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छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव क्या मई तक के लिए टल सकता है ?

नई दिल्ली, छत्तीसगढ़।  असल बात न्यूज़।।     00 विशेष संवाददाता /अशोक त्रिपाठी   इस समय जबकि, इस साल 2023 के अंत तक देश के पांच राज्यों में व...

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नई दिल्ली, छत्तीसगढ़। 

असल बात न्यूज़।।

   00 विशेष संवाददाता /अशोक त्रिपाठी

 इस समय जबकि, इस साल 2023 के अंत तक देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, पूरे देश में 'एक देश एक चुनाव', 'वन नेशन वन इलेक्शन', का मुद्दा सुर्खियों में है,इस पर हर जगह बहस छिड़ी दिख रही है और संसद के विशेष सत्र में इसका विधेयक लाए जाने और उसके पारित हो जाने की संभावना की जा रही है। छत्तीसगढ़ के लिए यह सब्जेक्ट काफी महत्वपूर्ण है। हमारे लिए यह सब्जेक्ट,इसलिए अधिक महत्वपूर्ण  है क्योंकि यह विधेयक पारित हो जाने पर इसका छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। आशंका है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' का विधेयक पारित हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव समय पर न होकर देर से हो सकता है।नई परिस्थितियों में यहां के साथ पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव आगामी मई महीने में कराया जा सकता है और तब यह लोकसभा चुनाव के साथ होगा।


देश में अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इस साल के अंत तक पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव कराया जाना है। जबकि हम सबको याद होगा कि इसी साल अभी कर्नाटक राज्य का चुनाव संपन्न हुआ है। देश के पूर्वोत्तर के राज्यों नागालैंड,त्रिपुरा,मेघालय में भी इसी साल वर्ष 2023 में विधानसभा का चुनाव हुआ है। वर्ष 2024 में भी कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। संभवत हर साल बार-बा र के चुनाव के इन्हीं हालातो को देखकर 'वन नेशन वन इलेक्शन'की परिकल्पना पर जोर दिया जा रहा है। यह उल्लेखनीय है कि देश में वर्ष 1951- 52 से लेकर वर्ष 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभा के निर्वाचन अधिकांशत साथ-साथ कराए गए थे। तब कुछ तत्कालीन ऐसी परिस्थितियों बनी कि यह चक्र टूट गया। माना जा रहा है कि हर साल चुनाव होने से देश को कई तरह से नुकसान हो रहा है। बार-बार के चुनाव से सुरक्षा बलों और निर्वाचन अधिकारियों को अपने मूल्य कर्तव्यों से भिन्न दूसरे कार्यों के लिए तैनात करना पड़ता है और आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने से विकास कार्यों में दीर्घ अवधियों तक बाधा आती रहती है।इसी समस्या के हाल के लिए एक देश एक चुनाव पर जोर दिया जाने लगा है। अब जब इसके लिए विधेयक लाए जाने की उम्मीद की जा रही है तो इसके पक्ष में भी कई लोग नजर आ रहे हैं और इसके विरोध में भी ढेर सारे लोग खड़े दिखते हैं।

केंद्र की मोदी सरकार को चौंकाने वाला निर्णय लेने, कड़े निर्णय लेने के लिए जाना जाता है। नोटबंदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मोदी सरकार को नोटबंदी के लिए पहले आलोचना भी झेलनी पड़ी लेकिन बाद में लोगों ने इसे सराहा। तब उसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से बड़ी जीत मिली तो लगा कि राजनीतिक तौर पर नोटबंदी को बहुत अधिक नापसंद नहीं किया गया है बल्कि सरकार को उसका सकारात्मक फायदा मिलता नजर आया।फिलहाल केंद्र सरकार 'वन नेशन वन इलेक्शन' के बिल को लाने के लिए कृत संकल्पित नजर आ रही है। और जो इस तरह से इसके बिल को प्रस्तुत करने और आगे की तैयारी के लिए के लिए आनन फानन में उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी गई है, हमें इस बिल को पारित होते देखने के लिए तैयार रहना पड़ सकता है।इस समिति को साथ-साथ निर्वाचन करने के लिए आवश्यक विशिष्ट संशोधन करने की सिफारिश करने, साथ- साथ चुनाव के लिए फ्रेमवर्क का सुझाव देने, पूरे देश में एक साथ चुनाव नहीं होने की स्थिति में अलग-अलग चरण और उसकी समय सीमा का सुझाव देने, निर्वाचन के चक्र की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों की सिफारिश करने, संविधान में आवश्यक संशोधन की सिफारिश करने, मतदाताओं की पहचान के लिए एकल निर्वाचक नामावली तैयार करने की सिफारिश करने के जैसे कई महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इस समिति को तुरंत कार्य करने और यथाशीघ्र सिफारिश देने को कहा गया है।

 केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हित में साथ- साथ निर्वाचन करने को वांछनीय माना है और इसी पूरे परिपेक्षय में पूरी तैयारी की जा रही है। तो इसकी संभावना दिख रही है कि हमें एक देश एक चुनाव का नियम देखने को मिल सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में संसद की कार्मिक लोक शिकायत विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय संसदीय स्थाई समिति ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव के लिए साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की साध्यता पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है और दो चरणों में साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की एक वैकल्पिक और व्यवहारिक विधि की सिफारिश की है। देश में यह पहले भी माना गया है कि विधानसभा का पृथक निर्वाचन अपवाद होना चाहिए कि ना कि नियम। वास्तव में नियम यह है कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच वर्ष में एक बार आवश्यक रूप से निर्वाचन होना चाहिए। देश की केंद्र सरकार फिलहाल इसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है।

अब हम देखते हैं देश में इस वर्ष के अंत में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के हालात पर। देश में अभी मिजोरम छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश राजस्थान और तेलंगाना राज्य में वर्ष 2023 के अंत तक विधानसभा चुनाव कराया जाना है। जानकारी के अनुसार मिजोरम की 40 सदस्यीय विधानसभा का कार्यकाल 17 दिसंबर को समाप्त होना है तो वहीं छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी और 6 जनवरी 2024 को समाप्त हो जाएगा। सवाल उठता है कि वन नेशन वन इलेक्शन का बिल पारित हो जाता है तो आगे क्या होगा।  लोकसभा जिसका कार्यकाल वर्ष 2024 तक है उसे पहले डिसॉल्व करना तो शायद ही कोई चाहेगा और जिस तरह से केंद्र सरकार देश में काम कर रही है उन परिस्थितियों में तो यह नामुमकिन जैसे ही है। लोकसभा का चुनाव,मई 2024 के बाद ही कराया जाना है तो एक देश एक चुनाव को लागू करने के लिए अभी पहले राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उन्हें देर से कराने का निर्णय लिया जा सकता है। ऐसा हुआ तो सवाल कर पर छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव टल जाएंगे। साथ-साथ चुनाव होने पर किस क्या फायदा मिलेगा छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव देर से होगा तो वैसे हालत में कौन सी राजनीतिक पार्टी फायदे में रहेगी इसको लेकर भी चर्चा चल रही हैं। फिलहाल संसद के विशेष सत्र की बैठक आगामी 18 सितंबर से शुरू होने वाली है। इधर छत्तीसगढ़ राज्य में चुनाव आयोग के द्वारा मतदाता सूची को अंतिम रूप देने का काम तेजी से किया जा रहा है। राजनीतिक पार्टियों की भी अपनी गतिविधियां बढ़ गई है और दिसंबर के अंत तक  होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने तो बाकायदा अपने उम्मीदवारों की एक सूची जारी भी कर दी है।
वर्ष 2024 में कुछ और बड़े राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। हो सकता है कि उन राज्यों के चुनाव भी साथ में कराने की योजना बन जाए।फिलहाल इस पर अनूमानों का दौर चल रहा है। अभी तो वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पारित करने का यह समय उपयुक्त नजर आ रहा है।

                 00  Political reporter.

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