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पोक्सो एक्ट में आरोपी को 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा, अभनपुर थाना क्षेत्र का है प्रकरण

पोक्सो एक्ट में आरोपी को 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा, अभनपुर थाना क्षेत्र का है प्रकरण    रायपुर  . असल बात न्यूज़.    लैंगिक अपराधों से...

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पोक्सो एक्ट में आरोपी को 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा, अभनपुर थाना क्षेत्र का है प्रकरण 

 रायपुर  .

असल बात न्यूज़.   

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के अपराध के लिए यहां न्यायालय ने दोषसिद्ध होने पर अभियुक्त को 10 वर्ष के सश्रम कारावास एवं ₹5000 अर्थदंड की सजा सुनाई है.प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि आरोपी पीड़िता की बड़ी मां का बेटा है. न्यायालय ने बचाव पक्ष की ओर से अभियोकत्री की जन्म तिथि अस्पष्ट होने और घटना के समय अभियुक्त की पहचान नहीं होने के संबंध में प्रस्तुत सारे तर्कों को अमान्य कर दिया.

 यह प्रकरण अभनपुर जिला रायपुर थाना क्षेत्र का 22 जून 2021 का है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वितीय पोक्सो एक्ट ट्रैक विशेष न्यायालय रायपुर राकेश कुमार सोम के न्यायालय ने प्रकरण में यह सजा सुनाई है. प्रकरण में आरोपी पीड़िता की बड़ी मां का बेटा है.पीड़िता की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए आरोपी का नाम भी यहां उजागर नहीं किया जा रहा है. अभियोजन पक्ष के अनुसार प्रकरण का कथा सार यह है कि आरोपी ने 18 वर्ष से कम आयु की वीरता के साथ जबरदस्ती शारीरिक संभोग कर प्रदर्शन लैंगिक हमले तथा पीड़िता को जान से मारने की धमकी देकर संत्रास पारित करने का अपराध किया. पिज़्ज़ा अपने मां के घर रहकर पढ़ाई करती थी और उसे दिन आरोपी भी वहां आ गया था. पीड़िता के चिल्लाने पर आरोपी भाग गया था  अपने मामा मानवी को दी थी और तब स्थानीय थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई.

 आरोपी की ओर से अपने बचाव में यह तर्क और प्रतिरक्षा ली गई कि अभियोक्तरी,अभियोक्तरी की माता एवं अभियोकत्री के मामा के बयान में काफी विरोधाभास और अस्पष्टता है जिससे प्रथम सूचना रिपोर्ट विधिवत प्रमाणित नहीं लगती. अभियोक्तरी की जन्म तिथि को भी अप्रमाणित बताया गया.स्कूल रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि को अस्पष्ट बताक़र खारिज करने का दावा किया गया जिसे न्यायालय ने अमानी कर दिया.

न्यायालय प्रकरण में माना कि अभियोक्तरी तथा साक्षयों के कथन के प्रतिकूल बचाव पक्ष की ओर से कोई भी प्रमाणिक तथ्य नहीं लाया जा सका. न्यायालय ने दोष सिद्ध होने पर अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एक के अपराध के बजाय लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 4 के अपराध के लिए 10 वर्ष के सश्रम कारावास एवं ₹5000 अर्थ दंड की सजा सुनाई है.


 प्रकरण में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्रीमती विमल टांडी ने पैरवी की.