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सुबह की कविता,हथेली हुई है लाल, कई बार उनके बेंत की मार से

  सुबह की कविता,हथेली हुई है लाल, कई बार उनके बेंत की मार से उन्होंने ही तो सिखाया था राष्ट्र प्रेम का ज्ञान, जन गण मन, वंदे मातरम का गान अह...

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सुबह की कविता,हथेली हुई है लाल, कई बार उनके बेंत की मार से

उन्होंने ही तो सिखाया था
राष्ट्र प्रेम का ज्ञान,
जन गण मन, वंदे मातरम का गान
अहिंसा का बल,मित्रता की अहमियत

भगत सिंह, चंद्रशेखर का त्याग 

बालक खुदीराम बोस का बलिदान.

फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते चढ़ जाना 

 पंचतंत्र की कहानी भी हमने सीखी थी 

अनुशासन का डंडा था, बिना बताए सब कुछ सिखा जाता था
स्कूल से सीधे घर जाना है
कहीं जाने में देर नहीं होना है

किसी की तरफ आंख उठा कर नहीं देखना है

छल- कपट से, बस दूर रहना है
आलस भी भाग गई थी,
नौकरी हमारे हाथ भी आ गई थी
उनका क्रोध, सब याद दिला देता था
इंग्लिश का ग्रामर भी तब पूरे के पूरे बता देता था
हथेली हुई है लाल, कई बार उनके बेंत की मार से
लेकिन उनके सिखाए गए सारे सवाल,आज भी है याद,हथेलियां के हुए लाल से.

सहम जाती थी,उनके आने के पहले
पूरी क्लास...
वह सन्नाटा, कहां दिखता था कोई है आसपास....
सबके दिलों में होती थी धक-धक
ना जाने क्या होगा,आज किसके साथ
जो पढ़ाए थे,पढ तो लिया था,पूरे का पूरा,एक- एक पाठ
लेकिन,यह कैसे हो सकता है
उनके क्लास में आते हैं, कुछ कैसे याद... रह जाए
उनकी चौकन्नी आंखें सब कुछ जान लेती थी,
उन्हें मालूम होता था किसे कुछ याद होगा
झूठ ना बोलिएगा....

आप सब भी,यह जानते हैं,
अनुशासन का डंडा, सारी डेढ़ होशियारी कम कर देता था
क्लास में वह घबराहट,बेचैनी के अजीब से पल होते थे

45 मिनट का पीरियड बीतते तक,मन सिर्फ 'प्रार्थना' करता था
 हम ही कहीं ना खड़े कर दिया जाए 

हमसे, ही,ना हो जाए कोई सवाल ...
हे,भगवान,..
सही 'उत्तर' हम कहाँ बता सकेंगे.
जिसने हमें "ज्ञान' दिया
उसे दिया गया,'उत्तर' तो 🚩सही कैसे हो सकेगा
हमने यह सीखा था
'गुरु' को, दिया हमारा हर 'उत्तर' तो सिर्फ अधूरा होगा

*अनुशासन का डंडा, ना जाने कहां खो गया, 

 अब कोई कैसे बता सकेगा कि

 हथेली हुई है लाल, कई बार उनके बेंत की मार से