Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

Automatic Slideshow


मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में नियुक्तियों में जल्दबाजी करने से बचने तथा जनता के मन को समझने की जरूरत

मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में नियुक्तियों में जल्दबाजी से बचने तथा जनता के मन को समझने की जरूरत छत्तीसगढ़.  असल बात न्यूज़..    ...

Also Read


मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में नियुक्तियों में जल्दबाजी से बचने तथा जनता के मन को समझने की जरूरत

छत्तीसगढ़. 

असल बात न्यूज़..

        0 पॉलिटिकल रिपोर्ट   

            0 अशोक त्रिपाठी   

राजनीति में आम जनता का कब मन बदल जाता है,आम लोगों में कब किस विशेष बात को लेकर नाराजगी पैदा हो जाती है?और इस नाराजगी के चलते मतदाता,कब किस पार्टी को सत्ता से उठाकर बाहर फेंक दे?इसे समझ पाना आसान नहीं है. जो राजनीतिक दल सत्ता में लंबी पारी खेलना चाहते हैं,वे लोग, ऐसी सारी चीजों पर हमेशा बारीकी से नजर रखे रहते हैं. पंद्रह वर्षो तक सत्ता में रहने के बाद छत्तीसगढ़ में पांच साल पहले,भाजपा को भी बड़ा झटका मिला था. ऐसे में यह माना जा सकता है कि वह,यहां अपनी नई पारी में,अपने प्रत्येक निर्णय बड़े सोच-समझ कर लेगी.पार्टी में अभी मंत्रिमंडल के विस्तार और निगम,आयोग में नियुक्तियों के लिए लगातार दबाव बन रहा है,लगातार चर्चाए चल रही है लेकिन यह माना जा रहा है कि इस पर कोई भी निर्णय अत्यंत जल्दबाजी में लेना,पार्टी के लिए ही नुकसानदायक भी साबित हो सकता है.पार्टी को यह स्वीकार करना होगा कि ऐसी नियुक्तियां किसी के कमाई का साधन बनाने के लिए नहीं है.इससे आम जनता का कहां और कैसे भला होने वाला है?इन बातों को ध्यान में रखकर इस पर निर्णय लिए जाने की जरूरत है 

भारतीय जनता पार्टी यह तो जरूर समझ गई होगी कि, 15 वर्षो तक सत्ता में रहने के बाद उसे आम मतदाताओ ने सत्ता से क्यों बाहर कर दिया था. इस पर लगातार चर्चाएं होती रही हैं. इस विषय पर कार्यकर्ताओं ने भी अपनी बातें रखी हैं तो पार्टी के तमाम पदाधिकारियों ने भी बातें रखी है.वे क्या कारण थे,अब नहीं लगता कि उसकी समीक्षा करने की फिर जरूरत है. एक लाइन में कहा जाए तो उस समय सिर्फ कुछ,लोग पार्टी से भी ऊपर हो गए थे और उनके मनमानी ही पार्टी के लिए नुकसान का कारण बन गई. विधानसभा चुनाव तक पार्टी के संगठन मंत्री ओमप्रकाश माथुर जी ने इन पूरी बातों को जरूर समझ लिया था और और निश्चित रूप से दिल्ली को भी इससे अवगत करा दिया था.पार्टी के कार्यकर्ताओं के मन के कोने में कहीं ना कहीं अभी भी यह डर हमेशा बना रहता है कि पार्टी में वही गलतियां फिर से ना शुरू हो जाएं.

बात अभी मंत्रिमंडल के विस्तार और मंडल-आयोगों में नियुक्तियां की हो रही है.वास्तव में कहा जा रहा है कि पार्टी इसमें क्यों करें जल्दबाजी. असल में पार्टी को यह देखना होगा कि इस मंत्रिमंडल के विस्तार से सत्ता और पार्टी के साथ,आम लोगों को क्या फायदा होने वाला है और इसमें देरी करने से क्या नुकसान हो रहा  है. फिलहाल तो ऐसा कहीं नहीं लगता है कि इसमें देरी हो रही है,तो कोई विपरीत असर पड़ रहा है. भाजपा की सरकार को यहां एक साल के महीने से अधिक हो गए हैं लेकिन आम जनता को मंत्रिमंडल के विस्तार में उसे कोई फायदा नजर आता होगा. एक बात याद जरूर कहीं जा रही है कि अभी व्यावसायिक वर्ग को व्यापारिक वर्ग को कुछ नुकसान हो रहा है क्योंकि उसके काम अटक रहे हैं.

प्रदेश में नई सरकार गठित हुई, तो इस सरकार के गठन में इस बार, निश्चित रूप से भाजपा ने अत्यंत कड़े निर्णय लिए हैं. इन कड़े निर्णयों से, कई लोगों के मन में,राजनीतिक विश्लेशको के मन में भी,कहीं ना कहीं यह आशंका जरूर पनप रही थी कि कहीं ऐसे कड़े निर्णयों से कोई नुकसान ना उठाना पड़े. इन कड़े निर्णय ने निश्चित रूप से पार्टी के ही कई लोगों,जो कि कभी पार्टी को प्रभावित करते रहे थे,को विचलित कर दिया,लेकिन सरकार के इतने दिन बीत गए हैं,किसी कोने में भी कहीं ऐसा नहीं लग रहा है की कड़े निर्णयो से, उसे कोई नुकसान उठाना पड़ा है.

