एक घंटे की वर्षा में पूरे शहर में पानी ही पानी दिखाई पड़ने लगता है। नालियों का कचरा सड़कों पर उतराने लगता है। होती-रूकती बरसात एक तरह से निगम प्रशासन को अवसर दे रही है कि वो समय रहते नाले-नालियों की न केवल सफाई करवा ले, बल्कि उनसे निकले कचड़े और सिल्ट को उनके मुहाने से हटवा ले। अन्यथा आगे चल कर मुश्किल होना तय है।

कवायदें सुर्खियां बटोरने की...

कुछ दिन पहले सीधी में हुई घटना के आरोपी का घर तोड़ दिया गया था। इसी प्रकार से भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने एक छात्र नेता को संगठन का जिलाध्यक्ष बनाने के बाद पद से हटा दिया गया थां कमोवेश ये दोनों ही मामले एक समाज विशेष से संबंधित रहे। लिहाजा अचानक संबंधित समाज के कुछ लोगों ने मीडिया को बुलाकर जमकर पौरुष दिखाया। ऐसा लगा कि अब ईंट से ईंट बजा दी जाएगी। मीडिया ने भी उनके तल्ख बयानों को भरपूर स्थान दिया। एनएसयूआई की नियुक्ति के मामले में तो भाई लोगोंं ने कह दिया था कि एक सप्ताह में अगर कांग्रेस के प्रदेश संगठन ने निर्णय नहीं बदला तो जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विरोध में प्रदर्शन किए जाएंगे। इस ऐलान को पूरा पखवाड़ा बीत गया, लेकिन न तो एनएसयूआई के प्रदेश संगठन ने अपना निर्णय बदला और न ही भैया लोग पीसीसी के खिलाफ सड़कों पर उतर पाए।