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छत्तीसगढ़ में तुलनात्मक धर्म दर्शन, संस्कृति, संस्कृत की शिक्षा के लिए बनेगा संस्कृत विश्वविद्यालय, शासकीय दूधाधारी स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय रायपुर को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने का अशासकीय संकल्प कतिपय संशोधन के साथ सर्वसम्मति से पारित

छत्तीसगढ़ में तुलनात्मक धर्म दर्शन, संस्कृति, संस्कृत की शिक्षा के लिए बनेगा संस्कृत विश्वविद्यालय,  शासकीय दूधाधारी स्नातकोत्तर संस्कृत महा...

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छत्तीसगढ़ में तुलनात्मक धर्म दर्शन, संस्कृति, संस्कृत की शिक्षा के लिए बनेगा संस्कृत विश्वविद्यालय,  शासकीय दूधाधारी स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय रायपुर को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने का अशासकीय संकल्प कतिपय संशोधन के साथ सर्वसम्मति  से पारित  

 रायपुर.

 असल बात न्यूज़.   

 शासकीय उड़दाधारी श्री राजेश्वरी महंत वैष्णो दास स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय रायपुर को विश्वविद्यालय में अपग्रेड करने का अशासकीय संकल्प कतिपय संशोधन के साथ पारित हो गया है. विपक्ष के भी सदस्यों ने इस अशासकीय संकल्प पर सहमति दी और यह अशासकीय संकल्प सर्वसम्मति से पारित हो गया. वरिष्ठ सदस्य अजय चंद्राकर ने सदन में इस अशासकीय संकल्प को लाया. चर्चा के दौरान विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस पर व्यवस्था दी कि  उच्च शिक्षा अनुदान आयोग और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार किसी एक विषय पर कोई विश्वविद्यालय नहीं खोला जा सकता इसलिए इसमें संस्कृत के साथ अन्य विषयों को जोड़कर प्रस्ताव करने पर यह विश्वविद्यालय खोलने को स्वीकृति जा सकेगी .

 विधानसभा में शुक्रवार के दिन दोपहर के बाद ढाई घंटे का समय अशासकीय कार्यों के लिए सुरक्षित किया गया है. इस परंपरा के अनुसार सदन में दूसरे कार्य को रोककर अशासकीय संकल्प पर चर्चा कराई गई. सदन में इस समय आसंदी पर स्पीकर डॉ रमन सिंह उपस्थित थे .

 वरिष्ठ सदस्य अजय चंद्राकर में सदन में इस अशासकीय  संकल्प को प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब प्रदेश में 5 साल पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी तब भी यहां की संस्कृति और संस्कृत को मजबूत बनाने के लिए काम शुरू हुआ था. संस्कृत विश्वविद्यालय का 50 वर्ष  मनाने के लिए प्रयास शुरू किए गए थे. उस समय,तब दूसरी चुनौतियां थी.अब देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद मजबूत हो रहा है. यह अपनी संस्कृति की ओर लौटने और उस पर गर्व करने  का दिन है. उन्होंने कहा कि संस्कृत विषय ही ऐसा है जिसका छत्तीसगढ़ में विश्वविद्यालय नहीं है.इस चर्चा के दौरान उन्होंने ऐसे कई उदाहरण दिए जिसमें दूसरे राज्यों और दूसरे देशों में धार्मिक शिक्षा,मंदिर प्रबंधन की शिक्षा के लिए काम शुरू किया गया है. उन्होंने कहा कि आज हमें अपने कर्मकांड के लिए अच्छे पंडित की कमी महसूस होती है. हमें इस विषय को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए. हमें हमारे जो प्राचीन महत्वपूर्ण ज्ञान मिलते हैं वह सब संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं. उन्होंने कहा कि भारत देश में संस्कृत भाषा प्रतिष्ठित हो रही है और उसमें छत्तीसगढ़ की भूमिका हो इसके लिए यहां विश्वविद्यालय बनना चाहिए. विश्वविद्यालय बनने के बाद संस्कृत के विद्यार्थियों को यहां रोजगार के अवसर भी सुलभ हो सकेंगे.

