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सब कुछ "फ्री" में बांट देने की राजनीतिक दलों की नीति पर लगाम लगाना क्या जरूरी नहीं ? मतदाता पहले कभी नहीं करते थे "घोषणा पत्र manifesto" का इंतजार

  छत्तीसगढ़।  असल बात न्यूज़।।          00 रोज की डायरी      राजनीतिक वातावरण, यहां अब तक जैसा सरगर्म हो जाना चाहिए था,वैसा शायद हो नहीं पाय...

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 छत्तीसगढ़।

 असल बात न्यूज़।।  

       00 रोज की डायरी    

राजनीतिक वातावरण, यहां अब तक जैसा सरगर्म हो जाना चाहिए था,वैसा शायद हो नहीं पाया है। ऐसा नहीं है कि यहां राजनीतिक गतिविधियों में कहीं कोई कमी रह गई है। राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिदिन कहीं ना कहीं, बड़ी सभाएं हो रही हैं। राजनीति की पूरी बिसात बिछ गई है। मोहरे तय हो गए हैं। उम्मीदवारों की लगभग हर जगह घोषणा हो गई है और कहीं-कहीं विरोध के कुछ सुर के बीच भी उम्मीदवारों ने अपने चुनाव प्रचार को तेजी देनी शुरू कर दी है। पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन दाखिले की प्रक्रिया पूरी हो गई है। स्थानीय नेता लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं। लोगों के बीच जा रहे हैं। आम मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश करने में लगे हुए हैं। छोटी-छोटी सभाएं भी ले रहे हैं। कार्यकर्ताओं की लगातार बैठके भी हो रही हैं।इन सब गतिविधियों के बीच भी चुनाव प्रचार को ऊफान में पहुंचने में कुछ कमी रह गई नजर आ रही है। हां, हम आपको बता दें कि, इस बार,आम मतदाता  राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र manifesto का बड़ी बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे हैं। और घोषणा पत्र के बिना राजनीतिक सरकारी में के चरम पर पहुंचने में कमी दिख रही है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि घोषणा पत्र का इंतजार किया जा रहा है और उसे राजनीतिक वातावरण प्रभावित होता दिख रहा है। मतदाता कह रहे हैं, राजनीतिक पार्टियों का जैसा घोषणा पत्र होगा उसे देखकर मतदान करने के लिए अपना मन तैयार करेंगे। और यही वजह है की सारी गतिविधियां चलने के बावजूद चुनाव प्रचार के ऊफान पर पहुंचने में कहीं ना कहीं कुछ कमी नजर आ रही है। सबके बीच "घोषणा पत्र" हावी हो गया है। घोषणा   पत्र ही मतदाताओं को सबसे अधिक आकर्षित करता दिख सकता है। 

