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छत्तीसगढ़ में विदेशी मेहमानों का आगमन हुआ शुरू, 4 महीने 2 हजार प्रजाति के पक्षियों का रहेगा डेरा

  सर्दी का मौसम आते ही छत्तीसगढ़ में विदेशी मेहमानों का आगमन शुरू हो गया है. हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर आए ये विदेशी मेहमान पर्यटकों को ख...

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 सर्दी का मौसम आते ही छत्तीसगढ़ में विदेशी मेहमानों का आगमन शुरू हो गया है. हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर आए ये विदेशी मेहमान पर्यटकों को खूब आकर्षित कर रहे हैं. बेमेतरा के गिधवा-परसदा पक्षी विहार का नजारा तो देखते ही बनता है. दरअसल, सर्दियों का सीजन आते ही यहां साइबेरियन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है. ये पक्षी मार्च महीने के अंत तक यहां डेरा डाले रहते हैं. इस दौरान बड़ी तादाद में पर्यटक भी आते हैं. ऐसे में यहां का नजारा अत्‍यंत ही मनमोहक हो जाता है. पूरे छत्तीसगढ़ में प्रवासी पक्षियों की करीब 450 प्रजातियां देखने को मिली हैं. इनके साथ ही स्थानीय परिंदे भी यहां प्रवास करते हैं. जो संख्या करीब 2000 से ज्यादा हो जाती है.बेमेतरा के सुप्रसिद्ध गिधवा-परसदा में विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला 30 सालों से जारी है. हजारों मील की दूरी तय कर यूरोप और अफ्रीका महाद्वीप से पक्षी आते हैं. यहां देशी एवं विदेशी 150 प्रजाति के पक्षियों का प्रवास होता है. सामान्य रूप से अक्टूबर से फरवरी तक उनका जलाशय के पास निवास रहता है. बतख प्रजाति के ज्यादातर प्रवासी पक्षी करीब 17 हजार किलोमीटर का लंबा सफर तय कर साइबेरिया से आते हैं. साइबेरिया में ज्यादा ठंड पड़ती है, इसलिए वे सर्दियों को टाइओवर करने के लिए छत्तीसगढ़ आते हैं. हमारे यहां उनके अनुकूलन के अनुरूप धूप रहती है, जो उनके अंडे से बच्चे निकलने एवं विकसित होने तक के लिए काफी मददगार साबित होती है. सामान्यतः रूस, साइबेरिया व ठंड प्रदेशों में यूरेशियन ठंड के दिनों में छत्तीसगढ़ में दिखाई देते है. वन व जल स्रोतों को आशियाना बनाकर प्रजनन करते हैं. विदेशी पक्षियों का डेरा डोंगरगढ़ अंचल में भी दिखाता हैं. कोरबा जोन में 16 प्रकार के माइग्रेटेड पक्षियों के प्रवास रहा है. दुर्ग जिले में तालपुरी जंगल करीब 300 एकड़ में फैला हुआ है. इस जंगल में कई तालाबों का भी निर्माण किया गया है इस जंगल में कई विदेशी पक्षी अक्टूबर नवंबर और दिसंबर के महीने में आते हैं. दुर्ग जिले के पाटन ब्लाक के बेलौदी, सांतरा व अचानकपुर क्षेत्र में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का आगमन हुआ है. दुनिया के सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले राजहंसों का झुंड, जिसे बार हैडेड गूस भी कहा जाता है हिमालय को पार कर बस्तर पहुंचा है.