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न्यायालय और न्याय व्यवस्था पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की महत्वपूर्ण स्पीच, कहा -देश के प्रत्येक न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें

जिला स्तरीय न्यायालय करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करते हैं स्थगन की संस्कृति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जान...

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जिला स्तरीय न्यायालय करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करते हैं

स्थगन की संस्कृति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए

 नई दिल्ली.
 असल बात न्यूज़.

देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज न्यायालय और न्याय व्यवस्था पर महत्वपूर्ण स्पीच दी है. उन्होंने कहा है कि  देश के प्रत्येक न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें.आम लोगों को जिला अदालतों के माध्यम से  कम खर्च पर तत्परता के साथ न्याय दिलाना ही हमारी न्यायपालिका की सफलता का आधार है। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने यहां भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय जिला न्यायपालिका सम्मेलन के समापन सत्र में बोलते हुए उक्त बातें कही है। उन्होंने इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण भी किया। राष्ट्रपति ने कहा कि जब दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है।



समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अपनी स्थापना के बाद से ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्यायिक प्रणाली के सजग प्रहरी के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के कारण भारतीय न्यायशास्त्र का स्थान बहुत सम्मानजनक रहा है। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका से जुड़े सभी वर्तमान और पूर्व लोगों के योगदान की सराहना की। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनसे लोगों का हमारी न्यायिक प्रणाली के प्रति विश्वास और लगाव बढ़ा है।


राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना हमारी परंपरा का हिस्सा रही है।उन्होंने पिछले अवसर पर अपने संबोधन का उल्लेख करते हुए दोहराया कि लोग देश के प्रत्येक न्यायाधीश को भगवान मानते हैं। हमारे देश के प्रत्येक न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें। जिला स्तर पर यह नैतिक दायित्व न्यायपालिका का प्रकाश स्तंभ है। जिला स्तर की अदालतें करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करती हैं। इसलिए जिला अदालतों के माध्यम से लोगों को संवेदनशीलता और तत्परता के साथ कम खर्च पर न्याय दिलाना ही हमारी न्यायपालिका की सफलता का आधार है।


राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्षों में जिला स्तर पर न्यायपालिका की अवसंरचना, सुविधाओं, प्रशिक्षण और मानव संसाधनों की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लेकिन, इन सभी क्षेत्रों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्हें विश्वास है कि सुधार के सभी आयामों पर तेजी से प्रगति जारी रहेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि लंबित मामलों की संख्या न्यायपालिका के सामने एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने 32 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मामलों के गंभीर मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विशेष लोक अदालत सप्ताह जैसे कार्यक्रमों का अधिक आवृत्ति के साथ आयोजन किया जाना चाहिए। इससे लंबित मामलों से निपटने में मदद मिलेगी। सभी हितधारकों को इस समस्या को प्राथमिकता देकर इसका समाधान निकालना होगा। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि इस सम्मेलन के एक सत्र में मुकदमों के प्रबंधन से संबंधित कई पहलुओं पर चर्चा की गई। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन चर्चाओं से व्यावहारिक परिणाम सामने आएंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान पंचायतों और नगरपालिकाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर विधायी और कार्यकारी निकायों की शक्ति और जिम्मेदारियों का प्रावधान करता है। उन्होंने पूछा कि क्या हम स्थानीय स्तर पर इनके समतुल्य न्याय प्रणाली के बारे में सोच सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा और स्थानीय परिस्थितियों में न्याय प्रदान करने की व्यवस्था करने से न्याय को हर किसी के घर तक पहुंचाने के आदर्श को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी न्यायपालिका के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनके समाधान के लिए सभी हितधारकों द्वारा समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, साक्ष्य और गवाहों से संबंधित मुद्दों का समाधान खोजने के लिए न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन को मिलकर काम करना चाहिए।

 उन्होंने कहा कि यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में, साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ और खुलेआम घूमते रहते हैं। जो लोग अपराधों के पीड़ित होते हैं, वे इस डर में जीते हैं जैसे उन गरीबों ने ही कोई अपराध किया हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांवों के गरीब लोग अदालत जाने से डरते हैं। वे बहुत मजबूरी में ही अदालत की न्याय प्रक्रिया में भागीदार बनते हैं। कई बार वे चुपचाप अन्याय सह लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि न्याय के लिए लड़ना उनके जीवन को और अधिक कष्टमय बना सकता है। उनके लिए गांव से दूर एक बार के लिए भी न्यायालय जाना, मानसिक और आर्थिक दबाव का कारण बन जाता है। ऐसे में कई लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि स्थगन की संस्कृति के कारण गरीब लोगों को कितना दर्द सहन करना पड़ता है। इस स्थिति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि जेल में बंद महिलाओं के बच्चों के सामने पूरा जीवन शेष होता है। हमारी प्राथमिकता उनके स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए किए जा रहे कार्यों का आकलन और सुधार करने से जुड़ी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किशोर अपराधी भी अपने जीवन के शुरुआती चरण में होते हैं। उनकी सोच और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपाय करना, उन्हें जीवन जीने के लिए उपयोगी कौशल प्रदान करना और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

राष्ट्रपति को यह जानकर खुशी हुई कि सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है। इसके तहत पहली बार जेल में बंद और निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई हिस्सा काट चुके लोगों को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है। उन्होंने विश्वास जताया कि आपराधिक न्याय की नई प्रणाली को इस तत्परता से लागू करके हमारी न्यायपालिका न्याय के एक नए युग की शुरुआत करेगी।