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'आचार संहिता' लगी नहीं है, लेकिन शासकीय कार्यालयों में पसरने लगा है,'सन्नाटा' '

  छत्तीसगढ़। असल बात न्यूज़।।       00  सप्ताह की डायरी     अक्टूबर महीने का पहला सप्ताह, शायद,बहुत जल्द बीत गया लग रहा है। लोगों में आचार स...

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 छत्तीसगढ़।

असल बात न्यूज़।।  

   00  सप्ताह की डायरी   


अक्टूबर महीने का पहला सप्ताह, शायद,बहुत जल्द बीत गया लग रहा है। लोगों में आचार संहिता को लेकर एक उत्साह है,उत्सुकता है,मन में एक धुकधुकी है और एक उन्माद भी व्याप्त दिख रहा है कि यह वह घड़ी आने वाली है कि आचार संहिता लगने के साथ चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और अपनी सरकार चुनने का फिर से समय आ गया है। लोगों को आचार संहिता लगने से,पता नहीं क्या मिलने वाला है ?लेकिन लग रहा है कि आम लोगों को 'आचार संहिता' का बहुत बेसब्री के साथ इंतजार हैं। पूरा वातावरण  Pre Code of conduct की चपेट मे है।आप कहीं की भी बात कर लें, घर हो, कार्यालय हो या फिर, कोई सार्वजनिक स्थल या चाय- पान ठेला हो, एक दूसरे से कोई थोड़ा फुर्सत से मिलता है तो, सबसे पहले यही पूछता नजर आ जाता है कि आचार संहिता 'कब' लगने वाली है। और देखिए, तब मजा और बढ़ जाता है जब कोई थोड़ा सा 'जानकार' टाइप मिल जाए तो पूछने वाला यह सवाल ऐसे पूछता है कि मानो,वह, उससे पूरा सही -सही जवाब उगलवा ही लेगा, भले ही उसे इसके बारे में कोई अधिक जानकारी ना हो। सबसे बड़ी बात है कि आचार संहिता कब से लगेगी पर,इसमें एक बात और है कि दूसरे के जवाब से कोई संतुष्ट होता नहीं दिखता। लेकिन पुरानी तिथियां के साथ, पूर्व में कब चुनाव हुए थे, कब सरकार बनी थी ? के आंकड़ों के तथ्यों के साथ आचार संहिता कब से लगने वाली है,पर एक- दूसरे को कई तर्क देने के सिलसिले मैं कहीं कोई कमी नजर नहीं आती है।इसके बारे में बताने वाले भी पूरी रुचि लेकर विस्तार से बताते हैं और सुध- सुधकर आंकड़ों के साथ पूरी जानकारी देने में कोई कसर नहीं छोड़ते दिखते। गरमा-गरम बहस के बीच एक दो चाय पी लेने के बाद संभावनाओ के करीब पहुंचकर ही ऐसी बातें खत्म होती है। अभी पूरा कामकाज, ऐसा लग रहा है कि एक तरह से आचार संहिता के आसपास ही सिमट कर रह गया है। इस सप्ताह की शुरुआत से ही शासकीय कार्यालयों में तो ऐसे माहौल के चलते सन्नाटा सा पसरा दिखाई देने लगा है।सरकारों को चुनाव के तुरंत पहले अपना काम निपटाने की कितनी फिक्र रहती है,यह तो सबको मालूम है। अभी पिछले कई महीनों से यहां भी नई नई योजनाओं को युद्ध स्तर पर शुरू किया जा रहा है और तेजी से पूरा करने की कोशिश की गई है।वैसे शायद, लोगों को भी अभी इसकी चिंता नहीं रह गई है कि शासकीय कार्यालयों में उनका काम हो रहा है कि नहीं,बस चारों तरफ सिर्फ आचार संहिता लगने और चुनाव के बारे में ही बात हो रही है। 

सरकार अपना पूरा कामकाज तेजी से निपटाने में लगी हुई है और शायद उसके अपने सारे कामकाज को निपटाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। राष्ट्रीय पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं के बड़े दौरों को आम लोग रोज देख रहे हैं। लोग,विकास कार्यों के भारी लोकार्पण और भूमि पूजन कार्यक्रमों को भी देख रहे हैं। गांव- गांव के कोने-कोने तक महंगी महंगी गाड़ियां पहुंच रही है। लोगों को समझ में आ रहा है कि अब चुनाव सिर पर आ गया है तो सब उनके पास पहुंच रहे हैं और सभाए हो रही है भाषण दिए जा रहे हैं और मतदाताओं को रिझाने की कोशिश हो रही है। लोगों को इसमें कुछ नया भी नहीं लगता, सबको मालूम है कि वर्षों- वर्षों से ऐसा ही हो रहा है। बीच में वन नेशन, वन इलेक्शन का मुद्दा देश भर में सुर्खियों में आया था तो लोगों को लग रहा था कि चुनाव अभी कुछ टल सकता है। लेकिन अब इसकी सारी संभावना खत्म हो गई है, तो लोगों को सिर्फ चुनाव का इंतजार है। ऐसे में महंगी महंगी गाड़ियों से दूर-दूर तक पहुंच रहे नेताओं से लोग उबने भी लगे हैं। 

