दुर्ग | भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री अरुण साव ने कहा कि जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रदेश के 12 आदिवासी समूह जो आज़ादी के बाद से अब तक अनुसूचि...
दुर्ग |
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री अरुण साव ने कहा कि जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्रदेश के 12 आदिवासी समूह जो आज़ादी के बाद से अब तक अनुसूचित जाति में शामिल होने का अपना अधिकार नहीं पा सके थे, महज़ लिपिकीय त्रुटि को बहाना बनाकर कांग्रेस की सरकारों ने उन्हें दशकों तक उनके अधिकारों से वंचित रखा था। ये जातियां हैं :- भारिया भूमिया के समानार्थी भूईया, भूईयाँ, भूयां, धनवार के समानार्थी धनुहार धनुवार, नगेसिया, नागासिया के समानार्थी किसान, सावर, सवरा के समानार्थी सौंरा, संवरा, धांगड़ के साथ प्रतिस्थापित करते हुए सुधार, बिंझिया, कोडाकू के साथ साथ कोड़ाकू, कोंध के साथ-साथ कोंद, भरिया, भारिया, पंडो, पण्डो, पन्डो को जनजाति वर्ग में शामिल किया गया है। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 78 लाख 22 हज़ार 902 है। प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई जनसंख्या (30.62 प्रतिशत) अनुसूचित जनजातियों की है। इनमें सर्वाधिक 72 लाख 31 हज़ार 82 ग्रामीण इलाकों में निवासरत हैं। अब जब सदन के दोनों सदनों में पारित करा कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने उन्हें उनका अधिकार लौटाया है, तब प्रदेश की कांग्रेस सरकार इस बात का श्रेय लेने की बेशर्म कोशिश कर रही है। इस संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान न केवल सफ़ेद झूठ है बल्कि शर्मनाक भी है। सच तो यह है कि इस विधेयक को लोकसभा ने 21 दिसंबर 2022 को ही पारित कर दिया था, तबसे लगातार कांग्रेस ने किसी-न-किसी बहाने संसद की कार्यवाही को बाधित किया ताकि यह विधेयक राज्यसभा से पास होकर क़ानून न बन पाए। उसने इसे अटकाने, लटकाने और भटकाने की भरसक कोशिश की। यहां तक कि जब यह ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत हुआ तब भी छत्तीसगढ़ के राज्यसभा सदस्यों ने इसका अघोषित बहिष्कार किया, वे कार्यवाही से अनुपस्थित रहे। इससे पहले भी आरक्षण आदि के मुद्दे पर आपने लगातार कांग्रेस का दोहरा रवैया हमेशा देखा है। सदन में जब इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा हो रही थी तब वहां छत्तीसगढ़ कोटा से आने वाले सभी कांग्रेसी सदस्य अनुपस्थित थे। भले वोट की राजनीति के मजबूरीवश कांग्रेस सड़क पर कुछ भी कहती रहे लेकिन जब भी ऐसे कोई विषय परिणाम तक पहुँचने वाले होते हैं, तब कांग्रेस अड़ंगा लगाती ही है। आखिर 50 से अधिक वर्षों तक इसी कांग्रेस ने इन तमाम मामलों को लटकाए भी रखा था। अब जब तमाम कांग्रेसी बाधाओं के बावजूद 12 समुदायों को उनका अधिकार मिला है और कांग्रेस अपनी लाख कोशिशों के बावजूद इसे रोक नहीं पायी, तब अब झूठा श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल। 12 जनजाति समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा झूठा श्रेय बटोरने की प्रवृत्ति निंदनीय है। केंद्रीय कैबिनेट में यह विधेयक सन 2016 में पास हो गया था और तब प्रदेश में भाजपा की राज्य सरकार थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार 2018 में बनी तो मुख्यमंत्री बघेल ने पत्र कब और किसको लिखा था? सूची में शामिल 12 जनजातियों के आदिवासी भाई-बहनों के साथ-साथ प्रदेश की जनता देख रही है कि कौन शोषित-वंचित आदिवासियों के साथ कौन खड़ा है और कौन नहीं? सब को पता है भाजपा ने इन आदिवासियों के साथ न्याय करके उन्हें उनका हक दिलाया है। भाजपा पहले भी आदिवासी समाज के साथ खड़ी थी, आज भी खड़ी है और हमेशा खड़ी रहेगी। भाजपा की पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने स्कूल, आश्रम, छात्रावासों में प्रवेश और छात्रवृति की भी सुविधा जारी रखी थी, लेकिन मुख्यमंत्री बघेल ने तो सबसे वंचित रखा । आज बस्तर, सरगुजा से स्थानीय भर्ती को खत्म कर दिया गया है, साथ ही विभागीय पदोन्नति को भी भूपेश सरकार ने अटकाकर रखा है। मेडिकल कॉलेजों में भर्ती में सैकड़ों बच्चों को प्रदेश कांग्रेस की भूपेश सरकार वंचित कर रही है। मैं भूपेश जी से पूछना चाहता हूं कि इस महत्वपूर्ण विषय पर हर बार वे और उनकी पार्टी ने झूठी राजनीति क्यों की? अविभाजित मध्यप्रदेश और देश में भी दशकों तक कांग्रेस का शासन रहने के बावजूद जब महज़ टंकण त्रुटि के कारण ये समुदाय अपने अधिकार से साज़िशपूर्वक कांग्रेस द्वारा वंचित रखे गए, तब आज मोदी जी द्वारा उनका अधिकार वापस देने पर कांग्रेस को तकलीफ़ क्यों हो रही है? सबसे बड़ा सवाल तो यह भी है कि आखिर ये कथित टंकण या लिपकीय त्रुटि कांग्रेस ने किस साज़िश के तहत की होगी? जब यह त्रुटि हुई थी, तब सरकार तो कांग्रेस की ही थी। क्यों नहीं उसे उसी समय सुधार लिया गया था? सीधी-सी बात है कि आदिवासी और वंचित समाज के हर मामले में कांग्रेस 'चोर से कहो चोरी कर और गृहस्वामी से कहो जागते रह' की नीति अपनाती रही है जैसा कि आदिवासी आरक्षण के खिलाफ मुक़दमा करने वाले अपने कार्यकर्ता को पुरस्कृत कर हाल में भी प्रदेश सरकार ने किया है। आदिवासी और पिछड़े वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण के विरुद्ध प्रदेश की कांग्रेस सरकार कोर्ट में अपने लोगों से मुक़दमा करा कर, अपने महाधिवक्ता को कोर्ट में सुनवाई के दिन अनुपस्थित करा कर जान बूझ कर हार जाना और फिर मुक़दमा करने वालों को पद देकर पुरस्कृत करना आदि निंदनीय हथकंडे हमेशा कांग्रेस अपनाती रही है। कांग्रेस को वंचित तबकों के साथ ऐसे खिलवाड़ से बाज आना चाहिए।ऐसे मामले में जान-बूझ कर कांग्रेस के अनुपस्थित होने या वंचित वर्ग के कल्याण से संबंधित का यह कोई पहला मामला भी नहीं है। आपको याद होगा कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का भी विरोध कर राज्यसभा में कांग्रेस ने उसे तब पारित नहीं होने दिया था।यहां विशेष तौर विशेष तौर पर उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कही जाने वाली विशेष पिछड़ी पण्डो जनजाति भी आजादी के 75 वर्ष बाद भी अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल नहीं किए गए थे। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है जहाँ आदिवासियों को त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन सूची से बाहर जनजाति समुदायों के लोग किसी भी तरह चुनाव में भाग नहीं ले पाते थे। अब जा कर सभी अनुसूचित जनजाति समुदायों को उनका अधिकार मिला।मूलरूप से वे लोग अनुसूचित जनजाति के हैं, लेकिन मात्रात्मक त्रुटि के कारण उनके जाति प्रमाण-पत्र नहीं बन पा रहे हैं, इसलिये अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले लाभ से वे और उनके बच्चे वंचित रह जाते हैं।इन जाति समुदायों के छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होने के बाद इन्हें शासन की अनुसूचित जनजातियों के लिये संचालित योजनाओं का लाभ मिलने लगेगा। छात्रवृत्ति, रियायती ऋण, अनुसूचित जनजातियों के बालक-बालिकाओं के छात्रावास की सुविधा के साथ शासकीय सेवा और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। अब कांग्रेस के झूठ की दुकान बिल्कुल नहीं चलने वाली है, समाज अब जाग गया है। कांग्रेस की काठ की हांडी अब दुबारा नहीं चढ़ने वाली है। उसके झूठ और फ़रेब की राजनीति कांग्रेस को ले डूबेगी। हम आदिवासी जन जीवन और जीविका से जुड़े इतने बड़े मामले का समाधान करने के लिए एक बार फिर से छत्तीसगढ़ की तारफ से मोदी जी को अशेष धन्यवाद देते हैं।