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पेरिस पैरालिंपिक में रजत पदक जीतने का निरंतर सिलसिला, भारत ने आज जीते 5 रजत पदक

  भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी से पैरा शटलर बने सुहास यतिराज ने लगातार दूसरा रजत पदक जीतकर अपनी छाप छोड़ी   नई दिल्ली. असल बात न्यूज़.  ...

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भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी से पैरा शटलर बने सुहास यतिराज ने लगातार दूसरा रजत पदक जीतकर अपनी छाप छोड़ी

 नई दिल्ली.
असल बात न्यूज़.  

भारत के पैरा-एथलीट वैश्विक मंच पर देश को लगातार गौरवान्वित कर रहे हैं। 

परिचय 

सुहास यतिराज: 

भारतीय पैरा-शटलर सुहास यतिराज ने पेरिस 2024 पैरालिंपिक में पुरुष एकल एसएलश्रेणी में रजत पदक जीतकर पैरालिंपिक में अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखा। एसएलश्रेणी उन एथलीटों के लिए हैजिनके एक या दोनों निचले अंगों में विकलांगता है और चलने या दौड़ने में संतुलन बनाने में न्यूनतम कमी है।

फ्रांस के लुकास माजुर के खिलाफ एक कड़े मुकाबले वाले फाइनल मेंसुहास ने टोक्यो पैरालिंपिक 2020 में अपनी सफलता के बाद लगातार दूसरा रजत पदक हासिल किया। इस उपलब्धि के साथसुहास टोक्यो और पेरिस पैरालिंपिक दोनों में पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय शटलर बन गए हैंजिससे पैरा-बैडमिंटन में उनकी विरासत और मजबूत हुई है।

 

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लोक सेवा और पैरा-बैडमिंटन की ख्याति में संतुलन

सुहास एलयतिराज वर्तमान में पुरुष एकल एसएलश्रेणी में विश्व में नंबर 1 (3 सितंबर, 2024 तकरैंक पर हैं। सुहास टोक्यो 2020 पैरालिंपिक के रजत पदक विजेता हैं। उत्तर प्रदेश कैडर के 2007 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीसुहास गौतम बुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में भी काम कर चुके हैं। पैरा-बैडमिंटन में उनकी असाधारण उपलब्धियों ने उन्हें प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार दिलाया है।


Sachin Khilari Triumphs with Silver in Men’s Shot Put at Paris Paralympics

Sets New Asian Record and Secures 21st Medal for India at the Games


Introduction

In a remarkable display of strength and skill, Sachin Khilari has added a new chapter to India’s Paralympic glory by clinching the silver medal in the Men’s Shot Put F46 final at the Paris Paralympics 2024. This category includes athletes with upper limb impairments due to limb deficiency, impaired muscle power, or restricted passive range of movement. With a phenomenal throw of 16.32 meters, Khilari not only secured India’s 21st medal at the Games but also set a new Asian record. This impressive achievement marks India’s 10th silver medal at the Paris Paralympics and highlights Khilari's exceptional performance and reinforcing India's position on the global Paralympic stage.

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Triumph Over Adversity

Sachin Khilari, born on October 23, 1989, hails from Karagani village in Sangli district of Maharashtra. Sachin's life took a challenging turn following a tragic accident during his school years, which left him with a disability in his left hand. However, instead of viewing his disability as a setback, Sachin embraced it as a unique strength.

Ajeet Singh: A Silver Finish with Golden Effort

Chronicles of Perseverance and Determination


Ajeet Singh, born on September 5, 1993, in Etawah, Uttar Pradesh, has carved a remarkable path in para-athletics, winning a Silver Medal in the javelin throw F46 category. His story is marked by extraordinary achievements and the ability to overcome significant challenges.

 

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Early Life and Tragic Accident

Growing up in Gwalior, Madhya Pradesh, Ajeet Singh was always passionate about sports. He pursued his physical education and is currently working towards a Ph.D. from the Lakshmibai National Institute of Physical Education (LNIPE) in Gwalior. In 2017, Ajeet's life took a dramatic turn when he was involved in a tragic train accident. While trying to save his best friend from falling off the train, Ajeet got caught in the wheels, resulting in the amputation of his left arm below the PM

bow.

पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 में योगेश कथुनिया ने जीता रजत पदक

पैरालिंपिक्स 2020 के बाद लगातार रजत पदक जीत देश का मान बढ़ाया



पेरिस 2024 पैरालिंपिक्स में पुरुष पैरा डिस्कस थ्रो एफ56 श्रेणी में योगेश कथुनिया ने शानदार प्रदर्शन कर रजत पदक जीता। एफ56 उन खेल वर्गों का हिस्सा हैजहां एथलीट कमज़ोर मांसपेशियों,  शारीरिक विकलांगता या पैर की लंबाई में अंतर के कारण व्हीलचेयर या थ्रोइंग चेयर पर प्रतिस्पर्धा करते हैं।

27 साल के योगेश ने अपने पहले प्रयास में 42.22 मीटर का थ्रो कियाजो उनका सर्वश्रेष्ठ प्रयास रहा। इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक्स 2020 में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं । इस प्रकार लगातार दूसरे पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर दुनिया भर में योगेश ने खेल जगत में एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है।

 

हरियाणा के बहादुरगढ़ के रहने वाले योगेश कथुनिया का जन्म 3 मार्च 1997 को हुआ। उनकी मां मीना देवी गृहिणी हैं और पिता ज्ञानचंद कथुनिया भारतीय सेना में कार्यरत हैं। 9 साल की उम्र में योगेश को गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी से पीड़ित होने के बारे में पता चला। इस कारण उन्हें चलने-फिरने में काफी परेशानी होती थी

शीतल देवी और राकेश कुमार: सफलता पर साधा निशाना


पैरा तीरंदाजी में ऐतिहासिक जीत

पेरिस में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले पैरा-एथलीटों में शीतल देवी और राकेश कुमार का प्रदर्शन भी शामिल थाजिन्होंने मिश्रित टीम कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। उनकी जीत पैरा खेलों में भारत की बढ़ती विरासत में एक और अध्याय जोड़ती है!

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शीतल देवी का सफर

शीतल देवी का जन्म 10 जनवरी2007 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में हुआ था। उन्होंने अपने अतुलनीय सफर से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया है। बिना हाथों के जन्म लेने के बावजूद उन्होंने दिखा दिया है कि महानता हासिल करने की राह में शारीरिक सीमाएं कोई बाधा नहीं हैं। उनका प्रारंभिक जीवन चुनौतियों से भरा थालेकिन 2019 में उस समय एक महत्वपूर्ण क्षण आया जब भारतीय सेना ने एक सैन्य शिविर में उनकी प्रतिभा की पहचान की। उनकी क्षमता को देखते हुए उन्होंने उन्हें शैक्षिक सहायता और चिकित्सा देखभाल की सुविधा प्रदान की।

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जानेमाने कोच कुलदीप वेदवान की देखरेख में शीतल ने कठोर प्रशिक्षण की शुरुआत की और इसने उन्हें दुनिया की एक अग्रणी पैरा-तीरंदाज बना दिया। उनकी उपलब्धियां खुद बयां करती हैं: 2023 के एशियाई पैरा खेलों में व्यक्तिगत एवं मिश्रित टीम स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक2023 के विश्व तीरंदाजी पैरा चैम्पियनशिप में रजत पदक और एशियाई पैरा चैम्पियनशिप में कई पुरस्कार। शीतल की कहानी साहसदृढ़ता और अपनी क्षमताओं में अटूट विश्वास की कहानी है।