Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

Automatic Slideshow


बुंदेलखण्ड के क्रांतिकारियों की गौरव गाथा का स्मरण

  बुंदेली क्रांतिवीरों के इस रौद्र रूप को देख तब गोरी हुकूमत की न सिर्फ चूलें हिल गई थीं बल्कि यहां विंध्य क्षेत्र में अपना आधिपत्य जमाने क...

Also Read

 बुंदेली क्रांतिवीरों के इस रौद्र रूप को देख तब गोरी हुकूमत की न सिर्फ चूलें हिल गई थीं बल्कि यहां विंध्य क्षेत्र में अपना आधिपत्य जमाने के मंसूबे पालने वाले अंग्रेज हुक्मरानों को एकबारगी उल्टे पांव भागकर अपनी जान बचानी पड़ी थी।

महोबा 05 शौर्य व पराक्रम के लिए दुनिया में विख्यात बुंदेलखंड का स्वाधीनता संग्राम में हिस्सेदारी का एक गौरवशाली अध्याय है। आजादी की लड़ाई में महोबा जिले के मुट्ठी भर क्रान्तिकारियो ने अभूतपूर्व शूर वीरता दिखाते हुये अंग्रेज सेना के करीब 300 जवानों का कत्लेआम कर उनके लहू से यहां की मिट्टी को सींचा था जिसके चश्मदीद गवाह जैतपुर कस्बे का ‘गोरा तालाब’ भी है। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर देश मे मनाए जा रहे अमृत महोत्सव में बुंदेलखण्ड के क्रांतिकारियों की गौरव गाथा का स्मरण उतना ही आवश्यक है जितना कुछ और। आजादी के आंदोलन की सन 1857 में फूटी चिंगारी ने मध्य भारत के इस इलाके में ही ज्वाला का रूप धारण किया था। बुंदेलखंड केशरीए महान प्रतापी नरेश महाराजा छत्रसाल के वीर यशस्वी पुत्र जगतराज की अगुआई में यहां मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए जो संघर्ष किया गया वह अप्रतिम तो था साथ ही गौरव गाथा के रूप मे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणाप्रद बन गया। जैतपुर के संदर्भ में झांसी के बरुआसागर निवासी इतिहासकार स्वर्गीय राम सेवक रिछारिया ने अपने शोध ग्रंथ में स्पष्ट उल्लेख किया है कि मध्य भारत का यह जंगली इलाका आजादी के दीवानों सर्वाधिक सुरक्षित ठिकाना था। यह देश प्रेमियों की रियासत कहलाती थी। क्रांतिकारियों के समूह यहां आसपास के विभिन्न स्थानों में शरण लिया करते थे और अपनी कार्य योजना को तय करने के लिए वह धौंसा मन्दिर में अक्सर बैठकें किया करते थे। इस बात की भनक लगने पर गोरी सरकार तिलमिला उठी थी। तब उसने विद्रोहियों के दमन के लिए सेना की एक बड़ी टुकड़ी को जैतपुर भेजा था। शोध के मुताबिक क्रांतिकारियों को किसी प्रकार इसकी सूचना मिल गई थी जिसके बाद उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से धौंसा मन्दिर के निकट ही एक स्थान पर अंग्रेजो की उक्त सैन्य टुकड़ी को चारो ओर से घेर कर मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना में कोई तीन सौ अंग्रेज मारे गए थे जिनके खून से उक्त स्थल लबालब हो गया था। यही स्थान कालांतर में गोरा तालाब कहलाने लगा। क्षेत्रीय प्रमुख समाजिक कार्यकर्ता महेंद्र राजपूत बताते है कि जैतपुर से बिहार जाने वाली सड़क में बेलाताल रेलवे स्टेशन के निकट स्थित ष्गोरा तालाबष् का क्षेत्रफल लगभग तीन एकड़ का है। इसके घाट में लगे पत्थरों में उकेरे गए कतिपय चिन्ह इसके महत्व का एहसास कराते है लेकिन आजादी की जंग से जुड़ी स्मृतियों का मोके पर कोई प्रामाणिक अवशेष न होने के कारण यह गुमनामी का दंश झेल रहा है। वीरभूमि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवक्ता डा एलसी अनुरागी कहते है कि बुन्देलखण्ड के कण कण का वीरोचित इतिहास है। आजादी के अमृत महोत्सव काल मे जैतपुर के गोरा तालाब को अमृत सरोवर के रूप में विकसित किया जाता तो यह स्वाधीनता के रण बांकुरों को सच्ची श्रद्धांजलि होती।