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सुबह क़ी कविता,रह सकते हो युद्ध के बिना तो युद्ध क्यों जरूरी है ?

*सुबह क़ी कविता*   *रह सकते हो युद्ध के बिना तो युद्ध क्यों जरूरी है?*  काला,स्याह धुआं उठा रहा है  चौक चौराहों पर जलाई उन मोमबत्तियां से,प्र...

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*सुबह क़ी कविता* 


 *रह सकते हो युद्ध के बिना तो युद्ध क्यों जरूरी है?* 


काला,स्याह धुआं उठा रहा है 

चौक चौराहों पर जलाई उन मोमबत्तियां से,प्रार्थना

अधूरे,कोमल मन का विश्वास, टूटने लगा 

कहां फैला उजियारा, कहां गई रोशनी?

बेबस निर्भयाओ की चीख चित्कार 

कान में फोड़े पड़ गए, विचलित मन, सुनना मुश्किल

अपहरण प्रलोभन शोषण हैवानियत का खेल बढ़-सड़ 

कोलकाता, मेरठ असम दिल्ली हैदराबाद केरल की चींखे

पोक्सो एक्ट के कठोर दंड मत कर देना कम  

शैतान दुराचारियों की तनी हुई है भौहे.


धर्म की यात्रा रह गई अधूरी  

विश्वास पर धोखा, रफ्तार छोड़ कूद गए  

पहिया बन गई मौत क़ी खाई,

बीत गया पोखरा नेपाल, रोते हुए हैं आंख कपाल 

ना आएगा, अब संदेश कोई 

यूं ही खिलखिलाते मत रह जाना,तुम 

उनके बिलखतें चेहरे मन को ताना देते हैं 

मासूम मत बन, उठ

 इतिहास के पन्ने पर लिख जा रहे हैं कई कहानियां 

परख लेना मौत का कौन सामान तुम्हारे करीब आ गया 


क्यों इतना गरजते हो ताल,लाल,वार,सब बस में है तुम्हारे

शांति अहिंसा का संदेश क्यों भूल जाते हो 

पूरा चमन, बिछ जाएगी पूरी दुनिया कदमों में तुम्हारे 

क्या हासिल कर लेने वाले हो

बिना युद्ध के रह सकते हो 

तो अब युद्ध क्यों जरूरी है

चलो दुनिया ने तुम्हें महाशक्ति माना है

सच बताना,लेकिन तुमने क्या पाया है 

तुम्हारे पास दहशत, डर, चीख का भयानक मंजर तु

म्हारे धमाके,क्या इनको कभी दूर कर पाएंगे 

ज्ञान की जोत जला लेना,इंसान से कुछ प्रीत जगा लेना 

There is challenge to life.

Some are indutging, some are losing time 

यमुना किनारे, झिलमिल करते तारे

खुशियां है, उत्सव है  

नीरज का भाला 95 मीटर को छूता है

नए सपने सजे हैं भगवान आज आएंगे 

हमारे कृष्ण लला आएंगे 

धर्म युद्ध से पीछे नहीं हटने का संदेश था 

नोंच,खसोट,सारी सीमाए पार   

कल समय करवट लेगा 

समय करवट बदलेगा. 


🙏🙏🚩🚩


 *सुप्रभात* 


🙏🙏🚩🚩


                                    Ashok Tripathi 🚩


*सुबह की कविता* 



काले ऊंचे स्तब्ध पर्वत 

खेतों में धान की झुकी बालियां 

नजरे उठाकर बात नहीं करती 

खो गया कलरव, पक्षियों का 

कूदते मटकते हिरण भी नजरों से ओझल 

महुआ पलाश इमली तेंदू..... करंज के मौन  वृक्ष 

पन्ने कई इतिहास बन गए 

अंधेरे की कालिमा 

बूँटों की थाप, पत्तों की खड़खड़ाहट 

काले गहरे गड्ढे, एंबुश, नुकीले तीर 

यह क्या, कौन लेकर पहुंच गया यहां 

खून के धब्बे, चीख, पुकार चित्कार 

सिसकते होठों में  कई सवाल 

कठिन है जिंदगी 

लक्ष्य हैं बड़े

भटक ना जाए कदम 

किसे जीवन का अधिकार नहीं 

लड़ाई लड़ रहे

जंगल, पेड़, पर्वत सब तो होते दूर


 हवाओं की सांय -सांय..

 भरोसा कुछ बना है 

 पलाश महुआ ....को भी लगा है

 बिधेगे नहीं, उनके पत्ते अब गोलियों से

 क्यों नहीं पहुंच सकती वहां पाठशाला 

 सड़क पानी बिजली 

नई ऊर्जा लेकर वहां आएगी 


 घड़ी बदलती है नए इतिहास लिखे जाते हैं 

 इरादे नेक हो 

 नई उम्मीदें जग जाती है 

 सबको साथ लेकर तो बढ़ता ही है

 यही जिंदगी की रीत है

🙏🙏🚩🚩

 *सुप्रभात* 

🙏🙏🚩🚩


                        N Ashok Tripathi 🚩 


*सुबह की कविता* 

.......................



जिंदगी, की रफ्तार थमती नहीं है.

समय,अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता जाता है.

हालात, कभी रुलाते हैं, कभी हंसाते हैं.

कभी बेबस, मौन कर जाते हैं 

कहीं शहनाई की गूंज,खुशियों का वातावरण बनाती हैं,

तो कहीं की चीख,चित्कार,बेबसी का रुदन

सुनहरे पर्दों पर कालिख पोत जाती है

सबके, अपने-अपने लक्ष्य हैं 

दौड़ है, अंगड़ाई है, आगे बढ़ने की लड़ाई है.

कुछ छिन जाता है, कुछ मिल जाता है.

समय, आगे बढ़ता जाता है.


समय बदल जाता है.

पात्र, बदल जाते हैं.

कुछ, जाने- पहचाने चेहरे, पीछे छूट जाते हैं 

अनजाने चेहरे कब साथ आ जाते हैं? स्वयं को पता नहीं चलता.

 औरों की खातिर गिर पड़ते हैं, हम 

 फिर, संभल कर चल पड़ते हैं.

 परवाह, नहीं करता है वह हमारी

समय, बदलता जाता है.


🙏🙏🚩🚩

 *सुप्रभात.* 

🙏🙏🚩🚩

                     Ashok Tripathi 🚩