हम आप सबको बता दें कि इस चुनाव में चाहे बस्तर हो अथवा अंबिकापुर के जंगल क्षेत्र अथवा रायपुर, दुर्ग बिलासपुर के मैदानी क्षेत्र।सभी जगह  आम मतदाता राजनीतिक पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र का इंतजार कर रहे हैं, यह स्थिति सिर्फ मैदानी क्षेत्र में ही नहीं है। आम मतदाताओं के द्वारा प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र का इंतजार किया जा रहा है और वे सब देखना चाहते हैं कि राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में उनके लिए क्या वादे किए हैं। इस बार चुनाव में यह जो वातावरण बना हुआ है ऐसे हालात पहले नहीं थे।बड़े- बुजुर्ग बताते हैं कि,उनके बीच तो घोषणा पत्र कभी बहुत अधिक असर कारक नहीं रहा। इस तरह की राय रखने वाले कुछ वरिष्ठ मतदाताओं ने अपनी राय जाहिर करते हुए बताया कि हम आजादी के बाद से चुनाव देख रहे हैं। राजनीति के दलों का घोषणा पत्र, क्या होता था ?कई वर्षों तक तो हम सबको इसका पता ही नहीं चलता था। पहले लोग राजनीतिक दल को देखते थे और उसके आधार पर मतदान करते थे। बाद में स्थिति बदली और राजनीतिक दलों के साथ,उसके उम्मीदवारों के व्यवहार,चाल चरन और सक्रियता को देखा जाने लगा। पिछले दो चुनाव के पहले तक लगभग यही स्थिति रही थी। दिल्ली के चुनाव से "घोषणा पत्र" लोकप्रिय हुआ। कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में  घोषणा पत्र के आधार पर उसे बहुमत करने का दावा करने लगी तो इस राज्य में भी "घोषणा पत्र" की हवा चलने लगी है। महत्वपूर्ण बात है कि घोषणा पत्र की हवा चल रही है तो दूसरे कई सारे गौण होते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे से मतदाता अभी अधिक प्रभावित होते नजर नहीं आ रहे हैं। 'भ्रष्टाचार' के मुद्दे पर तो मतदाताओं को हर राजनीतिक दलों में इसकी खामियां नजर आने लगी है, और मतदाताओं को स्पष्ट लगता है कि कोई भी इससे अछूता नहीं है। मतदाताओं को महसूस होने लगा है कि जो भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में आ जाती है कितना भी आश्वासन दे भ्रष्टाचार के आरोपी से कोई भी पार्टी मुक्त नहीं रह सकी है। उम्मीदवारों का निजी व्यवहार अपनी जगह पर बना हुआ है और चुनाव परिणाम में इसका भी काफी असर दिखेगा लेकिन राजनीतिक पार्टियों का 'घोषणा पत्र' फिलहाल इससे ऊपर हो गया नजर आ रहा है। हो सकता है कि किसी विधानसभा क्षेत्र में किसी उम्मीदवार का व्यवहार और आपराधिक रिकार्ड अच्छा नहीं होने के बावजूद भी उसकी पार्टी के घोषणा पत्र के चलते वह उम्मीदवार चुनाव में जीत हासिल करता नजर आ जाए। इस चुनाव से घोषणा पत्र ऐसे चमत्कारिक तरीके से काम करता नजर आ रहा है।

एक बात और कि मुख्य राजनीतिक दलों ने यहां घोषणा पत्र के महत्व को समझ लिया है। ऐसे में स्पष्ट है कि राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में  प्रतिद्वंदी राजनीतिक दलों के मुकाबले में काफी बढ़ चढकर वादे करते नजर आएंगे। घोषणा पत्र के बड़ों से ही सरकार बनने वाली है तो एक राजनीतिक दल एक रुपए के कर्ज माफी का वादा करेगा तो दूसरा राजनीतिक दल स्वाभाविक तौर पर अपने घोषणा पत्र में  तुरंत दो रू की कर्ज माफी का वादा करते दिखेगा। मुख्य राजनीतिक दलों के द्वारा घोषणा पत्र में किन-किन बिंदुओं को शामिल किया जाए, इस पर काफी उच्च स्तर पर काफी पहले से लंबे दोनों से विचार विमर्श किया जा रहा है। राजनीतिक दलों में इसको लेकर भी चिंताएं दिख रही है कि  किसी कारण से कहीं, उनका घोषणा पत्र  कमजोर ना रह जाए और विरोधी पार्टी अपने घोषणा पत्र के सहारे बाजी ना मार ले जाए। यह चिंता लगातार बनी हुई है और घोषणा पत्र को लेकर राजनीतिक दलों में लगातार विचार मंथन चल रहा है। इसके चलते घोषणा पत्र को जारी करने में देरी भी हो रही है। प्रथम चरण के लिए मतदान सात नवंबर को होना है लेकिन इसके लिए अब बमुश्किल 10 दिन बचे हुए हैं लेकिन मुख्य राजनीतिक दलों का घोषणा पत्र जारी नहीं हुआ है। 

