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रिश्वत का कलंक मिटाने High Court तक लड़ी लड़ाई… मरने के बाद मिटा कलंक

 बिलासपुर. एक बैंक प्रबंधक अपनी मौत के बाद ही सरकारी योजना के तहत बोरवेल खुदाई हेतु लोन देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप से मुक्त हो सका, न...

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 बिलासपुर. एक बैंक प्रबंधक अपनी मौत के बाद ही सरकारी योजना के तहत बोरवेल खुदाई हेतु लोन देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप से मुक्त हो सका, निचली अदालत ने उसे एक वर्ष कैद की सजा सुनाई थी. सजा के खिलाफ बैंक प्रबंधक ने 2003 में हाईकोर्ट में अपील की थी. अपील लंबित रहने के दौरान ही उसकी मौत हो गई. इसके बाद विधिक वारिस पत्नी व बेटों ने मुकदमें को आगे बढ़ाया. 22 वर्ष बाद हाईकोर्ट ने बैंक प्रबंधक को रिश्वत लेने के आरोप से मुक्त करते हुए निचली अदालत के आदेश को खारिज किया है. अपीलकर्ता दुर्ग निवासी राजेन्द्र कुमार यादव वर्ष 2000-2001 में कृषि एवं भूमि विकास बैंक की बेमेतरा शाखा में शाखा प्रबंधक के पद में पदस्थ रहें. उनके पदस्थापना के दौरान ग्राम एरमसाही नवागढ़ ब्लॉक निवासी किसान धीरेन्द्र कुमार शुक्ला ने अपने पिता राजेन्द्र नारायण शुक्ला के नाम से बोरवेल खुदाई हेतु सरकारी योजना के तहत लोन लेने आवेदन दिया. आवेदन पर शाखा प्रबंधक राजेन्द्र कुमार यादव ने प्रोसेस शुल्क 526 रूपये जमा करने के लिए कहा. किसान ने शाखा प्रबंधक द्वारा रिश्वत मांगे जाने की लोकायुक्त रायपुर में शिकायत की.

शिकायत पर लोकायुक्त ने मई 2001 को शिकायतकर्ता को केमिकल लगे करेंसी लेकर बैंक प्रबंधक के पास भेजा एवं इशारा मिलते हुए ट्रेप कर शाखा प्रबंधक को हिरासत में लिया. आवश्यक कार्रवाई के बाद उसके खिलाफ न्यायालय में चालान पेश किया गया. विशेष न्यायाधीश ने जनवरी 2003 को शाखा प्रबंधक को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 में 6 माह कैद 500 रूपये अर्थदंड एवं धारा 13 (डी) 1 में 1 वर्ष कैद एवं 500 अर्थदंड की सजा से दंडित किया. शाखा प्रबंधक ने निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील पेश की. अपील लंबित रहने के दौरान अपीलकर्ता शाखा प्रबंधक की मौत हो गई. इसके बाद पत्नी उत्तम कुमारी यादव, पुत्र प्रशांत यादव व निशांत यादव ने मुकदमें को आगे बढ़ाया. 22 वर्ष बाद अगस्त में अपील पर हाईकोर्ट में अंतिम सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने मामले में पाया कि शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ता को 526 रूपये प्रोसेस शुल्क दिया था. ट्रेप टीम ने उसके जेब से 100-100 के चार करेंसी नोट जब्त करने की बात कही गई. प्रतिपरीक्षण में यह बात सामने आई कि अपीलकर्ता के जेब से टीम ने 7-8 करेंसी नोट निकाले थे, रिश्वत में दिए गए नोट के नंबर भी दर्ज नहीं है. वहीं अपीलकर्ता ने बचाव में कहा कि शिकायतकर्ता ने प्रोसेस शुल्क दिया था जिसकी उसे रसीद भी दी गई. मामले में उक्त रसीद भी प्रस्तुत की गई थी. हाईकोर्ट ने सुनवाई के उपरांत बैंक प्रबंधक को रिश्वत लेने के आरोप से मुक्त करते हुए निचली अदालत के निर्णय को खारिज किया है.