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तखतपुर के चंडी मंदिर में जलने वाली ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा,छोटी बच्चियों ने भी सिर पर कलश रखकर किया शहर भ्रमण

  तखतपुर.   हर साल नवरात्र में तखतपुर के चंडी मंदिर में जलने वाली ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा नवमी तिथि को निकलती है. इस वर्ष भी शारदीय नवर...

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 तखतपुर. हर साल नवरात्र में तखतपुर के चंडी मंदिर में जलने वाली ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा नवमी तिथि को निकलती है. इस वर्ष भी शारदीय नवरात्रि में जलाए गए ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा चंडी मंदिर से निकलकर देवांगन पारा और सदर बाजार होते हुए निकली और कालीबाड़ी के बम बम घाट में जाकर विसर्जित हुई. इस वर्ष चंडी मंदिर में कुल 630 ज्योति कलश जलाए गए थे, जिसमें से 41 घृत ज्योति कलश थे.

इस कलश विसर्जन यात्रा में शक्ति और भक्ति का संगम देखने को मिला. नगरवासी जगह-जगह इस यात्रा की पूजा किए. लोग जैसी व्यवस्था बन पड़ती थी वैसी सेवा करते रहे. छोटी छोटी बच्चियों को सिर पर कलश उठाए देखना मन में मां के प्रति श्रद्धा और विश्वास को भर देता था.

राजा तखत की कुल देवी है चंडी मां


तखतपुर में शक्ति के दो केंद्र है जिनमे एक तखतपुर की माँ महामाया और दूसरी चंडी मंदिर में विराजित माँ चंडी है। कहा जाता है कि चंडी देवी तखतपुर के राजा तखत के कुल देवी है।माँ चंडी से जुड़ी कहानी के अनुसार एक बार तखतपुर में भयंकर बीमारी फैल गयी ।बीमारी के कारण लोग मरने लगे तो माँ चंडी ने सपना देकर बताया कि जंगल मे इमली पेड़ के नीचे बैठी हूँ। मेरी सेवा करो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। लोगो ने जाकर देखा तो माँ चंडी इमली पेड़ के नीचे थी लोगो ने उनका मंदिर वनाकर सेवा करना शुरू किया तो बीमारी अपने आप दूर हो गयी। तब से चंडी माता को सिद्ध शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाने लगा।ज्योति कलश की परम्परा 50 से 55 वर्ष पूर्व शुरू हुई जो एक ज्योति कलश से आज के वर्ष तक 630 तक पहुंच गया है।

कहां से मिलती है शक्ति

ज्योति कलश की यात्रा की दूरी वैसे तो कुल दो से ढाई किलोमीटर का ही पड़ता है, लेकिन इन दो -ढाई किलोमीटर की दूरी को तय कर विसर्जित करने में 7 से 9 घंटे लग जाते है। इस यात्रा के दौरान कलश उठाने वाली कन्या को न कही आना जाना होता है न किसी प्रकार के नित्य क्रिया कर सकती है। केवल कुछ क्षणों के लिए कलश उठाकर सिर के ऊपर रखे कपड़े की गूढरी को ठीक किया जा सकता है। कलश की यात्रा को देखने वाले इसी सोच में रहते है कि कलश उठाने वाली इन कन्यायों को इतनी शक्ति कहाँ से मिलती है।क्योंकि कलश उठाने वाली लड़कियों की उम्र 6 साल से लेकर 14 साल तक की होती है। वही कन्याएं इन कलश को उठा सकती है जिनका रजोकाल शुरू न हुआ हो। इन छोटी छोटी बच्चियों के चयन इनके माता पिता के द्वारा ही कलश उठाने के लिए किया जाता है। सामान्यतः कलश को उसी घर की कन्याएं उठाती है जिन्होंने कलश जलवाया है।लेकिन कभी कभी कलश जलवाने वाले किसी और को भी कलश उठाने दे देते है।कलश उठाने के लिए इतना उत्साह और इतनी श्रद्धा होती है कि एक तरह से बुकिंग चलती है। जिसको कलश उठाने को मिलता है वह अपने आप को भाग्यशाली समझता है। एक बार कलश लेकर पंक्ति में चली गई तो विसर्जन पश्चात ही पंक्ति से निकलना है। मतलब यह कि 7 से 9 घंटे बाद ही पंक्ति से निकलना होता है।इस बीच संयम शक्ति और क्षमता कहां से मिलती है यह तो उठाने वाली ही जाने। निश्चित ही यह शक्ति माँ की ही कृपा होती है जो यात्रा किसी भी मौसम और परिस्थितियों में एक भी कलश बिना बुझे अपनी विसर्जन यात्रा पूर्ण कर लेती है । शायद यही कारण है कि तखतपुर के लोगो का विश्वास और श्रद्धा माँ चंडी के ऊपर अगाध रूप से बना हुआ है।