दुर्ग . असल बात न्यूज़. 0 विधि संवाददाता यहां मानसिक रूप से कमजोर दिव्यांग नाबालिग बालक से अप्राकृतिक कृत्य करने के आरोप...
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असल बात न्यूज़.
0 विधि संवाददाता
यहां मानसिक रूप से कमजोर दिव्यांग नाबालिग बालक से अप्राकृतिक कृत्य करने के आरोपी को पॉकसो एक्ट में 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है.आरोपी पर पीड़ित को घटना के बारे में किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी देने का भी आरोप था लेकिन अपराध प्रमाणित नहीं होने पर इस आरोप से उसे दोष मुक्त घोषित कर दिया गया. अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एफटीसी दुर्ग श्रीमती संगीता नवीन तिवारी के न्यायालय ने यह सजा सुनाई है. न्यायालय ने अपराध की प्रकृति को देखते हुए,दंड देने में नरम रूप अपनाना उचित नहीं माना. इस प्रकरण में लगभग 2 साल 4 महीने के भीतर न्यायालय का निर्णय आ गया है. आरोपी,गिरफ्तारी के बाद से लगातार न्यायिक हिरासत में है. न्यायालय ने प्रकरण में पीड़ित बालक को पुनर्वास हेतु आहत प्रतिकर योजना से विधि अनूरूप राशि प्रदान करने का भी आदेश सुनाया है.
यह प्रकरण 27मई 2022 का जामुल थाना क्षेत्र के अंतर्गत का है. प्रकरण में नाबालिग बालक की माता के द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. पीड़ित बालक को उपचार हेतु अस्पताल ले आया गया और वहां अस्पताल के द्वारा प्रकरण में थाने में रिपोर्ट दर्ज करने को कहा गया तब रिपोर्ट दर्ज कराई गई. अभियोजन पक्ष के अनुसार प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि आरोपी और पीड़ित एक दूसरे को जानते हैं दोनों एक ही गांव के निवासी हैं. अभियुक्त की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास है. पीड़ित बालक की उम्र लगभग 14 वर्ष 4 माह मानी गई है.
अभियोजन पक्ष के अनुसार,आरोपी,पीड़ित को गांव के बाहर परिया में ले गया और अप्राकृतिक कृत्य किया. मानसिक दिव्यांग बच्चों का आईक्यू लेवल उनके क्रियाकलाप बच्चों के परिवार के दैनिक क्रियाकलाप के संबंध में पूछताछ कर निर्धारण किया जाता है. न्यायालय के समक्ष यहां पीड़ित बालक का आईक्यू लेवल 35 निर्धारित किया गया. इस आईक्यू लेवल के बालक की सामान्य भाषा को पुलिस नहीं समझ सकती थी. वह शब्दों को स्पष्ट रूप से उच्चारित करते हुए बोल नहीं सकता था.वह अपने गांव का नाम पता एवं स्वयं का नाम पता बता सकते में असमर्थ होता है.न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर पीड़ित बालक को एक मानसिक रूप से कमजोर एवं दिव्यांग बालक माना.
विचारण के दौरान बचाव पक्ष की ओर से प्रति परीक्षण में यह बचाव लिया गया कि अभियुक्त वाहन चालक है और घटना के दिन अपने वाहन मेँ सब्जी लेकर बाहर गया था किंतु न्यायालय के समक्ष इसे प्रमाणित करने बचाव पक्ष की ओर से कोई भी साक्षय नहीं दिया गया. परीक्षण के दौरान पीड़ित बालक ने न्यायालय में अभियुक्त को देखकर उसकी पहचान की.
न्यायालय ने तथ्यों एवं साक्षयों के आधार पर अभियुक्त के विरुद्ध दोष सिद्ध पाया. न्यायालय ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 370 के अपराध में 10 वर्ष, धारा 323 के अपराध में एक वर्ष और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के अपराध में 20 वर्ष के कठोर कारावास तथा ₹5000 रुपए अर्थदंड की सजा दी गई है
प्रकरण में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक संतोष कुमार कसार ने पैरवी की.