कवर्धा,असल बात कबीरधाम नक्सल ऑपरेशन में पदस्थ DSP कृष्ण कुमार चंद्राकर के बेटे कृतज्ञ की मासूम सोच छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सु...
कवर्धा,असल बात
कबीरधाम नक्सल ऑपरेशन में पदस्थ DSP कृष्ण कुमार चंद्राकर के बेटे कृतज्ञ की मासूम सोच |
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों का संघर्ष केवल बंदूक और गोली तक सीमित नहीं है। यह संघर्ष समाज में जागरूकता फैलाने, नई पीढ़ी को प्रेरित करने और सकारात्मक बदलाव लाने का एक माध्यम भी है। इसी बदलाव का प्रतीक है *कृतज्ञ चंद्राकर*,जिसकी मासूमियत और समझ ने नक्सलवाद के खिलाफ एक अलग संदेश दिया है।
कृतज्ञ, डीएसपी कृष्ण कुमार चंद्राकर का बेटा है। डीएसपी चंद्राकर ने दंतेवाड़ा जैसे चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 2.5 वर्षों तक अपनी सेवा दी। इस दौरान कृतज्ञ ने अपने पिता के साथ रहते हुए पुलिस के अभियानों और उनकी दिनचर्या को करीब से देखा। उसने एंटी-लैंड माइन वाहनों, गश्त, और हेलीकॉप्टर ऑपरेशनों को न केवल देखा, बल्कि समझने की कोशिश भी की।
कृतज्ञ की सोच का सबसे प्रेरणादायक उदाहरण उसकी एक ड्राइंग में देखने को मिलता है। इस ड्राइंग में उसने मुठभेड़ का एक दृश्य बनाया है, जिसमें यह स्पष्ट दिखाया कि नक्सली पहले फायरिंग करते हैं और पुलिस केवल आत्मरक्षा में जवाब देती है। इतनी कम उम्र में कृतज्ञ की यह गहरी समझ न केवल मासूमियत को दर्शाती है, बल्कि यह भी कि वह पुलिस के काम को कितनी गंभीरता से देखता और समझता है।
कृतज्ञ की माँ, *संगीता चंद्राकर*, जो एक शिक्षिका हैं, उसे शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ा रही हैं। कृतज्ञ, पढ़ाई में होशियार होने के साथ-साथ, शारीरिक रूप से भी काफी सक्रिय है। वह नियमित रूप से दौड़, जिम्नास्टिक और अन्य शारीरिक गतिविधियों में भाग लेता है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम, जैसे कि पुनर्वास योजनाएँ, सुदूर क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का विकास और आधुनिक तकनीकों का उपयोग, धीरे-धीरे इन इलाकों में स्थायित्व और शांति ला रहे हैं। डीएसपी *कृष्ण कुमार चंद्राकर*, जो वर्तमान में कबीरधाम में नक्सल ऑपरेशन के पद पर पदस्थ हैं, जैसे अधिकारी इन प्रयासों को अमल में लाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कृतज्ञ जैसे बच्चे यह साबित करते हैं कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई केवल हथियारों की लड़ाई नहीं है। यह एक सामाजिक सुधार का आंदोलन है, जिसमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है। कृतज्ञ की मासूम सोच और उसकी समझ यह दर्शाती है कि नई पीढ़ी न केवल हिंसा को नकार रही है, बल्कि शांति और विकास की ओर बढ़ने के लिए तैयार है।
छत्तीसगढ़ में अब शांति और स्थिरता का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। कृतज्ञ जैसे बच्चे इस बदलाव की नींव हैं, जो उम्मीद और प्रेरणा का प्रतीक बनकर उभर रहे हैं। यह दिखाता है कि शिक्षा, जागरूकता और दृढ़ संकल्प से न केवल नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है, बल्कि समाज को एक नई दिशा भी दी जा सकती है। कृतज्ञ की मासूमियत और उसकी समझ इस बात का प्रमाण है कि बदलाव संभव है और स्थायी भी।
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