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अब मानव व जानवरों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारी एवियन इन्फ्लूएंजा के फैलने का खतरा के साथ

नई दिल्ली, छत्तीसगढ़  . असल बात न्यूज़. दुनिया में अब  मानव व जानवरों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारी एवियन इन्फ्लूएंजा  के फैलने की आशंका जता...

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नई दिल्ली, छत्तीसगढ़  .

असल बात न्यूज़.

दुनिया में अब मानव व जानवरों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारी एवियन इन्फ्लूएंजा  के फैलने की आशंका जताई जा रही है. संक्रामक बीमारी कोरोना ने पूरी दुनिया में कितना का कहर ढाया है उसके दर्द पीड़ा को लोग अभी भी नहीं भूल सके हैं. ऐसे में इस संक्रामक बीमारी के सिर उठा लेने से लोगों में फिर से दहशत कर सकती है. अभी अमेरिका में अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) एच5 के उप-प्रकार वायरस के जैविक रूप से बढ़ने की जानकारी सामने आ रही है. अमेरिका में डेयरी पशुओं में एचपीएआई के फ़ैलते फैलतें इसके अन्य स्तनधारियों को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर देने की खबर है.इस खतरे से निपटने  बेहतर समन्वय और व्यापक रणनीति के साथ मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एक साथ जोड़कर इससे निपटने की प्लानिंग बनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. भारत में प्रवासी पक्षियों के आने के साथ इस संक्रामक बीमारी के फैलने की आशंका है. विशेषज्ञों ने संक्रमित पक्षियों का बिना जांच के वध कर देने की भी की वकालत की है, क्योंकि कई सारे संक्रमित पक्षियों में उसके लक्षण प्रदर्शित नहीं होते और और वे दूसरी जगह पहुंचकर यह बीमारियां फैला सकते हैं.

जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार दुनिया में इन्फ्लूएंजा ए/एच5 वायरस पोल्ट्री और वन्य पक्षियों से  प्रवासी मार्ग के जरिये फैल रहा है। यह प्रवासी पक्षी जहां-जहां पहुंचते हैं वहां इस बीमारी के फैलने का खतरा है. भारत देश में भी बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं. और सर्दियों के समय में इन प्रवासी पक्षियों की संख्या है यहां काफी बढ़ जाती है. ताज खतरे को देखते हुए सर्दियों में यहाँ के जल निकायों में ऐसे प्रवासी पक्षियों की निगरानी के लिये एक प्रभावी रणनीति विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है ताकि अग्रिम चेतावनी दी जा सके और बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके। इसके साथ ही मांस, मछली, सब्जियों की बिक्री करने वाले खुले बाजारों, जल निकायों, बूचड़खानों और मुर्गी फार्मो में पर्यावरणीय निगरानी के लिये कम लागत वाले तौर तरीकों का उपयोग करते हुये एसओपी विकसित करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। कोविड और पोलियो वायरस के मामले में दूषितजल की जांच का अनुसरण करते हुये सीसीएमबी, आईसीएमआर और एनआईवी ने क्षेत्र में शोध की शुरूआत करने की आवश्यकता भी महसूस की गई है जिससे की उसके शीघ्र ही महत्वपूर्ण और आशाजनक परिणाम मिलने लगे।

 प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार के  पशुपालन और डेयरी विभाग ने एवियन इन्फ्लूएंजा पर एक उच्चस्तरीय बैठक कर गहन विचार विमर्श किया है. इसमें इस संक्रामक बीमारी के फायदाओं को रोकने  वन हेल्थ अप्रोच के तहत निगरानी और टीकाकरण पर जोर दिया गया है। सत्र की अध्यक्षता  पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव सुश्री अलका उपाध्याय ने की.

विचार विमर्श के दौरान विषय विशेषज्ञ ने इस संक्रामक बीमारी के फैलाव को रोकने  मानव, पशुओं और वन्यजीवों के बीच संपर्क वाले क्षेत्रों में निगरानी त्रत्र को मजबूत बनाने पर  जोर दिया. चर्चा के दौरान बताया गया कि अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) एच5 का उप-प्रकार वायरस जैविक रूप से बढ़ रहा है और पूरी तरह स्थापित अनुवांशिक वंशावली के उभरते जाने के साथ इसका भौगालिक क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है। अमेरिका में हाल में डेयरी पशुओं में एचपीएआई फैलना, जो कि अन्य स्तनधारियों में भी फैल गया।  सत्र के दौरान मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और वन्यजीव क्षेत्र को लेकर विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिये गये जिसमें एवियन इन्फ्लूएंजा फैलने पर वर्तमान में अपनाये जा रहे निगरानी प्रोटोकाल और प्रतिक्रिया तंत्र पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान पर्यावरण निगरानी बढ़ाने और मौजूदा नियम प्रक्रियाओं के अद्यतन पर जोर दिया गया।

उल्लेखनीय है कि  वैश्विक स्तर पर जो एचपीएआई टीके आमतौर पर उपलब्ध है वह न तो प्रजनन रोकने की क्षमता रखते हैं और न ही सभी तरह के स्ट्रेन के समक्ष शत प्रतिशत प्रभावी होते हैं। टीके से आंशिक प्रतिरक्षा मिलती है जो कि बीमारी की गंभीरता और वायरल शेडिंग को कम करता है लेकिन यह संक्रमण को पूरी तरह से नहीं रोक पाता है। जिन पक्षियों को टीका लगा है वह उनमें लक्षण दिखाये बिना वायरस अपने साथ ले जा सकते हैं और दूसरों में पहुंचा सकते हैं, यह स्थिति निगरानी और बीमारी का पता लगाने को जटिल बना देती है। इस प्रकार की आंशिक प्रतिरक्षा क्षमता से टीके-के प्रभाव को सहने जैसी क्षमता पैदा हो सकती है। इन परिस्थितियों में मजबूत जैवसुरक्षा और आवागमन प्रतिबंधों को सुनिश्चित करने में, विशेषतौर से बैकयार्ड पाल्ट्री सेक्टर, में आने वाले परेशानियों को देखते हुये विशेषज्ञों ने टीकाकरण के बिना ही निगरानी और पशु वध की मौजूदा रण्यानीति को जारी रखने की वकालत की है। हालांकि, आईसीएआर-एनआईएचएसएडी, भोपाल, जिसने कम रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा के लिये टीका प्रौद्योगिकी का व्यवसायीकरण कर दिया है, ने एचपीएआई की रोकथाम के लिये घरेलू टीका विकसित करने में उल्लेखनीय बढ़त हासिल की है। आईसीएमआर मानव उपयोग के लिये एवियन फ्लू की रोकथाम के सेल-कल्चर-आधारित टीका बनाने की भी योजना बना रही है।

भारत में पोल्ट्री क्षेत्र उच्च गुणवत्ता प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देता है और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका को समर्थन देता है। पिछले दशक में 7 से 10 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाला यह क्षेत्र व्यापार और निर्यात को भी बढ़ावा देता है और देश की आर्थिक वृद्धि में बेहतर योगदान करता है। हालांकि, बार बार होने वाले अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) के प्रकोप से इसकी क्षमता बाधित होती है और निर्यात प्रभावित होता है।


स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डा. राजीव बहल ने सत्र के दौरान वन हेल्थ मिशन के बारे में जानकारी दी। सत्र में भाग लेने वालों में आईसीएमआर मुख्यालय, आईसीएमआर-एनआईवी पुणे, सीएसआईआर- सेंटर फार सेल एण्ड मालेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र, आईसीएआर-एनआईएचएसएडी भोपाल, आईसीएआर-एनआईवीईडीआई बेंगलूरू के वरिष्ठ विशेषज्ञों और इनके साथ ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जैवप्रौद्योगिकी विभाग, डीएम सेल, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) विभाग के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।