 इस अशासकीय  संकल्प पर बोलते हुए वरिष्ठ सदस्य धर्मजीत सिंह ने इस अशासकीय  संकल्प का स्वागत करते हुए कहा कि यह कहा जा सकता है कि हमारे देश में बोली जाने वाली सभी भाषाओं की जननी वास्तव में संस्कृत ही है. हमारे देश में गांव-गांव में भागवत कथा होती है. उसे प्रवचनकर्ता  अलग-अलग भाषा में प्रस्तुत करते हैं लेकिन उसके मूल में संस्कृत है.पहले संस्कृत के ज्ञाताओं का देश में बहुत मान होता था. जो काशी से पढ़ कर आता था उस विद्वान की पूजा की जाती थी. अमेरिका जैसे देश में भी जो संस्कृत के विद्वान है उनसे पूजा करने के लिए उनका अपॉइंटमेंट लिया जाता है. छत्तीसगढ़ में संस्कृत भाषा की यूनिवर्सिटी बनने से इसका प्रचार प्रसार होगा,फैलाव होगा. छत्तीसगढ़ से  संस्कृत के विद्वान निकलेंगे और पूरी दुनिया में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करेंगे.उन्होंने कहा कि हमारे देश में चलने वाले मदरसा में भी धर्म ग्रंथ की शिक्षा दी जाती है.संस्कृत विश्वविद्यालय में भी धर्म ग्रंथो की शिक्षा देने का प्रस्ताव किया गया है.

 चर्चा में विपक्ष के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया. नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत ने इस पर अपनी सहमति देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने के लिए उनकी भी सहमति है. उन्होंने छत्तीसगढ़ में रायगढ़ में चल रहे  गाहिरा गुरु संस्कृत महाविद्यालय के समस्याओ की ओर भी सदन का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में सिर्फ रायपुर में ही संस्कृत महाविद्यालय नहीं है. रायगढ़ जिले में भी है जहां आदिवासी बच्चे भी संस्कृत की पढ़ाई करते हैं. उन्होंने बताया कि इस महाविद्यालय में कई सारी समस्याएं हैं जिन्हें दूर करने के लिए भी सरकार को कदम उठाना चाहिए.

 वहीं सदस्य श्रीमती संगीता सिन्हा ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य में संस्कृत की संस्कृति है. यहां रामायण की, महाभारत की, वेद की संस्कृति है. उन्होंने कहा कि पहले छत्तीसगढ़ में हमारे बच्चों को कक्षा आठवीं से 12वीं तक संस्कृत की पढ़ाई की जाती थी उसे बंद कर दी गई. इसे भी शुरू किया जाना चाहिए. सदस्य सुशांत शुक्ला ने कहा कि संस्कृत पूर्णतः वैज्ञानिक भाषा है. सदस्य अनुज शर्मा ने कहा कि दूधाधारी महाराज तब सिर्फ दूध का सेवन करते थे इसलिए इस महाविद्यालय का नाम उनके नाम के अनुसार दूधाधारी रखा गया.

 विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में सदस्य अजय चंद्राकर को यह अशासकीय संकल्प लाने के लिए बधाई देते हुए कहा कि संस्कृत वेद की भाषा है.पुरातन भाषा है.रामायण, गीता की भाषा है. शास्त्रों के श्लोक की भाषा है. हर जगह चाहे तेलुगू हो तमिलनाडु हो संस्कृत के श्लोक का संस्कृत में ही पाठ जाता है. संस्कृत के श्लोक बहुत कर्णप्रिय होते हैं. दूधाधारी श्री राजे श्री महंत ऐसा प्रतिष्ठान है जिसने छत्तीसगढ़ में शिक्षा के विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जगह-जगह जमीन दान किया है. उन्होंने देश में उच्च शिक्षा अनुदान आयोग और नई शिक्षा नीति के  नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में सिर्फ बहुभाषी विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं.

 इस पर सदस्य अजय चंद्राकर ने आगे   कहा कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. विपक्ष में भी इस पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी है. सरकार के भी ऊपर भी इस विश्वविद्यालय को खोलने पर बहुत अधिक खर्च नहीं आने वाला है. अभी सिर्फ लेजिसलेशन करना है. विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि  संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने की बजाय इसे सनातन धर्म अध्यात्म ज्योतिष बहुविषय के आधार पर विश्वविद्यालय बनाएंगे.

 वरिष्ठ सदस्य धर्मजीत सिंह ने इस पर कहा कि सभी विषय को शामिल कीजिए लेकिन टाइटल वही संस्कृत रहना चाहिए. सदन में इस दौरान महर्षि योगी वल्लभाचार्य जी नागार्जुन की भगवान ओशो के नाम पर भी चर्चा हुई.