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लाइम स्टोन खनन परियोजना को NOC नहीं देने और खनन की लीज निरस्त करने की मांग, प्रतिनिधिमंडल ने सीएम साय को सौंपा ज्ञापन

  रायपुर।  पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति ने विधायक अनुज शर्मा के साथ मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन में खरोरा ...

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 रायपुर। पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति ने विधायक अनुज शर्मा के साथ मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन में खरोरा तहसील के ग्राम बंगोली में स्थित पेंड्रावन जलाशय के केचमेंट में प्रस्तावित लाइम स्टोन खनन परियोजना को NOC नहीं देने एवं खनन की लीज निरस्त करने की मांग की गई है.



पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति ने धरसीवा विधायक अनुज शर्मा, पूर्व विधायक देवजी भाई पटेल के साथ विधानसभा परिसर में जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप को भी ज्ञापन सौंपा. प्रतिनिधिमंडल को मुख्यमंत्री ने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया है. वहीं जल संसाधन मंत्री ने कहा कि इस संबंध में विभागीय अधिकारियों के साथ शीघ्र बैठक की जाएगी.

प्रतिनिधिमंडल में समिति के अध्यक्ष अनिल नायक, सचिव घनश्याम वर्मा, एवं संरक्षक मंडल सदस्य ललित बघेल, उधोराम वर्मा एवं आलोक शुक्ला शामिल रहे l विधायक अनुज शर्मा ने मुख्यमंत्री से आग्रह करते हुए कहा कि खनन से जलाशय के केचमेंट लगभग ख़त्म हो जाएगा, जिससे जलाशय की जल भराव क्षमता मात्र 32 प्रतिशत ही बचेगी. व्यापक किसान हित में खनन परियोजना को NOC जारी नहीं की जानी चाहिए.

ज्ञापन देने के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए देवजी भाई पटेल ने कहा कि पेंड्रावन बहुदेशीय सिंचाई परियोजना है. इसकी केनाल संरचना का इस्तेमाल महानदी गंगरेल परियोजना की भाटापारा शाखा से सिंचाई की जल आपूर्ति के लिए भी होता है. इस जलाशय और उसके केचमेंट के नालों के डाईवर्सन से अन्य जलाशयों को भी भरा जाता है, जिससे इसकी कुल सिंचाई क्षमता लगभग 15 हजार एकड़ से अधिक हो जाती. यह जलाशय सम्पूर्ण पारिस्थिकी तंत्र और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है.


उन्होंने कहा कि पूर्व में भी वर्ष 2015 एवं 2017 में सदन में मेरे द्वारा किये गए विरोध एवं व्यापक किसान आन्दोलन के कारण दो बार इसकी NOC निरस्त हो चुकी है. शासन पुनः अनापत्ति जारी न करे. संरक्षक मंडल सदस्य ललित बघेल ने कहा कि स्वयं जल संसाधन विभाग के अनुसार जलाशय का वर्तमान जल ग्रहण क्षेत्र 25.47 वर्ग किलोमीटर है एवं टेंक प्रतिशत 85.27 l खनन शुरू होने के बाद जल ग्रहण क्षेत्र मात्र 8.4 वर्ग किलोमीटर ही बचेगा, जिससे जलाशय का अस्तित्व लगभग ख़त्म हो जायेगा.