"असली परीक्षा की घड़ी तो कहा जा सकता है उस समय शुरू होगी जब टिकट वितरण की शुरुआत होगी। तब एक-एक विधानसभा सीटों पर खींचातानी और असंतोष क...
"असली परीक्षा की घड़ी तो कहा जा सकता है उस समय शुरू होगी जब टिकट वितरण की शुरुआत होगी। तब एक-एक विधानसभा सीटों पर खींचातानी और असंतोष की स्थिति नजर आ सकती है। पार्टी हाईकमान की कड़ाई के बिना इसे नियंत्रित करना आसान नहीं होगा "
रायपुर।
असल बात न्यूज़।।
हम सब जानते हैं कि राजनीति और सत्ता में अपने ही सारे लोगों को'साध' लेना आसान नहीं होता है। छोटा-बड़ा कोई भी,मौका मिला कि नहीं कि, असंतुष्टों के तेवर दिखने लगते हैं है और बगावत का स्वर फूटना शुरू हो जाता है।अंदरखाने की खबर बताती है और राजनीति से थोड़ा सा भी ताल्लुक रखने वाले सब जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी खेमे में भी कम घमासान नहीं मचा रहा है। ऐसे हालात में लग रहा है कि अब जो विधानसभा चुनाव सिर पर है कांग्रेस पार्टी, तौल-तौल कर कदम आगे बढ़ा रही है।पार्टी में "ढाई ढाई साल मुख्यमंत्री"के सब्जेक्ट को पूरी तरह से खत्म करने"नया गेम"कर दिया गया है। कहा जा सकता है कि वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने तुरूप का पत्ता चल दिया है। छत्तीसगढ़ के बारे में शायद,पार्टी हाईकमान के द्वारा सीधे निर्णय लिया जा रहा है और कोई "ढील"नहीं दी जा रही है। ऐसे में बड़ा"इस्तीफा"भी ले लिया जा रहा है और इस तरह की रणनीति बनाई जा रही है कि किसी को"नाराज" भी नहीं होने दिया जा रहा है। नए पैंतरेबाजी से यहां की राजनीति में अलग तरह की हलचल मच गई है।अब विपक्ष को भी इस जंग में लोहा लेने के लिए नई रणनीति बनानी पड़ रही है। उसके पास"ढाई ढाई साल मुख्यमंत्री"का जो कतिपय बड़ा मुद्दा था,वह फिसल सा गया है और कहा जा सकता है कि सिर्फ इसी मुद्दे के सहारे उसकी नैया पार नहीं होने वाली है।।
नई दिल्ली से जिस दिन वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाने का नियुक्ति पत्र जारी हुआ था उस दिन ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा धमाका कर दिया है। और ऐन चुनाव के पहले यहां सबको साथ लेकर चलने की नई मुहिम की शुरूआत होती दिखी। पार्टी हाईकमान की ओर से शायद अभी यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि यहां एकला चलो के जैसे हालात नहीं बनने दिए जाने वाले हैं। और पार्टी में जो भी किसी न किसी कारण से असंतुष्ट हैं उन सब को साधने के लिए हर तरह की रणनीति बनेगी।श्री सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने पर पार्टी में ही एक खेमे में जबरदस्त उत्साह नजर आया। जमकर मिठाइयां बांटकर, पटाखे फोड़ कर इसका स्वागत किया गया ।असल में कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी, बस्तर और सरगुजा संभाग की विधानसभा सीटों पर कहीं कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। श्री सिंहदेव की जिस तरह की नाराजगी सामने आ रही थी और उन्होंने चुनाव घोषणा पत्र समिति में भी शामिल होने से मना कर दिया था,कहा जा सकता है कि पार्टी हाईकमान तक,उससे कहीं ना कहीं कुछ 'गड़बड़' का संदेश जरूर जा रहा था। अंबिकापुर संभाग में विधानसभा की 14 सीटें हैं,जिस पर अभी कांग्रेस का एकतरफा कब्जा है।श्री सिंह देव के समर्थक और कार्यकर्ता तो दावा करेंगे ही, जो राजनीतिक विश्लेषक हैं, वे भी इससे इंकार नहीं कर रहे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में श्री सिंहदेव ने ही इन विधानसभा सीटों की पूरी जिम्मेदारी संभाली थी और चुनाव परिणाम दिलाया था। पार्टी नेतृत्व के दिमाग में भी यह बात जरूर कहीं ना कहीं है। संभवत,इसीलिए श्री सिंहदेव को पार्टी में ही एक वर्ग के कतिपय तौर पर नहीं चाहने और अघोषित विरोध के बावजूद भी सीधे दिल्ली से उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी देकर उन्हें संतुष्ट करने और मनाने की कोशिश की गई है। अब तो उन्हें ऊर्जा विभाग जैसा बड़ा विभाग भी दे दिया गया है। ऊर्जा विभाग वर्षों से मुख्यमंत्री के पास रहा है। इन सब फेरबदल से स्वाभाविक तौर पर राजनीतिक गलियारे में कई तरह के नए सवाल उपजे हैं। मुख्यमंत्री से ऊर्जा जैसा बड़ा विभाग वापस ले लेना पार्टी हाईकमान का सामान्य निर्णय तो नहीं कहा जा सकता। पार्टी हाईकमान के द्वारा ऐसे निर्णय से क्या संदेश देने की कोशिश की गई है राजनीतिक विश्लेषक इसको टटोलने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