चुनावी चर्चाएं अब ऊफान पर है। सबसे पहले तो इसी बात को लेकर चर्चा चल रही है कि आचार संहिता कब से लगने वाली है ?और इसके बाद फिर टिकट के दावेदारों पर चर्चा चल रही है। चाहे मंत्रालय हो या फिर संचालनालय, चाहे कलेक्ट्रेट हो या नगरीय निकाय के कार्यालय हो अथवा पंचायत के सब जगह ऐसा ही नजारा नजर आ रहा है। चुनाव सिर पर है तो उसके साथ दीवाली भी सिर पर है। इस सप्ताह के शुरुआत के साथ प्रमुख मार्गों पर यातायात वालों की भारी भीड़ भी दिख रही है। एक एक दस्ता के साथ पांच छै सिपाही। राजधानी रायपुर में तो 100-सौ मीटर की दूरी पर ऐसी टीम ड्यूटी करते नजर आती है। ढेर सारे लोगों को लग रहा होगा कि चुनाव के पहले पुलिस काफी मुस्तैद हो गई है। दिवाली के समय ऐसी चेकिंग के बारे में जो जानते हैं वह दूसरी तरह की बातें भी करते दिखते हैं। आमापारा में एक चेकिंग टीम के तैनात रहने के बाद तात्या पारा में भी ऐसी टीम को देखकर लोगों को कुछ अखरता भी है। कहा जाता है कि पिछली सरकार को यातायात विभाग के लोगों की गतिविधियों से भी काफी नुकसान पड़ा था।

आम जनता भी समझदार है। सबको मालूम है कि आचार संहिता लग गई तो कोई काम नहीं होने वाला। जो काम होने वाला भी रहता है शासकीय कार्यालय में उसके बारे में यही कहकर टाल दिया जाता है कि चुनाव के बाद ही यह काम हो सकेगा। जो जानकार लोग हैं वे सब आचार संहिता के लागू होने के काफी पहले से ही शासकीय कार्यालयों में काम लेकर जाना बंद कर देते हैं। यह सब इस बार भी हो रहा है।  तब शासकीय कार्यालयों में भीड़ पहुंचनी करीब -करीब बंद हो गई है। वैसे,इस समय लोगों का शासकीय कार्यालयों में कोई बड़ा काम अटक नहीं रहा है। कहीं-कहीं संक्रामक बीमारियां फैली हुई है जिससे लोगों को परेशानी हो रही है। लेकिन लोगों को भी समझ में आ गया है कि सरकारी तंत्र के भरोसे रहने के बजाय इसका हल भी उन्हें खुद ही निकालना है। 

चुनाव से लोगों को इसलिए भी खुशी हो रही है कि राजनीतिक दल अब उनके चरणों में आ रहे हैं। आम लोगों की पूछ परख बढ़ रही है। हो सकता है कि राजनीति के खजाने से कुछ मिले भी। इसकी उम्मीद भी की जा रही है। और सबसे बड़ी नजर उस ओर भी लगी हुई है कि राजनीतिक पार्टियां, अपने घोषणा पत्र में आम लोगों के लिए कुछ नया और बड़ी चीज लेकर आ सकती हैं। राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में क्या- क्या होने चाहिए ?इसपर भी बाकायदा सलाह देने का सिलसिला चल रहा है। सच कहा जाए तो दिन बीतने के साथ राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की ही नहीं आम लोगों की भी आचार संहिता को लेकर धुकधुकी बढ़ती जा रही है। सात अक्टूबर के साथ तो लगने लगा है कि आज शाम को ही कहीं, चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा हो जाए, लेकिन आज का भी दिन बीत गया है। और अगला दिन 8 अक्टूबर आएगा, तब भी आचार संहिता लगने के सवाल को लेकर धुकधुकी बनी रहेगी। लोगों की आम दिनचर्या तो सामान्य चल रही है लेकिन उसके बीच आचार संहिता, चुनाव और चुनाव के परिणाम बहस बाजी का बड़ा मुद्दा बन गए हैं।राज्य निर्वाचन आयोग ने विधासभा इलेक्शन के लिए अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन कर दिया है।यही मतदाता इस चुनाव में मतदान कर सकेंगे।लोगों को मालूम है कि मतदाता सूची प्रकाशन के बाद आचार संहिता कभी भी लागू की जा सकती है।