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भारत का 43वाँ विश्व धरोहर स्थल बना ‘चराईदेव मोईदाम’

      ऐतिहासिक टीला शवागार से लेकर वैश्विक मान्यता तक   नई दिल्ली. असल बात न्यूज़ .      चराईदेव मोईदाम ,  असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश...

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ऐतिहासिक टीला शवागार से लेकर वैश्विक मान्यता तक

 नई दिल्ली.
असल बात न्यूज़.     
चराईदेव मोईदाम, असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया चराईदेव मोईदाम को भारत की सांस्कृतिक विरासत श्रेणी से सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है.चराईदेव मोईदाम, असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी। यह यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध भारत का 43वाँ विश्व धरोहर स्थल है।नई दिल्ली में 21 से 31 जुलाई2024 तक आयोजित हो रही 46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया। 

विश्व धरोहर समितिजो प्रतिवर्ष बैठक करती हैविश्व धरोहर से संबंधित सभी मामलों के प्रबंधन और विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने वाले स्थलों के संबंध में निर्णय लेती है।  इस बैठक में सूची में शामिल किये जाने हेतु 27 नामांकनों पर विचार किया जा रहा हैजिसमें 19 सांस्कृतिक4 प्राकृतिक2 मिश्रित स्थल और 2 सीमाओं में महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं।


चराईदेव मोईदाम - अहोम राजवंश के सदस्यों को टीलों जैसे दिखने वाले स्थल में दफनाने की प्रक्रिया

  

चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ई. तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की। उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव थाजहाँ ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी। यह पवित्र स्थलजिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता हैऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किये गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे। सदियों सेचराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा हैजहाँ ताई-अहोम राजघरानों की दिवंगत आत्माएँ परलोक में चली जाती थीं।