असल बात न्यूज नए कानून के अनुसार अब गंभीर अपराध में कोर्ट के बाहर समझौता करना नहीं होगा आसान दंड से न्याय की ओरः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)...
असल बात न्यूज
नए कानून के अनुसार अब गंभीर अपराध में कोर्ट के बाहर समझौता करना नहीं होगा आसान
दंड से न्याय की ओरः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) होगी
दुर्ग, पुलिस नियंत्रण कक्ष सेक्टर-6 में नवीन आपराधिक कानूनों को आज से लागू किए जाने के उपलक्ष्य में पुलिस विभाग के द्वारा कार्यशाला का आयोजित किया गया था। नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) आज से प्रभावी हो रहे हैं। ये कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को निरस्त और प्रतिस्थापित करेंगे। आईपीसी में 511 धाराएं थी लेकिन भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं होंगी। धाराओं का क्रम बदला गया है। रात बारह बजे के बाद जो भी आपराधिक घटनाएं हुई है, उनमें नए कानून के अनुसार प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। नए कानून में वैसे तो बहुत बदलाव हुए हैं, खास बात यह भी है कि संगीन अपराधों में सत्र परीक्षण के दौरान आरोपी डरा-धमकाकर व लालच आदि के दम पर समझौते कर लेते हैं और फिर पीड़ित व गवाह मुकर जाते हैं, अब यह आसान नहीं होगा। अब पुलिस के लिए विवेचना में घटनास्थल पर पहुंचने से लेकर हर कदम पर वीडियो रिकार्डिंग व वैज्ञानिक साक्ष्य संकलित करने की बाध्यता है और अदालत में ट्रायल के दौरान मजबूत साक्ष्य होंगे। कार्यशाला में विधायक श्री गजेन्द्र यादव और श्री रिकेश सेन, संभागायुक्त श्री एस.एन. राठौर, आईजी श्री रामगोपाल गर्ग, कलेक्टर सुश्री ऋचा प्रकाश चौधरी एवं एसपी श्री जितेन्द्र शुक्ला सम्मिलित हुए।
विधायक श्री गजेन्द्र यादव ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नए कानून के लागू होने पर उपस्थित नागरिकों को बधाई दी। उन्होंने दण्ड से न्याय की ओर वाक्यांश की सराहना करते हुए इसके प्रति नागरिकों की जागरूकता सुनिश्चित करने की बात कही। उन्होंने कहा कि नए कानून से नागरिकों को समय पर न्याय मिल पाएगा यह सबसे अधिक लाभकारी तथ्य है।
विधायक श्री रिकेश सेन ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है एवं इसके हर नागरिक को कानून की इतनी समझ होना अति आवश्यक है कि वह अपने साथ या अपने आस-पास हो रहे अपराधिक प्रकरणों को समझ सके और कानूनी मदद ले सके। उन्होंने सभी नागरिकों से नए कानूनों के विषय में पढ़ने और समझने की अपील की।
कमिश्नर श्री सत्यनारायण राठौर ने उपस्थित नागरिकों को संबोधित करते हुए नए कानून के तहत लाए गए प्रावधानों की सराहना की। उन्होंने कहा इन कानूनों के बनने का लाभ लेने के लिए यह आवश्यक कि नागरिकों को इनका ज्ञान होगा। उन्होंने सभी नागरिकों को कानून के प्रति स्वयं सजग रहने एवं आस-पास के लागों को भी जागरूक करने की बात कही।
आई जी श्री रामगोपाल गर्ग ने नए कानून के तहत लागू हुए ई-एफआईआर प्रावधान, इसके महत्व और लाभ के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। पुलिस प्रशासन एवं न्यायालय के उत्तरदायित्व को भी बताया और नागरिकों को आश्वासित किया कि नए कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु पुलिस प्रशासन पूरा प्रयास करेगी।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कलेक्टर सुश्री ऋचा प्रकाश चौधरी ने भारतीय न्याय संहिता के तहत महिला एवं बाल अपराध से संबंधित परिवर्तित धाराओं के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने उपस्थित अधिकारी-कर्मचारी एवं नागरिकों को आश्वासन देते हुये कहा कि जिला प्रशासन परिवर्तित किए गए प्रावधानों के अनुरूप कार्यवाही करना सुनिश्चित करेगा ताकि जिस उद्देश्य से प्रावधानों में परिवर्तन किया गया है उसकी पूर्ति हो सके।