पहली बात है कि क्या अब भी सब कुछ पहले के जैसे ढर्रे पर चलने देना है अथवा इसे बदलने की कोई सोच है. तब एक ही होलोग्राम से दारू की कई कई हजार पेटियाँ निकाल दी गई थी जनता में आक्रोश था. पीएससी की परीक्षा में कितनी भारी गड़बड़ियां हुई जिसे उजागर भुक्तभोगी परीक्षार्थियों ने किया.जनता में आक्रोश था.कुछ वर्ग के लोगों की ही महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां की गई,जातिवाद को बढ़ावा दिया गया जिससे जनता में आक्रोश था.महादेव सट्टा से करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया गया और हजारों युवाओं का घर बर्बाद हो गया जिससे लोगों में आक्रोश था और तो अब उसमें क्या हो रहा है. कुल मिलाकर इस और ध्यान देने की जरूरत है कि जिन मुद्दों पर जनता की नाराजगी थी जनता में आक्रोश था उन मुद्दों पर अब क्या हो रहा है? क्या होने जा रहा है? इसके लिए क्या नीति है ? क्या प्लानिंग है?और क्या किया जा रहा है.? इन विषयों पर गहन मंथन होना चाहिए चिंतन होना चाहिए और इसे पता करने की कोशिश की जानी चाहिए कि पहले, आम लोगों में जो नाराज़गियां थी उसे दूर करने में सरकार कितनी सफल हुई है? उन संस्थाओं को दूर करने में क्या कोई परेशानी आ रही हैं? तो यह परेशानियां किस तरह की है इस पर गहन मंथन होना चाहिए और मतदाताओं,आम जनता की भावनाओ को समझने की कोशिश की जानी चाहिए.मंत्रिमंडल के विस्तार के पहले समीक्ष तो इस बात की भी होनी चाहिए कि सत्तारूढ़  पार्टी के अभी जो भी विधायक हैं,उनका कामकाज कैसा है,उनका प्रदर्शन कैसा है?जनता के साथ उनका व्यवहार कैसा है...?सबसे पहले इसकी समीक्षा की जानी चाहिए. समीक्षा इसकी भी कि ये सब  जनता की उम्मीदों पर कितने खरे उतरे हैं.यह सब एक साल के के कार्यकाल में,जिन मतदाताओं ने इन्हें चुना,उस जनता के ये कितने करीब रह गए हैं. कहीं जनता से उनकी दूरियां तो नहीं बनने लगी है. इसका पूरा रिपोर्ट तैयार किया जाना चाहिए. और इसे सार्वजनिक करते हुए आम लोगों को भी बताना चाहिए.

अब तो कोई नहीं चाहेगा,कि आगे पाठ और पीछे सपाट होता जाए. पीछे की भी सुध लेनी होगी.सरकार ने पिछले वर्ष के अपने कार्यकाल को ज्ञान का नाम दिया था. यह ज्ञान कहां-कहां से पहुंचा, इससे किस दिशा को मजबूती मिली है,यह तो सब जानना चाहेंगे. भाजपा नए चेहरे को टिकट दे रही है, और आम मतदाता उसे जीत दिला दे रहे हैं. ऐसे मतदाताओं की भी निश्चित रूप से कुछ अपेक्षाएं होंगी.यह सब एसी के बंद कमरों में बैठकर नहीं समझा जा सकता,मैदान पर, गली मोहल्ले में,निकल कर इसे समझने की जरूरत पड़ेगी. समीक्षा होगी तो उससे, यह सच भी सामने आ सकता है कि जिन चेहरे को काफी प्रभावशाली समझा गया होगा अब वही लोग, किसी की छाती पर मूंग तल रहे होंगे. 

किसी के भी कामकाज के समीक्षा के लिए एक वर्ष को पर्याप्त नहीं माना जाता है. कहा जाता है कि बेहतर समीक्षा के लिए कम से कम 2 वर्ष का समय दिया जाना चाहिए. यह सच है तो दो वर्ष के कामकाज की समीक्षा के बाद ही मंत्रिमंडल के विस्तार अथवा उसमें फेरबदल के बारे में निर्णय लिया जाना चाहिए. हो सकता है कि विस्तार के साथ कुछ फेरबदल की जरूरत भी महसूस होने लगे.निगम- आयोगों में नियुक्तियां  की जानी है तो इसका भी बेहतर प्रदर्शन उद्देश्य होना चाहिए. जिन्हें बार-बार अवसर मिलता रहा है अब तो उनसे बचना ही चाहिए. पिछले दिनों कुछ नियुक्तियां  हुई है  लेकिन, भीतरखाने में ही कहा जा रहा है कि उसमें कई मापदंडों की अनदेखी होती नजर आई है. यह तर्क दिया जा सकता है कि शिक्षा विभाग का मंत्री नहीं होने से उस विभाग का काम काफी प्रभावित हो रहा है. फिलहाल इस विभाग का कामकाज सीधे मुख्यमंत्री के पास है. उक्त तर्क भी प्रभावी लग सकता है.