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ये है बस्तर की संस्कृति की महक, झगड़इन पेड़ के फूल, तुमा फुल, कांदा फुल, छिंद के पेड़ की छाल के मनमोहक झूले, गजाडा फूल सहज ही आकर्षित कर लेते हैं हमें

  कोंडागांव,बस्तर। असल बात न्यूज़।।          00  विशेष संवाददाता         00   अशोक त्रिपाठी          ये है बस्तर की संस्कृति की महक, झगड़इन ...

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कोंडागांव,बस्तर।

असल बात न्यूज़।।     

    00  विशेष संवाददाता   

    00   अशोक त्रिपाठी        

ये है बस्तर की संस्कृति की महक, झगड़इन पेड़ के फूल, तुमा फुल, कांदा फुल, छिंद के पेड़ की छाल के मनमोहक झूले, गजाडा फूल सहज ही आकर्षित कर लेते हैं हमें

छिंद के महकते पेड़ों के छाल का मन को मोह लेने वाला झूला। उस पर बारीकी से गुथे टंके लाल, गुलाबी,पीले मनमोहक फूल। ये सब तो आपका मन सहज ही मोह लेंगे।अभी हमारे पर्वों, उत्सवों के दिन शुरू हुए हैं तो बस्तर अंचल के दक्षिण से लेकर उत्तर तक  और पूर्व से लेकर पश्चिम तक का पूरा बाजार, ऐसे ही सुंदर फूलों- फलों से पटा हुआ है। और वास्तव में यही सब तो हरे-भरे लहराते वृक्षों,फूलों के अंचल बस्तर की संस्कृति की पहचान है। हम सब,जब बस्तर पहुंचते हैं तो इनकी खूबसूरती देखकर इनकी निश्चलता देखकर, इनका कोमल आकर्षण देखकर हमारे मन के कोने में इसे देखकर कहीं ना कहीं लगने लगता है कि बस्तर की संस्कृति की वास्तविक पहचान को कही हमसे छिपाने की कोशिश तो नहीं की गई है और यहां की खूबसूरती को छुपा कर दूसरी चीजों का अधिक प्रचार प्रसार किया गया है। 

अभी जब नई व्यवस्थाओं के माध्यम से बाजारों को कुछ हद तक व्यवस्थित करने की कोशिश की गई है तब भी हम यहां के मुख्य मार्गों पर निकलते हैं, यहां की बस्तियों की गलियों के किनारे से निकलते हैं तो बस्तर का बाजार सहज ही सामने दिख जाता है। आप यहां पहुंचेंगे तो देखेंगे की यहां ज्यादातर दुकानों की प्रबंधक महिलाएं ही होती हैं।अपने कार्य के प्रति सजग, आत्मनिर्भर और मेहनत करने में कहीं पीछे नहीं रहने वाली ये ही महिलाएं दूर-दूर के जंगल से सामान भी लाती हैं। वे ही इन सामानों को ढोकर दूर-दूर तक के बाजारों में पहुंचाती भी हैं और दिनभर सड़क के किनारे दुकान सजाए रखती हैं। बस्तर का यह आशीर्वाद है कि इतनी कठिन मेहनत के बावजूद उनके चेहरे पर थकान का अनुभव, आप नहीं करेंगे।इनसे सामान खरीदने पर आपको जरूर खुशी हो सकती है।ये सामान आपको कुछ महंगे जरूर लग सकते हैं लेकिन इन्हें खरीद कर आपको लगेगा कि आप अपने माटी की,वनों की, पेड़ पौधों की, फूलों की महक, असीम सुंदरता को घर लेकर पहुंच रहे हैं। जो कि पूरे घर की महक में सकारात्मक ऊर्जा बिखर देने वाली होती है। परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे पर नई मुस्कान ला देने वाली होती है। आपको लगेगा कि असल छत्तीसगढ़ की महक तो यहां है। आप बार-बार अपने संस्कृति, माटी की महक को अपने घर में उपयोग करने लगेंगे तो इनके नहीं होने पर आपको हमेशा उनकी कमी महसूस होती रहेगी। 

बारिश का सीजन खत्म होने लगता है तो लगभग बस्तर के सभी मुख्य बाजारों, फुटपाथों पर इन सुंदर फूलों, महकते छाल के झूलों, धान गेहूं के छोटे पौधे जिन्हें भोजली कहा जाता है के बाजार सज जाते हैं। छठ पर्व के अवसर पर इन चीजों की खरीददारी बढ़ती जाती है। महिलाएं इन चीजों की सबसे अधिक खरीददारी करती हैं। परंपरा के अनुसार महिलाएं परिवार सहित इन चीजों को खरीदने बाजार पहुंचती हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बस्तर में जिस तरह से छठ पर्व अत्यंत उत्साह और भक्ति भाव से मनाया जाता है शहरों में मनाया जाने वाला छठ पर्व उसी का काफी कुछ परिष्कृत रूप है। 


