गंभीर दांडिक प्रकरणों में अपील नहीं की जाती तो उसकी समीक्षा के लिए बनी है समिति छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दोष मुक्ति के प्रकरणों में अपी...
गंभीर दांडिक प्रकरणों में अपील नहीं की जाती तो उसकी समीक्षा के लिए बनी है समिति
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दोष मुक्ति के प्रकरणों में अपील प्रस्तावित नहीं करने को गंभीरता से लिया, पीड़ितों को न्याय दिलाने नीति एवं प्रक्रिया निर्धारित की
ऐसे गंभीर दांडिक प्रकरणों जिनमे आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाता है और उन प्रकरणों में अपील प्रस्तावित नहीं की जाती है तो उसकी समीक्षा के लिए समिति गठित की गई है। सरकार की मंशा रही है कि आरोपियों को हर हालत में सजा मिलनी चाहिए और यह भी कि कोई भी अपराधी, अपराध करने के बाद वह किसी भी तरह से बच ना सके। कई बार कहीं तकनीकी या विधिक कमी रह जाने की वजह से कई आरोपी, सजा पाने से बच जाते हैं। अपराध करने के बाद कोई अपराधी, सजा पाने से बच जाए तो समाज में किस तरह का संदेश जाता है इसकी कल्पना की जा सकती है। इसे समझा जा सकता है। और दुष्कर्म, जहां पीड़िता का सब कुछ तार तार हो जाता है,समाज के बीच उसके उठने बैठने, आगे बढ़ने, जीवकोंपार्जन का साधन जुटाने, अपने बच्चों के पालन पोषण में असुविधा होती है के मामले में कोई आरोपी न्यायालय से साफ-साफ बच जाए तो पीड़िता को मानसिक परेशानियों के साथ कितनी व्यथा हो सकती है इसे समझा जा सकता है। ऐसे मामलों में आरोपी के बच जाने से न्याय के प्रति आस्था भी डगमगाने लग सकती है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा पारित दिशा निर्देश के अनुसार ऐसे मामलों में विधि एवं विधायी कार्य विभाग छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं और लोक अभियोजक अतिरिक्त लोक अभियोजक द्वारा गंभीर दांडिक प्रकरण जिसमे आरोपी को दोष मुक्त कर दिया जाता है के दोष मुक्ति के प्रकरण में अपील प्रस्तावित नहीं किए जाने की समीक्षा हेतु जिला स्तर पर समिति गठित की गई है।इस तरह से पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए कदम उठाया गया है।
इस जिला स्तरीय समीक्षा समिति में जिला मजिस्ट्रेट /कलेक्टर को अध्यक्ष बनाया गया है। वही उसमें जिला पुलिस अधीक्षक को सदस्य बनाया गया है और संयुक्त संचालक/उपसंचालक अभियोजन को सदस्य सचिव बनाया गया है। समीक्षा समिति अपनी जिम्मेदारियां का त्वरित गति से निर्वहन करें इसके लिए समीक्षा समिति की बैठक के लिए दिन भी तय किया गया है। समिति की प्रत्येक माह के द्वितीय सोमवार को ऐसे सभी दोष मुक्त प्रकरणों की समीक्षा करने का प्रावधान किया गया है जिसमें लोक अभियोजक अतिरिक्त लोक अभिलेख द्वारा अपील प्रस्तावित नहीं की गई है।इसमें समिति ऐसे प्रकरण में अपील किया जाना है अथवा नहीं किया जाना है कि संबंध में राज्य सरकार के विधि विभाग को अनुशंसा प्रेषित करेगी एवं प्रस्ताव की एक प्रति गृह विभाग को अनुशंसा सहित प्रेषित करने का प्रावधान किया गया है ।
दोस्त मुक्त प्रकरणों में पीड़ितों को न्याय मिल सके और आरोपी को सजा मिल सके इसके लिए व्यापक प्रावधान किए गए हैं। गृह विभाग को समीक्षा समिति से जो अनुशंसा प्राप्त होती है उसमें अपील की अनुशंसा होने पर उसके औचित्य का परीक्षण कर प्रकरण अपील योग्य पाए जाने पर विभाग के द्वारा एक निर्धारित समय सीमा के भीतर अविलंब प्रभारी अधिकारी नियुक्त कर अपील प्रस्ताव विधि विभाग को अग्रिम कार्रवाई हेतु प्रेषित करने को कहा गया है। ऐसे प्रस्ताव जो विधि विभाग को जिला डंदाधिकारी द्वारा सीधे प्राप्त होते हैं उसका परीक्षण करने पर विधि विभाग ऐसे प्रकरणों को अपील योग्य पाता है तो अपील किए जाने के निर्णय को महाअधिवक्ता को सूचित करते हुए प्रभारी अधिकारी नियुक्त किए जाने के संबंध में गृह विभाग को इसकी सूचना दी जाएगी। इसके बाद प्रभारी अधिकारी विधि विभाग को जिम्मेदारी दी गई है कि उसके द्वारा नियमावली के प्रावधानों के अंतर्गत विहित समयावधि में प्रकरण को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के समक्ष अपील हेतु प्रस्तुत किया जाना सुनिश्चित करेगा। उल्लेखनीय है कि प्रभासाहू विरुद्ध छत्तीसगढ़ शासन के मामले में माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा इस संबंध में दिशा निर्देश दिया गया है। माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा इस मामले में राज्य की ओर से प्रस्तुत दोष मुक्ति के विरुद्ध अपीलों के संबंध में यह अवलोकन किया गया है कि राज्य सरकार की ओर से सभी गंभीर प्रकरणों में दो समिति के विरुद्ध अपील प्रस्तुत नहीं की जा रही है जबकि छोटे-छोटे मामलों में अपूर्वी प्रस्तुत करने की संख्या ज्यादा है। इसे देखते हुए उच्च न्यायालय के द्वारा दोष मुक्ति के प्रकरणों में अपील प्रस्तावित नहीं किए जाने पर नीति एवं प्रक्रिया निर्धारित की गई ।