कार्यशाला में एडीएम श्री अरविंद एक्का, डीएफओ श्री चंद्रशेखर परदेशी, भिलाई नगर निगम आयुक्त श्री देवेश ध्रुव, संबंधित विभागों के प्रमुख अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) होगी। आईपीसी में 511 धाराएं थी लेकिन भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं होंगी। धाराओं का क्रम बदला गया है। सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता कहलाएगी। सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं। नए कानून में अब 531 धाराएं होंगी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के नाम से जाना जाएगा। पुराने अधिनियम में 167 प्रावधान थे। नए में 170 प्रावधान हो गए हैं। इनमें डिजिटल साक्ष्यों का महत्व बढ़ाया गया है।
विवेचना में वीडियो साक्ष्य बेहद जरूरी पुलिस अब तक घटनास्थल पर पहुंचकर साक्ष्य संकलन व पब्लिक के किसी भी गवाह के बयान अपने अनुसार लिख लेती थी। मगर अब सब कुछ वीडियो कैमरे की निगरानी में होगा। इससे अदालत में इन साक्ष्यों को झुठलाया नहीं जा सकेगा और न ही उनमें किसी तरह का हेरफेर किया जा सकेगा।
एक जुलाई से दर्ज मुकदमों का ट्रायल नए कानून से नए कानून के अनुसार जो मुकदमे दर्ज होंगे, उनका ट्रायल भी नए कानून से होगा। जो मुकदमे 30 जून की रात 12 बजे के पहले पुराने कानून से दर्ज हुए है। उनका ट्रायल पुराने कानून से ही होगा। अलीगढ़ दीवानी न्यायालय के 40 हजार मुकदमे पुराने कानून से चलाए जाएंगे।
अब गवाह को ऑनलाइन समन-गवाही की सहूलियत। नए कानून में सबसे अधिक सुविधा गवाह व वादी को दी गई है। अगर गवाह को सूचना नहीं मिल पा रही है तो वह व्हाट्सएप पर मिलने वाले समन व वारंट को भी प्राप्त होना माना जाएगा। अगर वह नहीं आ पा रहा है तो जिस जिले में मौजूद है, वहां के न्यायालय के वीडियो कान्फ्रेसिंग सेंटर से ऑनलाइन गवाही दे सकता है। नए कानून में काफी कुछ बदलाव हुए हैं। इनमें सबसे खास बात यही है कि नए कानून के अनुसार नए मुकदमों का ट्रायल चलेगा, जबकि पुराने मुकदमों में पुराने कानून से ट्रायल चलेगा। नए कानून में बहुत से ऐसे बदलाव हुए हैं, जो संगीन मामलों में अपराधियों के लिए मुश्किल भरे हैं। जिनमें वीडियो व वैज्ञानिक साक्ष्यों के चलते अब अदालत के बाहर समझौता करना आसान नहीं होगा। पुलिस के विवेचकों को नए कानून को लेकर प्रशिक्षण दिया गया है। साथ में मुंशियानों में काम करने वाले स्टाफ को भी प्रशिक्षण दिया है। दुष्कर्म में पीड़ित की मृत्यु व अपंगता पर मृत्युदंड की सजा होगी। पहले से हत्या में सजायाफ्ता को दूसरी हत्या में उम्रकैद या मृत्युदंड, दुष्कर्म-छेड़खानी पीड़िता के बयान महिला मजिस्ट्रेट ही दर्ज करेंगी, महिला मजिस्ट्रेट न होने पर किसी महिला कर्मी की मौजूदगी जरूरी, अब किसी भी घटनास्थल का मुकदमा किसी भी थाने में दर्ज हो सकेगा, ऑनलाइन-व्हाट्सएप के जरिये भेजी तहरीर पर दर्ज करनी होगी रिपोर्ट, महिला और बाल अपराध में दो माह में करनी होगी विवेचना पूर्ण, जेल जाने के 40 दिन के अंदर पीसीआर लेने की सुविधा तय, गवाह या वादी को व्हाट्सएप पर ही समन-वारंट भेजा जाना मान्य, हर घटना की जांच में वीडियो फुटेज-वैज्ञानिक साक्ष्य पहले दिन से करने होंगे तैयार, केस डायरी में भी शामिल होंगे। इसके अलावा घटनास्थल, बरामदगी, पब्लिक की गवाही, वादी की गवाही, पीसीआर पर बरामदगी के वीडियो फुटेज बनाने होंगे।
धाराओं में भी कई बदलाव किए गए है। जिनमें महिला संबंधी अपराधों में आईपीसी 354 बीएनएस 74 में, आईपीसी 354ए बीएनएस 75 में, आईपीसी 354बी बीएनएस 76 में, आईपीसी 354सी बीएनएस 77 में, आईपीसी 354डी- बीएनएस 78 में, आईपीसी 509 बीएनएस 79 में बदल गए है। इसी प्रकार चोरी संबंधी अपराध आईपीसी 379 बीएनएस 303(2) में, आईपीसी 411 बीएनएस 317(2) में, आईपीसी 457 बीएनएस 331(4) में, आईपीसी 380 बीएनएस 305 में बदल गए है। लूट संबंधी अपराध आईपीसी 392 बीएनएस 309(4) में, आईपीसी 393 बीएनएस 309(5) में, आईपीसी 394 बीएनएस 309(6) में बदल गए है। हत्या-आत्महत्या संबंधी अपराध आईपीसी 302 बीएनएस 103(1) में, आईपीसी 304(बी) बीएनएस 80(2) में, आईपीसी 306 बीएनएस 108 में, आईपीसी 307 बीएनएस 109 में, आईपीसी 304 बीएनएस 105 में, आईपीसी 308 बीएनएस 110 में बदल गए है। धोखाधड़़ी संबंधी अपराध आईपीसी 419 बीएनएस 319(2) में, आईपीसी 420 बीएनएस 318(4) में, आईपीसी 466 बीएनएस 337 में, आईपीसी 467 बीएनएस 338 में, आईपीसी 468 बीएनएस 336(3) में, आईपीसी 471 बीएनएस 340(2) में बदल गए है। ठग 420 नहीं 316 कहलाएंगे, हत्यारों को 302 नहीं 101 में सजा मिलेगी। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में धाराएं 358 रह गई हैं। आपराधिक कानून में बदलाव के साथ ही इसमें शामिल धाराओं का क्रम भी बदल जाएगा।
