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तेज आवाज के शोर को बंद करने के लिए कहने पर गुस्सा होकर भाई ने की कर दी भाई की हत्या,भाई के हत्या करने के आरोपी को दोषसिद्ध होने पर आजीवन कारावास की सजा

  दुर्ग। असल बात न्यूज़।।   तेज आवाज से शोर फैलाने पर कितना विवाद बढ़ सकता है कि एक भाई ने गुस्सा और उत्तेजित होकर अपने ही भाई की हत्या कर द...

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 दुर्ग।

असल बात न्यूज़।।  

तेज आवाज से शोर फैलाने पर कितना विवाद बढ़ सकता है कि एक भाई ने गुस्सा और उत्तेजित होकर अपने ही भाई की हत्या कर दी।यहां अपने ही भाई की हत्या कर देने के इस मामले में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। यह घटना 15 अगस्त 2020 की है जिसमें एक भाई ने ही गुस्से में आकर अपने भाई की हत्या कर दी। न्यायालय ने साक्षियों के बयान तथा पारिस्थितिजन्य साक्षयों के आधार पर अभियुक्त के द्वारा अपने ही भाई की साशय हत्या कर देने के आरोप को प्रमाणित पाया। प्रकरण में मृतक का पिता जो कि अभियुक्त का भी पिता है वह वास्तविक घटनाक्रम से विमुख हो गया। न्यायालय ने माना कि अपने जीवित् पुत्र अभियुक्त बचाने के लिए उसका घटनाक्रम से विमुख हो जाना स्वाभाविक है। 

अभियोजन के अनुसार मामले के तथ्य इस प्रकार है कि प्रकरण में मृतक की पत्नी के द्वारा मोहन नगर थाने में नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। 15 अगस्त 2020 को शाम को गीता यादव और उसके पति धनराज यादव टीवी देखते घर में बैठे थे। उनका देवर मोबाइल के ब्लूटूथ को साउंड बॉक्स से कनेक्ट कर तेज आवाज में गाना बज रहा था। धनराज यादव ने आरोपी को आवाज कम करने को कहा जिस पर दोनों के बीच वाद विवाद हुआ। आरोपी ने घर के बिजली मीटर को डंडा से तोड़ दिया और टांगिया लेकर धनराज यादव के सिर पर तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर हमला कर दिया। धनराज यादव को घायल अवस्था में दुर्गा अस्पताल ले जाया गया  जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

आरोपी ने न्यायालय के समक्ष अपराध करना अस्वीकार किया तथा कहा कि उसे झूठा फसाया जा रहा है। न्यायालय ने प्रत्यक्षदर्शी साक्षी मृतक की पत्नी  गीता यादव के घटना के संबंध में दिए गए बयान को अखंडित कथन माना। न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष यह प्रमाणित करने में सफल रहा है कि अभियुक्त ने धनराज की साशय हत्यात्मक मृत्यु कारित की है। 

न्यायालय ने इस अपराध को विरल से विरलतम श्रेणी का नहीं माना। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती नीता यादव के न्यायालय के द्वारा अभियुक्त को  भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अपराध में आजीवन कारावास और ₹1000 के अर्थदंड के सजा सुनाई गई। अभियुक्त गिरफ्तारी के बाद से लगातार अभिरक्षा में है। 


अभियोजन पक्ष की ओर से मामले में लोक अभियोजक बालमुकुंद चंद्राकर के द्वारा पैरवी की गई।