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अव्यस्क बालिका पर जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने,लैंगिक हमला कारित करने वाले अभियुक्त को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा और ₹5000 का अर्थदंड

  दुर्ग. असल बात न्यूज़.    यहाँ अव्यस्क अभियोकत्री के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित कर ब्लातसंग एवं प्रवेश लैंगिक हमला कारित करने तथा घटना...

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 दुर्ग.

असल बात न्यूज़.  

 यहाँ अव्यस्क अभियोकत्री के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित कर ब्लातसंग एवं प्रवेश लैंगिक हमला कारित करने तथा घटना के बारे में किसी को भी बताने पर जान से करने की धमकी देने वाले अभियुक्त को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है. अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एफटीसी विशेष न्यायालय पोक्सो एक्ट श्रीमती संगीता तिवारी के न्यायालय ने यह सजा सुनाई है.प्रकरण में आरोपी, f i r दर्ज होने के बाद से न्यायिक हिरासत में है. न्यायालय ने अभियोक्तरी के पुनर्वास के लिए आहत प्रतिकर योजना से विधि के अनूरुप राशि दिलाने का भी आदेश दिया है.

 उक्त घटना 6 अक्टूबर 2022 के आसपास तथा सुपेला थाना क्षेत्र के अंतर्गत की है. अभियोजन के अनुसार मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि आरोपी घटना दिनांक को पीड़ित अव्यस्क बालिका को एक सूने मकान में हाथ पकड़ कर ले जाकर कृकृत्य किया. जिसे कुछ लोगों के द्वारा देखा भी गया और उसकी जानकारी पीड़ित के परिजनों को दी गई. प्रकरण में पीड़िता के द्वारा सुपेला थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई.

 न्यायालय के समक्ष विचारण के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता के द्वारा घटना की रिपोर्ट, घटना दिनांक को नहीं कराए जाने बल्कि दूसरे दिन अभियुक्त को सुनियोजित तरीके से झूठा फंसाए जाने के उद्देश्य से दर्ज कराए जाने तथा घटना के संबंध में अभियोकत्री एवं उसके परिजनों के अभिसाक्षय में विसंगतियां होने जिससे उनके साक्षय की विश्वसनियता संदिग्ध हो जाती है का तर्क किया गया. बचाव पक्ष की ओर से  यह भी तर्क किया गया कि अभियोकत्री के अभिसाक्ष्य से दर्शित होता है कि उसने घटना के समय कोई विरोध नहीं किया तथा घटना के बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जिससे उसका एक सहमत पक्षकार होना  दर्शित  होता है. संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को दोषमुक्त किया जाना चाहिए.

 विशेष लोक अभियोजक संतोष कसार ने तर्क किया कि प्रकरण में एकमात्र अभियोकत्री का साक्ष्य दोष सिद्धि हेतु पर्याप्त है. ऐसे अपराध में किसी स्वतंत्र साक्षी की अपेक्षा नहीं की जा सकती.

 न्यायालय के समक्ष प्रकरण में एक महत्वपूर्ण साक्षी पक्षद्रोही हो गया जिस पर उसका कूट परीक्षण कराया गया. उक्त साक्षी ने परस्पर विरोधाभासी कथन किया, किंतु साक्षी ने यह स्वीकार किया कि अभियुक्त रिश्ते में उसका भाई है. न्यायालय ने माना कि इसी कारण से उसके द्वारा तथ्यों को छिपाया जाना प्रकट होता है. इस साक्षी के विभिन्न कथन को न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के तहत एक ही संव्यहार का भाग होने से साक्ष्य में सुसंगत होकर ग्राहय और अभियोक्तरी के द्वारा कथित, घटना की पुष्टि करने वाला माना. एक अन्य साक्षी ने भी अभियोजन का समर्थन नहीं किया.

 न्यायालय ने माना कि घटना की रिपोर्ट, घटना के तत्काल पश्चात दर्ज नहीं कराई गई, लेकिन प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में विलंब होने मात्र से ही,अभियोजन के संपूर्ण कथानक की सत्यता खंडित नहीं हो जाती है.

 न्यायालय ने बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 42 में दिए गए अनुकाल्पिक दंड के प्रावधान को दृष्टिगत रखते हुए अभियुक्त को विशेष विधि के तहत दंडित किया जाना उचित माना और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा (4)(2) के तहत 20 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा और ₹5000 के अर्थदंड की सजा सुनाई है. न्यायालय ने अभियोकत्री के पुनर्वास के लिए आहत प्रतिकर योजना से विधि अनुरूप राशि दिलाने का भी आदेश किया है.