ताजा परिस्थितियों में इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस अपनी आंतरिक कलह से चिंतित है। पार्टी हाईकमान तक इसकी चिंता पहुंची है। अभी यहां कांग्रेस संगठन और सत्ता में जिस तरह का फेरबदल हुआ है उसे उसकी चुनावी तैयारियों का हिस्सा कहा जा सकता है। वरिष्ठ मंत्री श्री सिंह देव के साथ मंत्री ताम्रध्वज साहू की भी यदा-कदा नाराजगी सामने आती रही है। श्री साहू का भी राजनीतिक कद कम करके नहीं आंका जा सकता। वे भी शुरुआत में मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल रहे हैं। और कहा तो यहां तक जाता है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिलने ही जा रही थी। उन्होंने कई बड़े मौके पर राजनीतिक चुप्पी बनाए रखी है। कहा जाता है इसी के फलस्वरूप उनका राजनीतिक विरोध उभरकर सामने नहीं आया। कहा जा रहा है कि अब उन्हें इसी का फायदा मिला है और उन्हें कई बड़े अतिरिक्त विभागों की जिम्मेदारी मिल गई है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें अध्यक्ष पद से आखिर क्यों हटाया गया इसका निर्णय किन खास वजह से लिया गया ? यह सवाल, अब जबकि सब कुछ ठीक दिख रहा है तब भी राजनीतिक विश्लेषकों के जेहन में लंबे दिनों तक कौंधता होता रहेगा। उनमें आखिर कौन सी कमियां दिखी थी और वह पार्टी को मजबूत करने में असफल क्यों माने गए ? यह सवाल आदिवासी वर्ग में तो जरूर उठता रहेगा। हालांकि श्री मरकाम को तुरंत ही मंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी गई है और ऐसे सवालों की हवा निकाल देने की कोशिश की गई है लेकिन उनके मुकाबले में नए अध्यक्ष दीपक वैज किस तरह का चमत्कारिक प्रदर्शन कर सकेंगे,इसका इंतजार तो राजनीतिक विश्लेषकों को रहेगा ही। उधर प्रदेश के उम्र में सबसे वरिष्ठ मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम से जब इस्तीफा मांगा गया होगा तो उनकी क्या स्थिति हुई होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। उन्होंने बुझे हुए मन से मीडिया के लोगों से बातचीत करते हुए बाद में कहा भी कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है उनसे इस्तीफा लिया गया है। पार्टी ने उन्हें मंत्री पद से हटाने के बाद दूसरे दिन ही इसके समकक्ष योजना आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार और मंत्री पद के जैसे ही सुविधाएं दे दी। इससे कहा जा सकता है कि इस्तीफा भी ले,ले रहे हैं और किसी को नाराज ही नहीं होने देते। इधर अभी खबर है कि और भी कई फेरबदल हो सकते हैं और कुछ विभाग इधर से उधर हो सकते हैं। इसकी संभावना बनी हुई है।
यहां की राजनीति में अब यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा भूपेश बघेल ही होंगे। चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की जुगलबंदी काम करती दिखाई देगी। मुख्यमंत्री श्री बघेल के द्वारा अपने भेंट मुलाकात कार्यक्रम के साथ पूरे प्रदेश का लगातार दौरा किया जा रहा है और वह प्रदेश भर में इस तरह के तैयार कार्यक्रम कर रहे हैं जिससे वे युवाओं, महिलाओं तथा विभिन्न वर्ग के लोगों से सीधे जुड़ सकें।
लेकिन असली परीक्षा की घड़ी तो कहा जा सकता है उस समय शुरू होगी जब टिकट वितरण की शुरुआत होगी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए अंबिकापुर संभाग की विधानसभा सीटों पर उपमुख्यमंत्री श्री श्री देव की सहमति के बिना किसी को टिकट देना आसान नहीं रहेगा। तो वही बस्तर संभाग में टिकट वितरण के समय मंत्री कवासी लखमा और मोहन मरकाम की भी कहीं उपेक्षा नहीं किया सकेगी।
राजनीति में जो ताजा उठापटक हुई है और नए समीकरण बने हैं उसके बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा को भी कहा जा सकता है कि चुनाव मैदान में उतरने के लिए नई रणनीति बनानी पड़ेगी। भाजपा को अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को संगठन में महत्व देने की जरूरत महसूस होगी। संगठन में मजबूती लाए बिना और नई रणनीति के बिना उसके लिए चुनाव मैदान में जंग जीतना आसान नहीं रहेगा।
Political reporter.