तीनों नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे, जिसने क्रमशः भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान लिया है। कानूनों में प्रभावी होने के साथ ही इनमें शामिल धाराओं के क्रम भी बदल गए है। भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में धाराएं 358 रह गई हैं। संशोधन के जरिए इसमें 20 नए अपराध शामिल किए हैं, तो 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधों में जुर्माने की रकम भी बढ़ाई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को 12 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन संशोधित आपराधिक विधियकों को पेश किया था। इन विधेयकों को लोकसभा ने 20 दिसंबर, 2023 को और राज्यसभा ने 21 दिसंबर, 2023 को मंजूरी दी।
धारा 124 आईपीसी की धारा 124 राजद्रोह से जुड़े मामलों में सजा का प्रावधान रखती थी। नए कानूनों के तहत राजद्रोह को एक नया शब्द देशद्रोह मिला है यानी ब्रिटिश काल के शब्द को हटा दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 7 में राज्य के विरुद्ध अपराधों कि श्रेणी में देशद्रोह को रखा गया है।
धारा 144 आईपीसी की धारा 144 घातक हथियार से लैस होकर गैरकानूनी सभा में शामिल होना के बारे में थी। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय 11 में सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 गैरकानूनी सभा के बारे में है।
धारा 302 पहले किसी की हत्या करने वाला धारा 302 के तहत आरोपी बनाया जाता था। हालांकि, अब ऐसे अपराधियों को धारा 101 के तहत सजा मिलेगी। नए कानून के अनुसार, हत्या की धारा को अध्याय 6 में मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध कहा जाएगा।
धारा 307 नए कानून के अस्तित्व में आने से पहले हत्या करने के प्रयास में दोषी को आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा मिलती थी। अब ऐसे दोषियों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के तहत सजा सुनाई जाएगी। इस धारा को भी अध्याय 6 में रखा गया है।
धारा 376 दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को पहले आईपीसी की धारा 376 में परिभाषित किया गया था। भारतीय न्याय संहिता में इसे अध्याय 5 में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में जगह दी गई है। नए कानून में दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को धारा 63 में परिभाषित किया गया है। वहीं सामूहिक दुष्कर्म को आईपीसी की धारा 376 डी को नए कानून में धारा 70 में शामिल किया गया है।
धारा 399 पहले मानहानि के मामले में आईपीसी की धारा 399 इस्तेमाल की जाती थी। नए कानून में अध्याय 19 के तहत आपराधिक धमकी, अपमान, मानहानि, आदि में इसे जगह दी गई है। मानहानि को भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में रखा गया है।
धारा 420 भारतीय न्याय संहिता में धोखाधड़ी या ठगी का अपराध 420 में नहीं, अब धारा 316 के तहत आएगा। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है।
सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में महत्पूर्ण बदलाव किए गए है। जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने ले ली है। सीआरपीसी की 484 धाराओं के बदले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। नए कानून के तहत 177 प्रावधान बदले गए हैं जबकि नौ नई धाराएं और 39 उपधाराएं जोड़ी हैं। इसके अलावा 35 धाराओं में समय सीमा तय की गई है। वहीं, नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 प्रावधान हैं। इससे पहले वाले कानून में 167 प्रावधान थे। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं।