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कोई भी सरकार हो, हर पांच साल में बदलनी चाहिए, वाली मानसिकता के मतदाताओं का भी बन रहा है बड़ा वर्ग

  रायपुर।  असल बात न्यूज़।।    चुनाव में ढेर सारे मुद्दे रहेंगे और अलग-अलग मुद्दे मतदाताओ को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते नजर आएंगे।इन सबक...

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 रायपुर।

 असल बात न्यूज़।।   


चुनाव में ढेर सारे मुद्दे रहेंगे और अलग-अलग मुद्दे मतदाताओ को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते नजर आएंगे।इन सबके बीच ऐसे भी मतदाताओं का बड़ा वर्ग तैयार हो रहा है,जोकि,चाहता है कि प्रत्येक 5 वर्ष में सरकार को हर बार अनिवार्य रूप से बदलना चाहिए।इस वर्ग के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सत्ता में कौन सी पार्टी की सरकार है,वह कैसा काम कर रही है,उसने जन कल्याण के लिए क्या काम किया है,उसकी विचारधारा कैसी है ?बस इनका मानना है कि कोई भी हो, सरकार प्रत्येक 5 वर्ष में बदलनी चाहिए। मजेदार बात है कि युवाओं का जो शिक्षित वर्ग आ रहा है, जो नए मतदाता बना रहे हैं वे इसी मानसिकता के पक्षधर हैं।वे नहीं चाहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को लगातार  सरकार बनाने का मौका मिले। 

देश को आजादी मिले 78 वर्ष हो गए हैं और इन वर्षों में देश में राजनीतिक परिस्थितियों भी काफी कुछ बदल गई है। देश ने वह दौर भी देखा है जब मतदाता, मतदान केंद्र पहुंचते थे तो उन्हें प्यार से बता दिया जाता था कि तुम्हारा वोट पड़ गया है। घबराने की जरूरत नहीं है। घर जाकर आराम करो। सरकार बनेगी तो तुम्हारा पूरा काम होगा। कभी बाहर-बाहर के अनजाने चेहरों को मतदाता बनकर लंबी लाइन लगाकर मतदान करते देखा गया। कभी एक ही मतदाता के कई-कई जगहों पर मतदान करने की खबरें सुर्खियों में रही। पहले विधानसभा और लोकसभा के चुनाव कई वर्षों तक एक साथ हुए। सरकारे, समय से पहले गिरने लगी तो यह चक्र टूट गया।मतपत्र पर छाप लगाकर मतदान करने के दौर को भी देखा गया। अब, हम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर मतदान करते देख रहे हैं। मतदान की स्थिति-परिस्थितियों के साथ चुनाव के मुद्दे भी बदल रहे हैं। आजादी के बाद कुछ वर्षों तक सर्व सम्मति से उम्मीदवार को चुन लिए जाने की मानसिकता भी रही थी। उस समय देश महत्वपूर्ण था। देश के लिए काम करने वाले के तौर पर पहचाने जाने वाले उम्मीदवार का सभी राजनीतिक दल साथ देते थे। फिर भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी होने लगा। इसके आधार पर उम्मीदवार रिजेक्ट किए जाने लगे और सरकारें बदली जाने लगी। अठारह वर्ष से अधिक उम्र के  युवाओं को मतदान का अधिकार मिला तो मतदान के मुद्दों में और क्रांति आती दिखी । तब से ही सरकारों को तेजी से बदलने का दौर शुरू हुआ। 

एक समय था, कई कई राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार,कई-कई वर्षों तक रही है। बार-बार एक ही पार्टी की सरकार चुनी जाती रही है।तब,विरोधी पार्टी के लिए गुंजाइश न के बराबर दिखती रही थी। अब किसी भी राजनीतिक दल के लिए बार-बार चुना जाना, निर्वाचित होना असंभव जैसा होने लगा है। पिछले तीन दशक से हम देख रहे हैं कि किसी भी राजनीतिक दल की,किसी भी राज्य में 15 वर्षों से अधिक तक सरकार नहीं रही है। दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। यह सरकार तब 15 वर्षों तक चली। लेकिन इसके बाद दिल्ली में,कांग्रेस का ऐसा पतन हुआ कि वह आज तक वहां दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी है। छत्तीसगढ़ में भी पिछली बार 15 वर्षों के बाद मतदाताओं ने भयंकर तरीके से सरकार बदला। मतदाताओं के द्वारा अब लगभग 10-15 वर्षों के बाद सभी राज्यों की सरकारें बदल दी जाने लगी है। हमारे बड़े- बुजुर्ग मतदाताओं ने पश्चिमबंगाल, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों में तीस-तीस वर्ष तक एक ही पार्टी की सरकार को चलते देखा है। उन मतदाताओं ने उसे पार्टी पर पूरा भरोसा किया। वह पार्टी और उसके नेता उन मतदाताओं को अपने भगवान लगते थे। परंतु यह विश्वास धीरे-धीरे टूटता गया। मतदाताओ ने महसूस किया कि उनकी पार्टी के 30 वर्षों तक भी सत्ता में रहने के बाद उनके राज्य की आर्थिक स्थिति सुधरी नहीं है। बेरोजगारी के वही पहले जैसे हालत है। उद्योग धंधे ठप्प ही हो रहे हैं। उनके राज्य में बाहरी आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। नक्सली समस्या ने भी इसी समय इन राज्यों को पूरी तरह से घेर लिया। विश्वास टूटा, तो वे पार्टियां बदल गई और फिर दोबारा सत्ता में नहीं आ पाई।

इससे समझा जा सकता है कि मतदाता 10-15 वर्ष के बाद सरकारों से उबने लग रहे हैं और चाहे यह उनके पसंद की पार्टी की ही सरकार क्यों ना रही हो, मतदाताओं ने 10- 15 वर्षों के बाद उसे बदल दिया है। लेकिन लग रहा है कि यह 10-15 वर्षों तक सत्ता में रहने का पैटर्न भी ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है। अब समय आ रहा है कि हमे  प्रत्येक 5 वर्ष में सरकार को बदलते देखने को मिल सकता हैं।

आज का शिक्षित युवा वर्ग बेरोजगारी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। उसे अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल रहा है। उसे लग रहा है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी उसके साथ न्याय नहीं कर रही हैं। रोजगार के लिए वे भटक रहे हैं।उन्हें दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है। दूसरी तरफ सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप बढ़ते जा रहे हैं। एक खटारा स्कूटर पर चलने  लोग कुछ ही दिनों में स्कूटर से महंगी लग्जरी कार में चलते दिखने लग जाते हैं। तो ऐसे में उन्हें वोट देकर सत्ता पर बिठाने वाले लोगों को उनसे ऊब और चिढ़ तो होगी ही। 

इन्हीं सब हालात में अब चुनाव का मुद्दा भी बदलता दिख रहा है और हो सकता है कि आने वाले वर्षों में प्रत्येक बार, सरकार को हर हालत में बदलने का मुद्दा पूरी तरह से हावी होता दिखे। युवाओ में इसकी सोच बढ़ती दिख रही है। जो नौकरीपेशा युवा है उनकी भी ऐसी ही मानसिकता नजर आ रही है। कई वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद मतदाताओं ने अपने उम्मीदवार के आचरण को बदलते हुए देखा है। सत्ता में लगातार बने रहने पर मालिक बन जाने की प्रवृत्ति को भी मतदाताओं ने देखा है। लेकिन कोई भी मतदाता वोट देकर किसी को भी मालिक तो बनाना नहीं चाहेगा ना। बार-बार सत्ता में रहने पर मतदाताओ ने उम्मीदवारों को अपने आपको पार्टी से बड़ा समझते भी देखा है और वे यह भी कतई नहीं होना देना चाहते। इसी के चलते एक उम्मीदवार एक बार की आवाज बुलंद हो रही है। राजनीति में ऐसे हालात में हमे आगे और बड़ा बदलाव देखने मिल सकते हैं । ऐसा रहेगा तो किसी का दूसरी तीसरी बार के बाद सरपंच,पार्षद अथवा पंच ही नहीं, विधायक और सांसद बनना भी मुश्किल होने लगेगा। बात करें, छत्तीसगढ़ राज्य की, तो मतदाताओ ने इस राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ा बदलाव किया है। मतदाताओं ने उस चुनाव में, कई लोकप्रिय माने जाने वाले उम्मीदवारों को भी खारिज कर दिया और सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस चुनाव में लंबे समय तक सत्ता पर बने रहने वाले लोगों को खारिज करने का मुद्दा और जोरदार तरीके से असरकारक दिखेगा। यहां भारतीय जनता पार्टी में तो ऐसे ही हालत को देखते हुए कार्यकर्ता ही पार्टी की जीत के लिए पुराने चेहरों को टिकट नहीं देने की आवाज उठाने लगे हैं। इसकी आशंका जताई जा रही है की टिकट मिलने पर पुराने कई चेहरे जीत नहीं सकेंगे। कांग्रेस में भी कमोबेश यही हालत है। हालांकि कांग्रेस में ऐसे विधायको की संख्या काफी कम है जो कि दो बार से अधिक विधायक चुने गए हैं, इसलिए भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस में इस मुद्दे को लेकर अधिक विरोध नहीं दिख रहा है। वस्तु स्थिति यह है कि मतदाता, अब एक उम्मीदवार को बार-बार सत्ता में देखना पसंद नहीं कर रहे हैं।

         00 political reporter.