नई दिल्ली, छत्तीसगढ़। असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता पास्को एक्ट में अभी कतिपय संशोधन करने पर विचार हो रहा है। विधि विभा...
नई दिल्ली, छत्तीसगढ़।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
पास्को एक्ट में अभी कतिपय संशोधन करने पर विचार हो रहा है। विधि विभाग ने इस संबंध में सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। अभी सबसे बड़ा मुद्दा "यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु" का विषय बना हुआ है तथा इसमें आयु को संशोधन करने के सुझाव दिए जा रहे हैं। पिछले दिनों कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पास्को एक्ट में सहमति से संबंधित मामलों में उम्र पर पुनर्विचार करने को कहा है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ग्वालियर बेंच ने भी संबंध में सुझाव दिए हैं। असल बात न्यूज़ के द्वारा भी पिछले दिनों अपने विशेषण में इस मुद्दे से संबंधित कई तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
देश में कई चर्चित कानूनों में समय-समय पर आम नागरिकों के हितों के संदर्भ में संशोधन किया गया है। अभी सबसे अधिक पोस्को एक्ट चर्चाओ में है। पोस्को एक्ट में उम्र को लेकर एक विवाद शुरू हुआ है। जहां पीड़िता और आरोपी के बीच सहमति दिखती है कि ऐसे मामलों में पीड़िता की उम्र कितनी होनी चाहिए तब उस अपराध में पोस्को एक्ट लागू होगा।16 वर्ष से अधिक उम्र की नाबालिग लड़कियों का लड़के के साथ प्यार में पड़ना, भाग जाना और यौन संबंध बनाना, जिससे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 ("POCSO अधिनियम") और/या भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधान लागू होते हैं। इन अधिनियम के तहत इसके अपराध में अभियुक्त को दोष सिद्ध होने पर 10 वर्ष से अधिक के सश्रम कारावास की सजा देने का प्रावधान है। सवाल उठाया जा रहा है कि जब पीड़िता, आरोपी और उनके परिवार के सदस्यों के बीच सहमति थी तब आरोपी को ही इतनी सजा क्यों मिलनी चाहिए।
विधि आयोग को इस संबंध में माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय (धारवाड़ पीठ) ने पिछले साल 9 नवंबर, 2022 को ऐसे ही मामलों के संदर्भ में एक पत्र भेजा है, जिसमें आयु के कारण पोक्सो एक्ट से संबंधित मामलों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए सहमति के लिए आयु मानदंड पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया था। आयोग को माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (ग्वालियर बेंच) से दिनांक 19 मार्च के पत्र द्वारा एक संदर्भ भी प्राप्त हुआ है।, जिसमें न्यायालय ने आयोग का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है कि कैसे POCSO अधिनियम का प्रवर्तन, अपने वर्तमान स्वरूप में, वैधानिक बलात्कार के मामलों में घोर अन्याय का कारण बनता है, जहां वास्तविक सहमति मौजूद है। न्यायालय ने आयोग से POCSO अधिनियम में संशोधन का सुझाव का भी अनुरोध किया, जिसमें विशेष न्यायाधीश को उन मामलों में वैधानिक न्यूनतम सजा न देने की विवेकाधीन शक्ति प्रदान की जाए, जहां लड़की की ओर से वास्तविक सहमति स्पष्ट हो या जहां इस तरह के रिश्ते की परिणति विवाह, बच्चों के साथ या बिना हुई हो।
आयोग का फिलहाल मानना है कि मौजूदा बाल संरक्षण कानूनों, विभिन्न निर्णयों की सावधानीपूर्वक समीक्षा और हमारे समाज को प्रभावित करने वाली बाल शोषण, बाल तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति की बीमारियों पर विचार करने के बाद, सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। POCSO एक्ट के तहत. हालाँकि, इस संबंध में दिए गए सभी विचारों और सुझावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, आयोग यह आवश्यक समझता है कि उन मामलों 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे से संबंधित मामलों में में स्थिति को सुधारने के लिए POCSO अधिनियम में कुछ संशोधन लाने की आवश्यकता है, जिनमें वास्तव में मौन स्वीकृति है, हालांकि कानून में सहमति नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी सुविचारित राय में, ऐसे मामलों को उतनी गंभीरता से निपटाए जाने की आवश्यकता नहीं है जितनी उन मामलों की कल्पना की गई थी जो आदर्श रूप से POCSO अधिनियम के तहत आते थे। इसलिए, आयोग, ऐसे मामलों में सजा के मामले में निर्देशित न्यायिक विवेक का परिचय देना उचित समझता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कानून संतुलित है और इस प्रकार बच्चे के सर्वोत्तम हितों की रक्षा होगी।
आयोग के द्वारा फिलहाल अभी "यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु “ को कानून और न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग को प्रस्तुत कर दी गई है ।