छठ पर्व के बाद जन्माष्टमी के अवसर पर इन चीजों के बिक्री की धूम रहती है। जन्माष्टमी पर्व के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के लिए छिंद पेड़ की छाल के बने मनमोहन झूलों की काफी खरीददारी की जाती है। समूचे बस्तर में जन्माष्टमी का पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। शहरी क्षेत्र में तो जन्माष्टमी का पर्व सिर्फ मंदिरों में ही मनाने की परंपरा शेष रह गई दिखती है लेकिन बस्तर में जन्माष्टमी का पर्व घर-घर में मनाया जाता है। इस दिन घर-घर में बच्चों को कृष्ण और राधा के रूप में सजे देखा जा सकता है। परिवार के लोग अपने बच्चों के लिए भी यह झूले ले जाते हैं। यह झूले काफी मनमोहक होते हैं और इन्हें बच्चे काफी पसंद करते हैं। बच्चियां तो इन झूलों की दीवानी दिखती हैं और परिवार के लोग जब सामान खरीदने जाने लगते हैं तो वे बच्चियां, इन झूलों को खरीदने के लिए ही साथ में बाजार जाने की जिद करने लगते हैं। यह तो हम सबको मालूम है कि बच्चियों को फूल कितने अधिक पसंद होते हैं। और जब दूर जंगल के फूल जो आसानी से नहीं मिलते, बाजार में आने लगते हैं तो इसकी भनक मिलने के बाद बच्चियों को इसे खरीदने बाजार आने से आखिर कौन रोक सकता है। अभी बस्तर के बाजार इन चीजों की खरीददारी करने के लिए लोगों की भीड़ से पटे नजर आ रहे हैं। 

जन्माष्टमी पर्व की धूम खत्म होते होते गणेश उत्सव आने लगता है। इसके बाद नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाता है। इन सब मौके पर भी इन फूलों फलों की खरीददारी करने भारी भीड़ होती है। वीराने में कहीं भी जाना हो तो पर्यटन के लिए आप कहीं भी चले जाइए। लेकिन प्रकृति के नजदीक आना चाहते हैं, वनों की मनमोहन सुंदरता के करीब आना चाहते हैं। अनदेखे फूलों, वृक्षों, जंगल को देखना चाहते हैं, सुंदर संस्कृति को देखना चाहते हैं उसे जानना चाहते हैं तो आप बस्तर चले आइए। इस मौसम में आप यहां आते हैं तो खासतौर पर झगड़ईन पेड़, तुमा फूल, कांदा फुल छिंद के पेड़ के छाल का मनमोहन झूला, जंगल का गजाडा, आपका स्वागत करते नजर आएंगे। इन चीजों को देखना, इनके बारे में जानना सचमुच आपको  विस्मयकारी लगेगा। और अपनी विराट,अद्भुत, सदियों पुरानी, विशालतम संस्कृति की चमक,पहचान के बारे में आपको वास्तविक जानकारी मिलेगी। 

नगर शहर की व्यवस्था के नए जमाने के स्ट्रीट वेंडर्स पैदा हो गए हैं और फुटपाथों पर पिज़्ज़ा बर्गर, मोमोज,अंडे, कबाब मुर्ग मुसल्लम गुपचुप समोसे की दुकानों का कब्जा होने लगा है तो हमारी संस्कृति से जुड़े फल फूलों की दुकाने सिमट गई हैं।सिमट रही हैं। कहते तो यहां तक हैं कि अबूझ जंगलों से घिरे पर्वतों से घिरे बस्तर के ये महकते अद्भुत सौंदर्य से भरपूर फल फूल रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव के बाजारों तक में बिकने पहुंचते थे। इन्हें सहेजने की जिम्मेदारी भी हमारी ही। हम सदियों से उनके साथ जुड़े हुए हैं। आम लोग,आज भी इनके साथ जीना चाहते हैं लेकिन जो व्यवस्था बदल रही है, वह हमें दुत्कार रही है इन चीजों को हम सभी से दूर कर देना चाहती है। यह तो सदियों पहले से कहा जाता रहा है कि हमें छत्तीसगढ़ को समझना है,उसकी संस्कृति के बारे में जानना है, यहां के जनजीवन की बारीकियों को समझना है तो हमें बस्तर की संस्कृति के बारे में जानना होगा,वहां के आम लोगों के जीवन यापन के तरीकों को समझना होगा, वहां के हरे-भरे वृक्ष, फल- फूल की महक को आत्मसात करना होगा। इसके बिना हमारी जानकारी, हमारा ज्ञान आधा अधूरा ही रह जाएगा।


    00 महकता बस्तर, दमकता बस्तर. 


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