विधानसभा चुनाव के अपने अलग-अलग मुद्दे होते हैं। इस चुनाव में ज्यादातर राज्य स्तर के जो मुद्दे हैं वह ही मतदाताओं को प्रभावित करते दिखते हैं। हालांकि राष्ट्रीय स्तर के भी कुछ मुद्दों का इस चुनाव में भी कुछ प्रतिशत तक असर होता है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों के द्वारा जो घोषणा पत्र तैयार किया जा रहा है, वह राज्य की आम जनता के भावनाओं के अनुरूप होंगे, उनकी जरूरतों के अनुसार होंगे, उनकी समस्याओं का निराकरण करने वाले होंगे तभी यह अधिक असर कारक साबित हो सकेगा। पिछले वर्षों में घोषणा पत्र में कर्ज माफी और फ्री में कई सारी चीजों को बांटने के वादों ने मतदाताओं को काफी प्रभावित किया है।इस परंपरा की शुरुआत से कई नए दृश्य देखने को मिल रहे हैं। ऐसा भी देखने को मिल सकता है कि कोई एक राजनीतिक पार्टी कुछ "माफी" और "फ्री" में बांटने का वादा करें तो दूसरी राजनीतिक पार्टी उससे और अधिक "माफी" और "फ्री" में बांटने का वादा करने पर उतारू दिखती नजर आ जाए। फिलहाल ऐसा करने में कोई प्रतिबंध तो नजर नहीं आ रहा है ना ही निर्वाचन आयोग की तरफ से कोई स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं तो छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसी भयावह परंपरा की शुरुआत होती दिख सकती है। आम मतदाता, अब प्रत्येक चुनाव में इस पर काफी बारीकी से नजर  रखते नजर आने लगे हैं कि वह चुनाव उनके लिए क्या सौगात लेकर आने वाला है। मतदाताओं को मालूम है कि  सरकार बन जाने के बाद सत्ता में बैठे लोगों के पास उनकी कोई सुनवाई नहीं होने वाली तो वे जो भी चाहिए, मतदान के पहले ही अपने लिए हासिल कर सकते हैं।इस मामले में बुजुर्ग युवा महिलाएं सभी वर्ग के लोग एकमत होते दिखने लगे हैं।

एक तरफ तो मतदाताओं को राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र का बेसब्री के साथ इंतजार करते देखा जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ ऐसे मतदाताओं की संख्या भी काफी अधिक है जो घोषणा पत्र में माफी और फ्री में बांटने के वादे का विरोध करते दिखते हैं। ऐसे मतदाताओं का सवाल है कि राजनीतिक पार्टियों को आखिर क्या-क्या चीज फ्री में बाढ़ देने का अधिकार मिल गया है और कहीं यह देश हित मे काफी नुकसान लायक तो साबित नहीं होने वाला है और इसके आगे चलकर खतरनाक परिणाम तो देखने को नहीं मिलेंगे। देश में ढेर सारे लोग अब यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि राजनीतिक दलों की नीतियों के चलते ही देश में कई समस्याएं उभरी है और बढ़ी हैं। इसमें सबसे मुख्य समस्या के रूप में घुसपैठ की समस्या को गिनाया जाता है। घुसपैठ के चलते देश की जनसंख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। जनसंख्या बढ़ने से जो समस्याएं किसी राष्ट्र को भुगतनी पड़ती है, उन समस्याओं से अभी भारत देश को जूझना पड़ रहा है। बाहरी जनसंख्या में वृद्धि के चलते देश के युवाओं के सामने रोजगार के अवसरों में भी कमी की समस्या भी पैदा हो गई। सब कुछ फ्री में बांट देने की राजनीतिक दलों की नीति पर लगाम लगाना आज जरूरी महसूस होने लगा है। फ्री में बांटने की योजना बनाने से देश और राज्यों को किस तरह से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है ? उनकी अर्थव्यवस्था आगे चलकर किस तरह से छिन्न भिन्न हो जाने वाली है इसे भी समझने की जरूरत है।


 
     00 Political Reporter.